#RememberingOurKargilHeroes : मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 को दुश्मनों से मुक्त कराने वाले परमवीर चक्र विजेता रायफलमैन मनोज कुमार की शौर्यगाथा
   04-जुलाई-2023
 
Nayab Subedar Sanjay Kumar Kargil war story
 
 
 
वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध के दौरान भारत-पाकिस्तान की सेनाएं एक-दूसरे के आमने सामने खड़ीं थीं। 3 जुलाई 1999 तक भारत पर नापाक नजर रखने वाले पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल की सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई चोटियों को भारतीय सेना के वीर जवानों ने मुक्त करा लिया था। अब बारी थी मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ़्लैट टॉप पर कब्ज़ा करने की। ताकि दुश्मनों के कब्जे से अन्य चौकियों को मुक्त कराया जा सके। 13 जम्मू-कश्मीर राइफ़ल्स की एक यूनिट को मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ़्लैट टॉप पर कब्ज़ा करने का ज़िम्मा सौंपा गया था। इस मिशन को पूरा करने के लिए जवानों को हज़ारों मीटर की खड़ी चढ़ाई कर ऊपर बैठे दुश्मनों को मार भगाना था। जोकि किसी भी हालत में इतना आसान नहीं था। 
 
 
परमवीर राइफ़लमैन संजय कुमार
 
 
मिशन को पूरा करने के लिए सेना की टुकड़ी पहाड़ी पर चढ़ना शुरू ही किया था कि ऊँचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को भनक लग गई और उन्होंने गोलियां बरसानी शुरू कर दी। भारतीय सैनिकों के लिए स्थिति बेकाबू होती जा रही थी। तभी एक जांबाज़ जवान ने अपने कंधे पर मशीन गन रखी और दुश्मनों को माकूल जवाब दिया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। यह जांबाज़ कोई और नहीं बल्कि परमवीर चक्र से सम्मानित 'राइफ़लमैन संजय कुमार' थे। संजय कुमार वर्तमान में सूबेदार मेजर संजय कुमार हैं।
 
 
जीवन परिचय  
 
संजय कुमार का जन्म 3 मार्च, 1976 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में हुआ था। संजय कुमार उच्च शिक्षा के लिए बिलासपुर गए और फिर 1996 में भारतीय सेना का हिस्सा बन गए। कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्हें 13 जम्मू-कश्मीर राइफ़ल्स में तैनाती मिली। नौकरी के 3 साल बाद ही भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध छिड़ गया। इस दौरान 4 जुलाई 1999 को राइफ़लमैन संजय कुमार को उनकी यूनिट के साथ मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ़्लैट टॉप क्षेत्र पर तिरंगा फहराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। संजय कुमार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ ही रहे थे कि उनका सामना दुश्मनों के आटोमैटिक फ़ायर से हो गया।
 
 
Sanjay Kumar 1999 kargil story

 
 
मिशन को पूरा करने के लिए अपनाया कठिन रास्ता  
 
 
ऊँचाई पर बैठी पाकिस्तानी सेना पूरी ताकत के साथ रायफलमैन संजय कुमार की टुकड़ी पर गोलाबारी कर रही थी। ऊंचाई पर होने के कारण उनके द्वारा फेंका गया एक पत्थर भी भारतीय जवानों के लिए किसी बम के गोले जैसा था। लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद दुश्मनों के हमले को मात देते हुए भारतीय जवान जवाबी कार्रवाई करते हुए लगातार आगे बढ़ते रहे। इस संघर्ष में संजय कुमार के अनेक साथी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लिहाजा विषम परिस्थिति को देखते हुए संजय कुमार ने तत्काल अपने प्लान में बदलाव किया और दुश्मनों तक पहुंचने के लिए एक जोखिम भरा रास्ता अपनाया। उन्होंने अपनी टीम को बिल्कुल खड़ी चट्टान की मदद से ऊपर जाने को कहा।
 
 
दुश्मनों पर काल बनकर टूटे भारतीय जवान  
 
 
हालाँकि शुरू में संजय कुमार के साथियों को उनका जोखिम भरा यह फ़ैसला समझ नहीं आया। लेकिन संजय कुमार ने जैसे ही ख़ुद आगे बढ़कर इस रास्ते की तरफ़ अपना कदम बढ़ाया तो उनकी टुकड़ी के अन्य सदस्य भी भरोसे से लबरेज़ हो गए। दुर्गम पहाड़ी इलाके में कठिन चढ़ाई पार करते हुए जल्द ही संजय कुमार की यूनिट पाकिस्तानी सैनिकों के नज़दीक जा पहुंची और उन पर हमलावर हो गई। पाकिस्तानी सेना को अभी कुछ समझ आता इससे पहले भारतीय जवानों ने उनका बड़ा नुकसान कर दिया था।
 
 
पाकिस्तानी सेना ने भी बौखलाहट में संजय कुमार की टुकड़ी पर तेज़ बमबारी शुरू कर दी। दोनों तरफ से कुछ देर तक चले इस मुकाबले के बीच विरोधी रायफलमैन संजय कुमार यह समझ चुके थे कि इस जंग को जीतने के लिए पाकिस्तानी सेना के उस बंकर को उड़ाना बहुत ज़रूरी है, जहां से वे अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। रायफलमैन संजय कुमार ने समय न गंवाते हुए मशीन गन को अपने कंधे पर रखा और पाकिस्तानियों की ओर दौड़ पड़े। साथियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, मगर संजय नहीं माने और कुछ ही पलों में उन्होंने एक हथगोला पाकिस्तानी सेना के बंकर पर दाग दिया। इस हमले में कई दुश्मन सैनिक मारे गए और कुछ घायल हो गए।
 
 
 
Maskoh valley 4875
 
 
दुश्मनों से हथियार छीन दुश्मनों को किया ढेर 
 
 
लेकिन यह लड़ाई यहीं ख़त्म नहीं हुई।अभी भी एक बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना दूसरी तरफ बचे हुए थे और लगातार गोलियां बरसा रहे थे। मगर वह संजय के हौसले को डिगा नहीं पाए। एक पल ऐसा भी आया, जब संजय की बंदूक की गोलियां ख़त्म हो गई थी, पाकिस्तानी सैनिकों को लगा कि उनकी मौत टल गई। मगर संजय कहा रुकने वाले थे, वह काल बनकर विरोधियों पर बिना हथियार के ही टूट पड़े। आमने-सामने की इस लड़ाई में संजय कुमार ने पाकिस्तानी सैनिकों का हथियार छीन कर 3 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया, लेकिन इस बीच वे खुद भी गंभीर रूप से घायल से हो गए थे। उनके शरीर में बहुत सी गोलियां लगी थीं। संजय की इस दिलेरी ने अन्य जवानों में नई जान फूंक दी। परिणाम स्वरूप पॉइंट 4875 पर भारतीय तिंरगा लहराया। आगे भारतीय सेना ने टाइगर हिल की सभी चोटियों पर कब्ज़ा किया और कारगिल का यह युद्ध इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया। 
 
 
 Kargil war 1999 sanjay kumar
 
 
 परमवीर चक्र से सम्मानित 
 
 
इस जंग के बाद संजय जब वापस लौटे तो उनकी हालात बहुत गंभीर थी। उनकी पीठ और दाहिना पैर गोली लगने के कारण बुरी तरह ज़ख़्मी था। सौभाग्य से ऑपरेशन करके समय रहते उनके शरीर से गोलियां निकाली जा सकी और संजय कुमार की जान बच सकी। कारगिल युद्ध के दौरान कुशल नेतृत्व और वीरता का परिचय देने के लिए संजय कुमार को सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।  फ़िलहाल वह बतौर नायब सूबेदार संजय कुमार के रूप में देश की सेवा में कार्यरत हैं। 
 
 
 
 (अर्नव मिश्रा)