RememberingOurKargilHeroes ; महज 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव की शौर्यगाथा

04 Jul 2023 15:27:18

Yogendra Singh Yadav Paramveer Awardee Kargil war 1999
 
 
योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित औरंगाबाद आहिर गांव में हुआ था। 1996 में महज 16 वर्ष की आयु में योगेंद्र यादव भारतीय सेना में शामिल हो गए। योगेंद्र यादव के पिता भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उन्होंने 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से विरोधियों को धूल चटाने का काम किया था।
 
 
टाइगर हिल के 3 बंकरों को मुक्त कराने की सौंपी गई जिम्मेदारी
 
 
भारतीय सेना में भर्ती हुए अभी योगेंद्र यादव को कुछ ही वर्ष हुए थे कि पाकिस्तानी सैनिकों ने घुसपैठ कर कारगिल की चोटियों पर अपना कब्जा जमा लिया। 1947, 1965 और 1971 में लगातार हारने के बाद भी पाकिस्तान नहीं सुधरा और 1999 में एक बार फिर से भारत पर हमला कर दिया था और फिर सीमा पर शुरू हुआ कारगिल का युद्ध। इस युद्ध के दौरान योगेन्द्र सिंह यादव को टाइगर हिल के 3 सबसे ख़ास बंकरों को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
 
 
4 जुलाई 1999 को योगेन्द्र यादव ने अपने कमांडो प्लाटून के साथ मिलकर दुर्गम ऊंची चोटी पर चढ़ाई कर दी। उन्हें करीब-करीब 90 डिग्री की सीधी चढ़ाई पर चढ़ना था। यह एक जोखिम भरा काम था। मगर सिर्फ़ यही एक रास्ता था, जहां से पाकिस्तानियों को चकमा दिया जा सकता था।
 
 
 
 
 
 
दुश्मनों ने शुरू की गोलीबारी 
 
 
अपनी बटालियन के साथ योगेंद्र यादव अभी कुछ ही दूरी तक पहुंचे ही थे कि पाकिस्तानी सैनिकों को उनके आने की आहट हो गई। आहट मिलते ही पाकिस्तानी सैनिकों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी। इसमें कई भारतीय जवान गंभीर रूप से घायल हो गए जिसके बाद कुछ समय के लिए भारतीय सेना के उन वीर जवानों को पीछे हटना पड़ा।
 
 
5 जुलाई को 18 ग्रनेडियर्स के 25 सैनिक फिर आगे बढ़े। इस बार भी वो पाकिस्तानी सैनिकों की नज़र से नहीं बच सके और दुश्मन सेना की गोलियों का निशाना बने। करीब 5 घंटे की लगातार गोलाबारी के बाद भारतीय सेना ने योजनाबद्ध तरीके से अपने कुछ जवानों को पीछे हटने के लिए कहा। दुश्मन यह देखकर खुश हो गया। जबकि, यह एक योजना का हिस्सा था।
 
 
योगेन्द्र समेत 7 भारतीय सैनिक अभी भी वहीं थे। कुछ देर बाद जैसे ही इसकी पुष्टि करने पाकिस्तानी सैनिक नीचे आए कि कोई भारतीय सैनिक ज़िंदा तो नहीं बचा तभी योगेन्द्र की टुकड़ी ने उन पर हमला कर दिया। इस संघर्ष के दौरान कुछ पाकिस्तानी सैनिक भागने में सफ़ल रहे। उन्होंने ऊपर जाकर भारतीय सेना के बारे में अपने साथियों को बताया।
 
 
दूसरी तरफ़ भारतीय सैनिक तेज़ी से ऊपर की तरफ़ चढ़े और सुबह होते-होते टाइगर हिल की चोटी के नज़दीक पहुंचने में सफल हो गए। असंभव सी लगनी वाली इस चढ़ाई के लिए उन्होंने रस्सियों का सहारा लिया। बंदूकें उनकी पीठ से बंधी हुई थीं। प्लान सफल होते दिख रहा था। तभी पाकिस्तानी सेना ने अपने साथियों की सूचना की मदद से योगेन्द्र को टुकड़ी को चारों तरफ़ से घेरते हुए हमला कर दिया।
 
 
Yogendra Singh Yadav Paramveer Awardee Kargil war
 
 
हमले में योगेंद्र यादव को लगी 15 गोलियां
 
 
पाकिस्तानी सैनिकों के इस हमले में योगेन्द्र के सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। योगेन्द्र के शरीर में भी करीब 15 गोलियां लगी थी। मगर उनकी सांसें चल रही थीं। आंखें मूंदे हुए वह मौके की तलाश में थे। जब दुश्मन को अहसास हो गया कि योगेन्द्र मर चुके हैं, तभी योगेन्द्र ने अपनी जेब में रखे ग्रेनेड की पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दिया। आगे एक ज़ोरदार धमाके के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए। इस बीच योगेन्द्र ने अपने पास पड़ी रायफ़ल उठा ली और बचे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। योगेंद्र का बहुत ख़ून बह चुका था। इसलिए वो ज़्यादा देर होश में नहीं रह सके। इत्तेफाक़ से वह एक नाले में जा गिरे और बहते हुए नीचे आ गए।
 
 
 
PVC Yogendra kumar
 
 
परम वीर चक्र से किया गया सम्मानित
 
 
भारतीय सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और उन्हें इलाज के लिए तुरंत अस्पताल में भर्ती किया। इस तरह से उनकी जान बच सकी और टाइगर हिल पर भारतीय तिरंगा लहराया गया। युद्ध के बाद योगेंद्र सिंह यादव को अपनी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वर्तमान में भी वो भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। योगेन्द्र सबसे कम उम्र के सैनिक हैं, जिन्हें यह सम्मान प्राप्त है। कुछ वर्ष पूर्व उन्हें 'Rank of Hony Lieutenant' से नवाज़ा गया।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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