
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सूबेदार निर्मल सिंह की यूनिट 8-सिख बटालियन को 121 इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान के तहत 14-15 मई 1999 को द्रास सेक्टर में तैनात किया गया था। द्रास सब सेक्टर में पाकिस्तानी सैनिकों से कुछ महत्वपूर्ण चौकियों को मुक्त कराने के उपरान्त अब बारी थी टाइगर हिल को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराने की, जिसके लिए 192 माउंटेन ब्रिगेड को जिम्मा सौंपा गया। इस मिशन में उनके साथ 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन के 8 सिखों को ब्रिगेड को शामिल किया गया, जिनमें सूबेदार निर्मल सिंह भी शामिल थे। 04-05 जुलाई 1999 को टाइगर हिल पर बैठे दुश्मनों पर तीन दिशाओं से हमले की योजना बनाई गई थी। इस हमले का नेतृत्व 18 ग्रेनेडियर्स ने किया था और इसमें 8 सिख बटालियन के सूबेदार निर्मल सिंह ने महत्वपूर्ण भूमि निभाई थी।
5 जुलाई 1999 - बैटल ऑफ टाइगर हिल
5062 मीटर की ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल द्रास सेक्टर में अब तक की सबसे महत्वपूर्ण चौकी थी और यहां से मुश्कोह घाटी और राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-1D दिखता था। टाइगर हिल पर चढ़ाई बेहद मुश्किल और चुनौतीपूर्ण थी। ऊपर से उंचाई पर बैठे दुश्मन सैनिक लगातार गोलीबारी कर रहे थे। सूबेदार निर्मल सिंह की बटालियन को आगे बढ़ कर दुश्मनों को रोकने और उन्हें उलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। निर्मल सिंह ने अपने जान की परवाह किए बिना बहादुरी के साथ आगे बढे। कुछ दूर पहुँचते ही निर्मल सिंह की नजर दुश्मन सैनिकों पर पड़ी दुश्मन अभी हमला करते उससे पहले निर्मल सिंह ने अपनी ऑटोमेटिक गन से दुश्मनों पर गोली बरसानी शुरू कर दी। इस हमले में कुछ पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कुछ घायल हुए। सूबेदार निर्मल सिंह और उनके साथियों ने एक के बाद एक बंकरों को साफ़ करने में उत्कृष्ट बहादुरी और आक्रामकता का प्रदर्शन किया। सुबह 4 बजे तक इंडिया गेट और हेलमेट पर कब्ज़ा हो चुका था।
वीरगति प्राप्त होने से पूर्व मिशन को किया पूरा
भारतीय सैनिकों के इस हमले के बीच दुश्मन सैनिकों ने उस क्षेत्र में अपनी सुरक्षा और मजबूत कर ली थी। साथ ही भारतीय सैनिकों पर दुश्मन सैनिकों द्वारा भारी गोलीबारी की गई। दुश्मनों के इस हमले में निर्मल सिंह समेत उनकी टुकड़ी के कई जवान गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। लेकिन घायल होने के बावजूद सूबेदार निर्मल सिंह ने हार नहीं मानी वो अपनी बटालियन का युद्धघोष ''जो बोले सो निहाल-सत श्री अकाल'' का उद्घोष करते हुए दुश्मनों पर हमला बोला और चौकी पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। घायल होने के बावजूद सूबेदार निर्मल सिंह ने चौकी पर कब्ज़ा किया लेकिन गोली लगने के कारण खून बहुत ज्यादा निकल चूका था जिसके कारण वो युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए। सूबेदार निर्मल सिंह और उनकी बटालियन की बहादुरी ने अंततः तीन दिन बाद टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने का मार्ग प्रशस्त किया।
सूबेदार निर्मल सिंह को उनके असाधारण वीरता, अदम्य साहस और उत्तम युद्ध कौशल के लिए मरणोपरांत देश के तीसरे सर्वोच्च सैन्य सम्मान "वीर चक्र" से समानित किया गया।

जीवन परिचय
सूबेदार निर्मल सिंह का जन्म 06 मई 1957 को पंजाब के गुरदासपुर जिले के पुराना शल्ला गांव में हुआ था। निर्मल सिंह के पिता का नाम धाना सिंह और माता जी का नाम श्रीमती शांति देवी था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद निर्मल सिंह महज 20 वर्ष की उम्र में ही 21 सितम्बर 1976 को सेना में शामिल हो गए थे। उन्हें सिख रेजिमेंट की 8वीं सिख बटालियन में कमीशन मिला। 1999 तक, सूबेदार निर्मल सिंह ने दो दशकों से अधिक की सेवा की और एक प्रेरित जूनियर कमीशन अधिकारी के रूप में विकसित हुए।