केंद्र की मोदी सरकार ने कश्मीरी हिन्दुओं के पक्ष में एक बड़ा फैसला किया है। दरअसल कश्मीर घाटी में वर्ष 1989-90 के दशक में हुई कश्मीरी हिन्दुओं की हत्याओं के केस फिर खोले जा रहे हैं। इसकी शुरुआत जस्टिस नीलकंठ गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo) हत्याकांड से हुई है। 'जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी' यानि (SIA) ने इस केस में मोर्चा संभाल लिया है। SIA स्थानीय लोगों से इस केस में मदद करने की अपील की है। गौरतलब है कि 1989 में जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या श्रीनगर में हुई थी।
जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या
1990 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं का कश्मीर घाटी से पलायन भारत के इतिहास में दर्ज एक काला अध्याय है। इस्लामिक आतंकियों द्वारा कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या की शुरुआत वर्ष 1989 से ही हो गई थी। इसमें सबसे पहली हत्या पेशे से वकील व भाजपा नेता पं० टिकालाल टपलू की हुई थी। टिकालाल टपलू की हत्या के बाद आतंकियों ने जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या की रणनीति बनाई। टिकालाल टपलू की हत्या के महज 7 सप्ताह बाद आतंकियों ने रिटार्यड जज नीलकंठ गंजू की 4 नवंबर 1989 को श्रीनर हाई स्ट्रीट मार्केट के पास स्थित हाईकोर्ट के पास गोली मारकर हत्या कर दी।
यासीन मलिक ने ली हत्या की जिम्मेदारी
रिटार्यड जज नीलकंठ गंजू की हत्या के बाद करीब 2 घंटे तक उनका शव सड़क पर ही पड़ा रहा। उनकी हत्या के बाद, रेडियो पर एक घोषणा की गई, “अज्ञात हमलावरों ने श्रीनगर के महाराज बाजार में एक पूर्व सत्र न्यायाधीश की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद आतंकियों ने घोषणा की कि उन्होंने जस्टिस गंजू से मकबूल बट की फांसी का प्रतिशोध लिया है, हिंदुओं में आतंक का दहशत भरने के लिए मस्जिदों से नारे लगाये गए कि ‘ज़लज़ला आ गया है कुफ़्र के मैदान में, लो मुजाहिद आ गये हैं मैदान में’। स्पष्ट था कि अलगाववादियों के अंदर अब भारतीय न्याय, शासन और दंड प्रणाली का भय नहीं रह गया था। इसी घटना के बाद कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार का वो अंतहीन दौर शुरु हुआ, जो 3 दशक बाद भी जारी है। कई वर्षों बाद 'जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट' का चीफ आतंकी यासीन मलिक ने भी एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने ही जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या की थी।
हत्या के पीछे क्या था कारण ?
कश्मीर घाटी से हिंदूओं का पलायन यह कोई आकस्मिक दुर्घटना नहीं थी। बल्कि इसकी कहानी सन 1965 में ही लिख दी गयी थी जब, भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था। सन 1965 का युद्ध जम्मू कश्मीर को पूरी तरह पाकिस्तान में मिलाने के उद्देश्य से लड़ा गया था किंतु पाकिस्तान को इसमें सफलता इसलिए नहीं मिल सकी क्योंकि तब तक जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान परस्ती और अलगाववाद का बीज नहीं बोया जा सका था। अब इस उद्देश्य को पुनः प्राप्त करने के लिए अगस्त 1965 में अमानुल्लाह खान और आतंकी मकबूल बट ने ‘पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर’ में ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट’ नामक एक अलगाववादी आतंकी संगठन बनाया था। इस संगठन ने जून 1966 में मकबूल बट को ट्रेनिंग देकर नियन्त्रण रेखा के इस पार भेजा।
आतंकी मकबूल बट
6 सप्ताह बाद ही जम्मू कश्मीर पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में आतंकी मकबूल बट ने CID सब इंस्पेक्टर अमर चंद की हत्या कर दी। 2 वर्ष बाद अगस्त 1968 में मकबूल बट को तत्कालीन सेशन जज नीलकंठ गंजू ने फांसी की सजा सुनाई। किन्तु उसी वर्ष दिसम्बर में मकबूल बट अपने एक साथी के साथ जेल तोड़कर नियन्त्रण रेखा के उस पार भाग गया। वह 1976 में लौटा और इस बार उसने कुपवाड़ा में बैंक डकैती का असफल प्रयास किया और पकड़ा गया। डकैती के प्रयास में उसने बैंक मैनेजर की हत्या की जिसके लिए उसे पुनः फांसी की सजा हुई।
मकबूल बट के पकड़े जाने के बाद उसके साथी आतंकवादी इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने 1977 में ‘जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ नामक संगठन बनाया। इसी संगठन से संबद्ध ‘नेशनल लिबरेशन आर्मी’ ने मकबूल बट को जेल से छुड़ाने के लिए फरवरी 1984 में भारतीय उच्चायुक्त रवीन्द्र म्हात्रे का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। इस घटना के पश्चात् तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी।
मकबूल बट की फांसी के उपरांत घटनाक्रम
जिस दिन मकबूल बट को फांसी दी गई थी उस दिन जम्मू कश्मीर में रह रहे लोगों पर इसका कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा था। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बने अभी एक दशक भी पूरा नहीं हुआ था। लिहाजा अब इस संगठन को अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के चलते घाटी के लोगों में अपनी पैठ बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। मकबूल बट को फांसी दिए जाने के 2 वर्ष के बाद सन 1986 में फारुख अब्दुल्लाह को हटाकर गुलाम मोहम्मद शाह जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बनाये गए। शाह ने अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाते हुए जम्मू संभाग स्थित ‘न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट’ एरिया में एक प्राचीन मन्दिर परिसर के भीतर मस्जिद बनाने की अनुमति दे दी ताकि मुस्लिम कर्मचारी नमाज पढ़ सकें।
इस विचित्र निर्णय के विरुद्ध जम्मू संभाग के लोग सड़क पर उतर आए जिसके फलस्वरूप दंगे भड़क गए। अनंतनाग में पंडितों पर भीषण अत्याचार किया गया, उन्हें बेरहमी से मारा गया, महिलाओं से बलात्कार किया गया और उनके संपत्ति व मकान तोड़ डाले गए। सन 1987 से जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट की गतिविधियों में तेजी आई। बाद के सालों में अलगाववादियों की दुष्प्रचार मशीनरी ने एक सुनियोजित तरीके से कश्मीरी हिन्दुओं के विरुद्ध वैमनस्य फैलाना प्रारंभ कर दिया। यही कारण था कि जिस मकबूल बट को 1984 में कोई जानता नहीं था फरवरी 1989 में उसका ‘शहादत दिवस’ मनाने के लिए लोग आतुर थे। सलमान रुश्दी की पुस्तक ‘सैटेनिक वर्सेज़’ का विरोध चरम पर था जिसकी आग कश्मीर तक भी पहुँची। परिणामस्वरूप 13 फरवरी को श्रीनगर में दंगे हुए जिसमें कश्मीरी पंडितों को बेरहमी से मारा गया।
श्रीनगर के हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास मृत पड़े जस्टिस नीलकंठ गंजू के शव को उठाते पुलिसकर्मी
4 नवंबर 1989 को आतंकियों ने की हत्या
सन 1989 तक पं० नीलकंठ गंजू- जिन्होंने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी- हाई कोर्ट के जज बन चुके थे। वे 4 नवंबर 1989 को दिल्ली से लौटे थे और उसी दिन श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास ही आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी थी। आतंकियों ने जस्टिस गंजू से मकबूल बट की फांसी का प्रतिशोध लिया था। कई वर्षों बाद जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकी यासीन मलिक ने एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया था कि उसने जस्टिस गंजू की हत्या की थी।
शुरू हुआ आतंक का अंतहीन सिलसिला
पं० टीकालाल टपलू और जस्टिस गंजू की हत्या के बाद भी कश्मीरी पंडितों को मारे जाने का अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया, परन्तु तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला दिलासा मात्र देते रहे। फिर वो हुआ जिसने जम्मू कश्मीर की सदियों पुरानी समरस संस्कृति को हमेशा के लिए तार-तार कर दिया और लाखों कश्मीरी हिंदूओं को हमेशा के लिए अपने पुरखों की जमीन हमेशा के लिए छोड़नी पड़ी।
3 दशक बाद मिलेगा इंसाफ ?
फिलहाल आतंकी यासीन मलिक तिहाड़ जेल में बंद अपने कर्मों की सजा काट रहा है। दूसरी तरफ 3 दशक से न्याय की आस लगाए बैठे कश्मीरी हिन्दुओं के मन में एक उम्मीद जगी है कि अब उन्हें इंसाफ मिलेगा। SIA को जस्टिस नीलकंठ गंजू हत्या केस की जांच सौंपी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गंजू की हत्या के पीछे बड़ी आपराधिक साजिश का पता लगाने के लिए SIA ने एक प्रेस रिलीज जारी की है। इसमें इस मर्डर केस से जुड़े तथ्यों या हालात से परिचित लोगों से आगे आने और जानकारी साझा करने की अपील की गई है। एजेंसी की ओर से कहा गया है कि जिसे भी इस घटना के बारे में कोई जानकारी है तो वो इसे साझा करे।
यहाँ कर सकते हैं संपर्क
SIA की ओर से ये भी कहा गया है कि जो लोग मामले से जुड़ी जानकारी देंगे, उनकी पहचान छिपा कर रखी जाएगी। जानकारी देने वाले व्यक्ति को इनाम दिया जाएगा। लोगों से मोबाइल नंबर-
8899004976- और ईमेल -
[email protected] पर जांच एजेंसी के अधिकारियों से जानकारी शेयर करने की अपील की गई है। केंद्र सरकार के इस फैसले पर जस्टिस नीलकंठ गंजू के परिजनों ने ख़ुशी जाहिर की है। उन्हें उम्मीद है कि केस के रिओपन और पुनः जांच से उन्हें इंसाफ मिलेगा।