16 सितम्बर 1965 India-Pakistan War ; पाकिस्तान के 60 टैंकों को तबाह करने वाले परमवीर चक्र विजेता लेफ़्टिनेंट कर्नल ए. बी. तारापोर की वीरगाथा
   16-सितंबर-2023
 
1965 War  Lieutenant Colonel Ardeshir Burzorji Tarapore
 
 
The Battle of Chawinda ;
 
लेफ़्टिनेंट कर्नल अर्देशिर बर्जारी तारापोर, सन 1965 में भारत-पकिस्तान के बीच हुए युद्ध का एक ऐसा नाम हैं, जो सदियों सदियों तक अपने कुशल नेतृत्व के लिए याद किए जाते रहेंगे। पाकिस्तान के सियालकोट सेक्टर के फिल्लौर पर पाकिस्तानी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उनकी टुकड़ी ने जिस तरह से पाकिस्तानी सेना के 60 टैंकों को तबाह किया था, वह इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। हालाँकि इस युद्ध में सफलता हासिल करते हुए अंत तक लेफ़्टिनेंट कर्नल तारापोर और अन्य कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। युद्ध भूमि में असाधारण वीरता के लिए लेफ़्टिनेंट कर्नल तारापोर को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आज 16 सितम्बर को लेफ़्टिनेंट कर्नल तारापोर का बलिदान दिवस है, लिहाजा आज उनकी वीरता को याद करेंगे। 
 
 
Battle of Phillora
 
 
तारापोर का सैन्य सफ़र 
 
 
18 अगस्त 1923 को मुंबई में जन्में अर्देशिर बर्जारी तारापोर के पूर्वज छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना का हिस्सा हुआ करते थे। तारापोर स्कूल बचपन से ही पढ़ाई, मुक्केबाज़ी, तैराकी, टेनिस और क्रिकेट सब में अव्वल थे। माता-पिता चाहते थे कि बड़े होकर वह अपने परिवार का नाम रौशन करें, इसके लिए उन्होंने तारापोर को पुणे के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया।
 
इस दौरान तारापोर के भीतर सेना में भर्ती होने का सपना पनपा, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने तैयारी शुरू कर दी। तारापोर की कड़ी मेहनत रंग लाई और 1940 में तारापोर ब्रटिश इंडिया शासन में हैदराबाद सेना का हिस्सा बनने में कामयाब रहे। गोलकोंडा से अपना प्रारंभिक सैन्य प्रशिक्षण करने के बाद उन्हें 7वीं हैदराबाद इन्फ़ैन्ट्री में सेकंड लेफ़्टिनेट के रूप में तैनाती दी गई थी। देश की स्वाधीनता के बाद भी साल 1951 तक वह इसका हिस्सा रहे। इस दौरान उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध और भारत विभाजन का दौर भी देखा।.1965 के भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध से पहले वह भारतीय सैन्य बल में कमांडिंग ऑफ़िसर के पद पर पहुंच चुके थे। पूना हॉर्स रेजिमेंट के कमान उनके हाथों में ही थी।
 
 
1965 भारत पर पाकिस्तान का हमला
 
 
दरअसल पाकिस्तान की नापाक निगाहें हमेशा से जम्मू कश्मीर पर रहीं। इसके लिए उसे जब भी मौका मिला वो हमला करता रहा। 1962 में भारत को चीन से युद्ध में मिली हार के बाद पाकिस्तान को लगने लगा था कि अगर वो ऐसे वक्त पर भारत पर हमला करता है तो शायद वह अपने मंसूबे में कामयाब हो सकता है। इसी नियत के तहत पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर एक बार फिर हमले की योजना बनाई लेकिन ये योजना पाकिस्तान को उल्टी पड़ गई। सितम्बर 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध ये वही जंग है जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान के लाहौर तक कब्जा कर लिया था। पाकिस्तालन अपने इस शहर को खोने की कगार पर था। लेकिन 23 सितंबर 1965 को यूनाइटेड नेशंस ने हस्तहक्षेप किया और तब भारत ने युद्धविराम का ऐलान किया। इस युद्ध के बाद भारत और पाकिस्ताकन के बीच ताशकंद समझौता हुआ और भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा। 
 
 
11 सितम्बर 1965
 
 
11 सितम्बर 1965 यह वह तारीख थी, जब तारापोर के नेतृत्व में पूना हॉर्स रेजिमेंट को चविंडा की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के सियालकोट सेक्टर में फिलोरा जीतने का आदेश मिला। तारापोर अपने साथियों के साथ आगे बढ़ ही रहे थे कि तभी अचानक पाकिस्तानी सेना ने वजीराली क्षेत्र के आसपास धावा बोल दिया। पाकिस्तानी सेना अपने अमेरिकी पैटन टैंक के ज़रिए ज़बरदस्त हमला कर रही थी। इस गोलाबारी में लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर गंभीर रूप से घायल हो गए थे। हमले को देख उनके शीर्ष अधिकारियों ने कर्नल तारापोर को उनके साथियों समेत पीछे हटने का आदेश दिया था दी। मगर तारापोर नहीं माने, घायल अवस्था में भी वे लगातार दुश्मनों से मोर्चे पर डटे रहे और 13 सितंबर को वजीराली पर भारतीय तिंरगा फहरा दिया। अब उनका अगला मिशन चाविंडा था, जिसे जीतने के लिए वह योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े। 
 
 
Battle of PhilloraArdeshir Burzorji Tarapore
 
 
 
60 पाकिस्तानी टैंकों को किया ध्वस्त
 
 
16 सितम्बर को लेफ्टिनेंट तारापोर मिशन को फतह करने के लिए आगे बढे। लगातार मिल रही हार से पाकिस्तानी सेना बौखलाई हुई थी। लिहाजा उसने आवेश में आकर ज़्यादा से ज़्यादा अमेरिकी पैटन टैंकों को जंग के मैदान पर उतार दिया। इधर तारापोर ने पाकिस्तानियों को जावाब देने की योजना भी पूरी तरह से तैयार कर रखी थी। जैसे ही पाकिस्तानी सैनिकों की तरफ़ से गोलाबारी शुरू की गई, भारतीय सैनिक उन पर टूट पड़े। एक-एक करके उन्होंने पाकिस्तानी सेना के टैंकों को नष्ट करना शुरू कर दिया। भारतीय सैन्य के 43 टैंकों की टुकड़ी तारापोर की मदद के लिए पहुंचती इससे पहले ही उन्होंने दुश्मन के 60 टैंकों को ध्वस्त कर दिया था। 
 
 
 Lieutenant Colonel Ardeshir Burzorji Tarapore , Param Vir Chakra
 
 
 
वीरता के लिए मिला परमवीर चक्र सम्मान 
 
 
इस वक्त तक लेफ़्टिनेंट कर्नल ए. बी. तारापोर दुश्मनों के हमले में गंभीर रूप से घायल हो चुके थे, लेकिन बावजूद इसके अपने टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। मिशन को पूरा करने के लिए अभी वे अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढे कि दुश्मनों का एक ग्रेनेड उनके ऊपर आकर गिरा और वह युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए। अपने अफसर के बलिदान के बाद भी भारतीय जवानों ने दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और अंतत: फिल्लौर पर भी भारतीय तिरंगा फहरा दिया। युद्धभूमि में असाधारण वीरता और अदम्य साहस के लिए लेफ़्टिनेंट कर्नल ए. बी. तारापोर को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।