15 अगस्त 1947 को जब धर्म के आधार पर बंटवारा होकर देश स्वतंत्र हुआ तो 3 जून 1947 की माउण्टबेटन योजना के अनुसार औपनिवेशिक भारत की 562 देशी रियासतों के पास तीन विकल्प थे—भारत में विलय करें अथवा पाकिस्तान में विलय करें अथवा स्वतंत्र रहें और अधिकांश देशी रियासतों ने अपने अपने धार्मिक संरचना के अनुरूप भारत या पाकिस्तान में विलय का ही विकल्प चुना। बस हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतें ही ऐसी थी जो माउण्टबेटन योजना के तीसरे विकल्प का लाभ उठाकर पाकिस्तान की सहायता करना चाहती थीं।
हैदराबाद सबसे बड़ी रियासत
भारत को एक सूत्र में पिरोने का श्रेय सरदार वल्लभ भाई पटेल के साहसी व्यक्तित्व और दृढ़ इच्छाशक्ति को जाता है जिनके लौह व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में देशी रियासतों का भारत में विलय संभव हो सका। हैदराबाद जनसंख्या, क्षेत्रफल एवं सकल घरेलू उत्पादन की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत थी। इसका क्षेत्रफल ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के क्षेत्र से भी अधिक था और आबादी (एक करोड़ 60 लाख) यूरोप के कई देशों से अधिक थी। उसकी अपनी सेना, रेल-सेवा एवं डाक-तार व्यवस्था थी। वहाँ 85% हिंदू आबादी थी, किंतु शासक मुस्लिम थे। उनके पास रजाकारों की निजी सेना भी थी। प्रशासन एवं सेना के उच्च पदों पर मुसलमानों की ही नियुक्ति की जाती थी।
एकीकरण की प्रक्रिया
एकीकरण की प्रक्रिया के दौरान भारत ने हैदराबाद के निज़ाम को एक वर्ष का वक़्त यह सोचने के लिए दिया कि आप सोच-समझकर निर्णय करें कि आप भारत का हिस्सा बनना पसंद करेंगे या पाकिस्तान का और फिर एक वर्ष बाद 'जनमत संग्रह' के माध्यम से हैदराबाद का भविष्य तय होगा। हैदराबाद के निजाम ने भरसक प्रयत्न किया कि उसकी रियासत का भारत में विलय न हो। उसने अंग्रेजों से इसे स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर राष्ट्र-मंडल देशों में शामिल करने का आग्रह किया, जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया। उसने जिन्ना को भारत से युद्ध की स्थिति में सहायता के लिए पत्र लिखा जिसके लिए जिन्ना साहस नहीं जुटा पाया , इसलिए मना कर दिया और कुछ दिनों में जिन्ना की मृत्यु भी हो गई। बाद में पाकिस्तान ने पुर्तगाल को हैदराबाद की मदद करने को कहा किंतु पुर्तगाल भी सामने नहीं आया।
हैदराबाद की आबादी 80 प्रतिशत हिंदू
तब निजाम ने भारत से युद्ध की मंशा से इंग्लैंड से सैन्य-हथियार खरीदने के लिए अपने आदमी भेजे, पर उसे सफलता नहीं मिली। अंततः आस्ट्रेलिया से हथियार मंगाना तय हुआ। भारत ने, उस हवाई-उड़ान पर प्रतिबंध लगा दिया। निजाम हैदराबाद के भारत में विलय के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ के पास भी गया लेकिन उसे वहाँ भी सफलता नहीं मिली। हैदराबाद की आबादी के 80 प्रतिशत हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान, प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे। हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान विलय न करने के हठ पर अड़ा था जबकि हैदराबाद की जनता भारत में विलय चाहती थी, पर निजाम ने उनके आंदोलन को अपनी निजी सेना रजाकार के द्वारा दमन शुरू कर दिया।
रजाकार सेना
रजाकार एक निजी मुस्लिम सेना थी जो निजाम के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई गई थी। निज़ाम ने इस ‘मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) नामक संगठन को कार्य दिया कि या तो हिंदुओं को तलवार की नोक पर मुसलमान बनाओ या फिर इस्लाम स्वीकार नहीं करने पर मौत के घाट उतार दो ताकि जनमत संग्रह की स्थिति में हिन्दू भारत में विलय के पक्ष में आवश्यक संख्या बल खो दें । निज़ाम का यह आतंकवादी संगठन निर्बाध रूप से अपने कार्य को अंजाम तक पहुँचाने में जुट गया। भारी संख्या में हिंदुओं को मार दिया गया और प्रताड़ित होकर बहुतों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।
ऑपरेशन पोलो के दौरान रजाकारों के प्रमुख कासिम रज़वी रजाकारों की रणनीति की योजना बना रहे थे
ऑपरेशन पोलो
हैदराबाद में व्यापक स्तर पर भारत-विरोधी गतिविधियां चल रही थीं, पाकिस्तान द्वारा भारी-मात्रा में गोला-बारूद वहां भेजा जा रहा था और भारत में विलय के पक्षधर हिंदू जनता की रजाकार सेनाओं द्वारा हत्याएं की जा रही थीं और बाहर से मुसलमानों को लाकर हैदराबाद में बसाया जा रहा था। इन सबको देखते हुए 12 सितंबर 1948 को कैबिनेट की एक अहम बैठक हुई जिसमें नेहरू और पटेल के साथ उस समय भारतीय सेना के सभी बड़े अफसर मौजूद थे। भारत ने 13 सितम्बर 1948 को हैदराबाद को भारत में विलय करने के लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू किया। 5 दिन युद्ध हुआ, जिसके अंत में रजाकार और निजाम के सैनिक गीदड़ की तरह भाग खड़े हुए। भारत की विजय हुई और 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद का भारत मे विलय हो गया।
प्रमुख बिन्दु
'सरदार पटेल का शुरू से ही मानना था कि भारत के दिल में एक ऐसे क्षेत्र हैदराबाद का होना, जिसकी निष्ठा देश की सीमाओं के बाहर हो, भारत की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा था।'
- एच वी आर आयंगर,भारत के पूर्व गृह सचिव
'नेहरू का मानना था कि हैदराबाद में सेना भेजने से कश्मीर में भारतीय सैनिक ऑपरेशन को नुकसान पहुंचेगा।'
राजमोहन गांधी, सरदार पटेल की जीवनी ‘सरदार पटेल एक समर्पित जीवन’में
हैदराबाद के मुद्दे पर कैबिनेट बैठक बुलाई गई थी, जिसमें नेहरू और पटेल दोनों मौजूद थे। नेहरू सैद्धांतिक रूप से सैन्य कार्रवाई के खिलाफ नहीं थे, लेकिन वो इसे अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते थे। वहीं, पटेल के लिए सैनिक कार्रवाई पहला विकल्प था। बातचीत के लिए उनके पास धैर्य नहीं था। नेहरू निजाम की नीतियों के खिलाफ जरूर थे, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनका उनसे कोई विरोध नहीं था। वो हैदराबाद की संस्कृति के प्रशंसक थे जिसका कि उनकी मित्र सरोजनी नायडू प्रतिनिधित्व करती थीं। लेकिन पटेल को व्यक्तिगत और वैचारिक दोनों तरह से निजाम से नफरत थी।'
एजी नूरानी 'द डिसट्रक्शन ऑफ हैदराबाद' में
'नेहरू ने बैठक की शुरुआत में ही मुझपर हमला बोला। असल में वो मेरे बहाने सरदार पटेल को निशाना बना रहे थे। पटेल थोड़ी देर तो चुप रहे लेकिन जब नेहरू ज्यादा कटु हो गए तो वो बैठक से वॉक आउट कर गए। मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आया, क्योंकि मेरे मंत्री की अनुपस्थिति में वहां मेरे रहने का कोई तुक नहीं था। इसके बाद राजा जी ने मुझसे संपर्क करके सरदार को मनाने के लिए कहा। फिर मैं और राजा जी सरदार पटेल के पास गए। वो बिस्तर पर लेटे हुए थे। उनका ब्लड प्रेशर बहुत हाई था। सरदार गुस्से में चिल्लाए-नेहरू अपनेआप को समझते क्या हैं? आजादी की लड़ाई दूसरे लोगों ने भी लड़ी है।'
वीपी मेनन द्वारा एच वी हॉडसन को 1964 में दिए गए इंटरव्यू में
निजाम के पास दुनिया का सबसे बड़ा 185 कैरेट का जैकब हीरा था, जिसे वो पेपर वेट की तरह इस्तेमाल करते थे। निजाम को 'हिज एक्जाल्टेड हाईनेस' कहा जाता था और वो जहां भी जाते थे उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती थी। टाइम पत्रिका ने 1937 में उन्हें दुनिया का सबसे अमीर शख्स घोषित किया था, लेकिन तब भी वो एक कंगाल की तरह फटी शेरवानी और पाजामा पहनते थे।
'सरदार से छोटा जूनागढ़ तो संभल नहीं रहा, वो हैदराबाद के बारे में इतना गरज क्यों रहे हैं?'
निजाम के सबसे करीबी मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लीमीन के जेहादी नेता सैयद कासिम रजवी
'अगर हैदराबाद ने दीवार पर लिखी इबारत नहीं पढ़ी तो उसका भी वही हश्र होगा जो जूनागढ़ का हुआ है।'
जूनागढ़ के आत्मसमर्पण के बाद रजवी से सरदार पटेल
निजाम के पास सिर्फ दो विकल्प हैं। नंबर 1 भारत में विलय या फिर जनमत संग्रह।
सरदार पटेल , निजाम के दूत के रूम में पटेल से मिलने आए सैयद कासिम रजवी से
'हैदराबाद में जनमत संग्रह तो सिर्फ तलवार के बल पर ही कराया जा सकता है।
'
सैयद कासिम रजवी सरदार पटेल से
'मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था,उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं। दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाईअड्डे से सीधे पटेल के घर गए। मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पांच मिनट में बाहर आ गए। बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा कि यदि हैदराबाद के प्रकरण पर पाकिस्तान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो क्या आप बिना किसी अतिरिक्त मदद के स्थिति से निपट पाएंगे?'
करियप्पा ने एक शब्द का उत्तर दिया, 'हां' और इसके बाद बैठक खत्म हो गई।' इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया। उन्होंने दक्षिणी कमान के प्रमुख राजेंद्र सिंह जी जडेजा को बुलावा भेजा और पूछा कि इस कार्रवाई के लिए आपको कितने दिन चाहिए? राजेंद्रजी ने उत्तर दिया 'सर, मेरे लिए एक हफ्ता पर्याप्त होगा, लेकिन मानसून के दौरान ये एक्शन नहीं हो सकता। हमें मानसून के बीत जाने तक प्रतीक्षा करनी होगी।'
जनरल एसके सिन्हा , भारतीय सेना के पूर्व उपसेना प्रमुख ,अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ्राम द हार्ट में'
हैदराबाद भारत के पेट में मौजूद एक कैंसर का रूप लेता जा रहा है जिसका इलाज एक सर्जिकल ऑपरेशन करके ही संभव है। मीटिंग में मौजूद सभी सेनाध्यक्षों ने इस पर अपनी सहमती दी, लेकिन एक सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फैसले के खिलाफ थे।
उनका कहना था कि अभी कश्मीर का मसला सुलझा नहीं है और उससे पहले हैदराबाद में सेना भेजने से हमें दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, जिसके लिए हम अभी तैयार नहीं हैं। जनरल रोबर्ट बूचर ने तो उस मीटिंग में यहां तक कह दिया कि अगर मेरी बात नहीं मानी गई तो मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूंगा।
उनके इस्तीफे कि बात सुनकर सारी मीटिंग में सन्नाटा छा गया, नेहरू यह सुनकर बुरी तरह दर गए थे जब उन्होंने सरदार पटेल की ओर देखा तो सरदार पटेल ने मुस्कुराते हुए कहा कि जनरल बूचर आप अगर अपना त्याग पत्र देना चाहते हैं तो कल क्यों आज से ही दे दीजिए क्योंकि हैदराबाद में ऑपरेशन कल से हर हाल में शुरू होगा।
इंदर मल्होत्रा 'द हॉरसेज दैट लेड ऑप्रेशन पोलो इंडियन एक्सप्रेस ,
हैदराबाद के एकीकरण की पूरी प्रक्रिया
भारत देश पर ब्रिटेन के लंबे शोषण, उत्पीड़न पूर्ण औपनिवेशिक शासन से 1947 मे स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लौह व्यक्तित्व और अदम्य साहस के धनी तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से 562 देशी रियासतों में से अधिकतर का भारत में विलय हो गया। जिन्ना जहां एक ओर द्वि राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की योजना मे सफल हो गया वहीं भारत मे अन्य रियासतें जहाँ पर सत्ता मुस्लिम शासकों के हाथ मे थी उन्हे उकसाकर इस्लामिक राज्यों के रूप में बने रहने के लिए उकसाने की योजना पर काम आरंभ किया जिससे भारत का विखंडन हो जाए।
भारत के लिए हैदराबाद की मह्त्ववता
इसी संदर्भ में हैदराबाद के निजाम की योजना भारत से अलग अपनी अलग सत्ता बनाए रखने की थी। हैदराबाद राज्य की स्थापना औरंगज़ेब के सेनापति गाज़ीउद्दीन खान फ़िरोज़जंग के पुत्र मीर क़मरुद्दीन चिनकिलिच खान ने की थी, जो खुद को खलीफा, अबू बकर का वंशज मानता था। हैदराबाद राज्य मुग़लों के कुशासन का अंतिम अवशेष था जिसकी भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह उत्तर में मध्य प्रांत, पश्चिम मे बंबई और दक्षिण एवं पूर्व मद्रास राज्य से घिरा था।
हैदराबाद ब्रिटिश भारत एक प्रमुख राज्यथा जिसकी जनसंख्या लगभग 1.6 करोड़ , वार्षिक राजस्व 26 करोड़ रुपये और क्षेत्रफल लगभग 82000 वर्ग मील था जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी बड़ा था और इसकी अपनी मुद्रा भी थी। भू राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से हैदराबाद के इतने महत्वपूर्ण स्थान के बावजूद ब्रिटिश प्रशासन ने कभी भी हैदराबाद को कोई विशेष स्थान नहीं दिया, जिसकी निज़ाम हमेशा से इच्छा रखता था।
ब्रिटिश सरकार द्वारा 3 जून की घोषणा जिसके अंतर्गत दो स्वतंत्र राष्ट्र भारत और पाकिस्तान के गठन और देशी रियासतों के लिए पाकिस्तान या फिर भारत में शामिल होने के प्रस्ताव के संदर्भ में हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान, आसफजाह सप्तम ने निर्णय किया कि उनकी रियासत पाकिस्तान और भारत में से किसी के भी साथ सम्मिलित नहीं होगी। निज़ाम ने एक फरमान जारी किया जिसमे भारत या पाकिस्तान की संविधान सभाओं मे हैदराबाद का कोई भी प्रतिनिधि न भेजने के निर्णय की अधिसूचना जारी की गयी ।
हैदराबाद राज्य की 85% जनसंख्या हिंदू थी, लेकिन प्रशासन के महत्वपूर्ण विभाग जैसे नागरिक प्रशासन, पुलिस और सेना के पदों से हिंदुओं को पूर्णतया वंचित रखा गया था, ये विभाग केवल मुसलमानों के लिए आरक्षित थे। निजाम द्वारा गठित 132 सदस्यीय विधान सभा में भी अधिकांश मुस्लिम ही थे।
निज़ाम ने छेत्री के नवाब के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल लॉर्ड माउंटबेटन से मिलने के लिए भेजा जिसमे निज़ाम द्वारा बेरार क्षेत्र को पुनः हैदराबाद को वापस सौपने और हैदराबाद को ब्रिटिश राज्य का स्वतंत्र डोमिनियन का दर्जा देने की मांग पर चर्चा करने की बात कही गयी थी।
निजाम की दोनों मांगों को अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि माउंटबेटन का मानना था कि बेरार क्षेत्र व्यावहारिक रूप से और लंबे समय से केंद्रीय प्रांत का अभिन्न अंग बन चुका था, इसलिए क्षेत्र के लोगों की सहमति से ही यथा स्थिति में कोई भी बदलाव किया जा सकता है। इसी तरह, हैदराबाद के लिए डोमिनियन की स्थिति को भी अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि माउंटबेटन का विचार था कि ब्रिटेन की सरकार प्रस्तावित दो नए देशों भारत और पाकिस्तान में से किसी एक के माध्यम से ही किसी देशी रियासत को स्वीकार करेगी। प्रस्तावों के अस्वीकार होने के बाद निज़ाम का प्रतिनिधि मण्डल वापस हैदराबाद लौट गया।
8 अगस्त को निज़ाम ने फिर से माउंटबेटन को भारत के साथ विलय न करने की मांग दोहराते हुए लिखा कि हैदराबाद अपनी स्वतंत्र संप्रभु राज्य की स्थिति को नहीं त्यागेगा किन्तु भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार है जिसमे हैदराबाद के लिए स्वायत्तता की शर्तें रखी गईं जो प्रायः एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के पास होती हैं। इन शर्तों मे विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ भारत के किसी भी युद्ध की स्थिति मे हैदराबाद राज्य के भारत के साथ पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध मे शामिल न होने के विशेषाधिकार की मांग की गई।
इस प्रस्ताव की शर्तें इतनी षड्यंत्र पूर्ण और अस्वीकार्य थी कि भारत के लिए उन्हे स्वीकार करना कदापि संभव नहीं था । इसलिए एक बार फिर प्रतिनिधि मण्डल बिना किसी निष्कर्ष के वापस चला गया। भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मामले मे सीधे हस्तक्षेप करते हुए निज़ाम से भारत में विलय का आग्रह किया। लेकिन निजाम ने पटेल के आग्रह को खारिज करते हुए 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
सरदार पटेल ने लॉर्ड माउंटबेटन को एक पत्र लिखा जिसमे निज़ाम के दुराग्रह की विस्तृत चर्चा की गयी और भारत के लिए हैदराबाद विलय की सामरिक आवश्यकता का विस्तार से उल्लेख किया। लॉर्ड माउंटबेटन भारत के साथ हैदराबाद के विलय को लेकर आशान्वित थे और उन्होंने निवेदन किया कि निज़ाम को कुछ अतिरिक्त समय दिया जाना चाहिए ताकि 15% अल्पसंख्यकों को शिक्षित किया जा सके जोकि हैदराबाद प्रशासन मे शीर्ष स्थानों पर विराजमान है ।
पटेल खुफिया सूत्रों के माध्यम से निज़ाम की गतिविधियों पर दृष्टि रखे हुए थे। हैदराबाद के निज़ाम भारत में विलय बिल्कुल नहीं कराना चाहते थे। जहाँ वह एक तरफ बार-बार प्रतिनिधि मण्डल भेजकर भारत सरकार को उलझाए रखना चाहते थे वहीं पर वो विदेशों से हथियारों की खरीद भी कर रहे थे और जिन्ना के भी संपर्क मे थे। निज़ाम ने इसी बीच अपना प्रतिनिधिमण्डल पाकिस्तान भी भेजा और यह जानने की कोशिश की कि क्या वह भारत के खिलाफ उनके राज्य का समर्थन करेंगे? जिन्ना ने निजाम के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
निज़ाम की महत्वाकांक्षाएं और गतिविधियां केवल राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर तक सीमित नहीं थी बल्कि निज़ाम एक मुस्लिम चरमपंथी संगठन मजलिस-ए-इत्तेहादुलमुसलमीन (एम्आईएम) के माध्यम से बहुसंख्यक हिंदुओं मे आतंक और डर पैदा कर के सत्ता पर अपनी पकड़ बना रखी थी। इस संगठन के पास लगभग 20 हजार सदस्य थे जिन्हे रजाकार कहा जाता था। ये निजाम के संरक्षण मे समाज मे आतंक का माहौल बनाने के लिए काम करते थे। इस संगठन के प्रमुख का नाम कासिम राजवी था जो चाहता था कि या तो हैदराबाद का विलय पाकिस्तान में हो या फिर हैदराबाद एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र रहे ।
कई दौर की बात चीत के बाद, नवंबर 1947 में, हैदराबाद ने भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें राज्य में भारतीय सैनिकों को तैनात करने के अलावा अन्य सभी व्यवस्थाओं को जारी रखा गया। इसी बीच उग्रवादी रज़ाकारो के द्वारा जिनके समर्थन से निज़ाम स्वतंत्र इस्लामिक राज्य स्थापित करना चाहता था,हिंसा, लूट और बलात्कार की गतिविधियों से राज्य के बहुसंख्यक हिंदुओं का जीवन नरक बना दिया गया। हैदराबाद मे आतंक का पर्याय बन चुके रजाकारों और निज़ाम द्वारा भारत के विरुद्ध विदेशियों के हथियार खरीदने, स्थानीय फैक्टरियों को आयुध निर्माण इकाइयों मे बदलने और पाकिस्तान से संपर्क साधने जैसे कदमो को देखते हुए सरदार पटेल ने हैदराबाद रियासत द्वारा समझौते का उल्लंघन करने का एक ज्ञापन दिया।
निज़ाम की तरफ से भारत सरकार की आपत्तियों का उचित उत्तर और समाधान देने के बजाय एक सिरे से खारिज कर दिया गया। सरदार पटेल ने हैदराबाद के निज़ाम के कदमों को गंभीरता से लेते हुए सेना को सितंबर 1948 मे हैदराबाद राज्य के विलय के लिए कार्रवाई का आदेश दे दिया। 13 सितंबर से 17 सितंबर 1948 तक चले इस 109 घंटे के अभियान को “ऑपरेशन पोलो” नाम दिया गया। 17 सितंबर को हैदराबाद के निजाम ने अपनी सेना के साथ आत्मसमर्पण कर दिया और हैदराबाद का सफलता पूर्वक भारत मे विलय हो गया।
हैदराबाद का भारत विलय भारतीय इतिहास की अद्वितीय घटना है। जहाँ एक ओर निज़ाम की तरफ से रजाकारों के माध्यम से बहुसंख्यक हिंदुओं की भारत मे विलय की इच्छा को धमका कर दबाया जा रहा था और हिन्दू-मुस्लिम एकता की दिखावटी तस्वीर दुनिया के सामने परोसी जा रही थी, वही दूसरी ओर बहुसंख्यक हिंदुओं ने भी अपने स्तर पर अपनी आवाज सामने उठाने मे कोई कमी नहीं रखी। हालांकि जिन लोगों ने निज़ाम और रजाकारों के अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई, उनमे से ज़्यादातर को अपना जान-माल गँवाकर भारी कीमत चुकानी पड़ी।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सत्याग्रहियों ने हैदराबाद मुक्ति कार्य मे बढ़चढ़कर भाग लिया। अगस्त 1946 मे जब वारंगल शहर मे रजाकारों ने मारकाट मचाई तो स्वयं सेवकों ने वारंगल किले के उत्तर क्षेत्र मे कतार बनाकर विरोध प्रदर्शन किया और तिरंगा फहराकर “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झण्डा ऊंचा रहे हमारा” का नारा लगाया। स्वयं सेवकों ने तिरंगे की सौगंध खाकर शपथली कि अपनी जान दे देंगे किन्तु तिरंगे को नहीं झुकने देंगे। पूरा का पूरा क्षेत्र “भारत माता की जय”, “इंकलाब ज़िंदाबाद”, “महात्मा गांधी की जय” के नारों से गूंज रहा था।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वारंगल का किला निज़ाम के लोगों का केंद्र था और वहाँ पर न केवल तिरंगा फहराया जा रहा था बल्कि देश भक्ति के नारे भी लग रहे थे।
15 अगस्त के बाद स्थानीय हिंदुओं ने संघ के स्वयं सेवकों की मदद से निज़ाम के विरुद्ध जन संघर्ष तेज कर दिया था । निज़ाम की सेना , रजाकार और रोहिल्ला लड़ाके सत्याग्रहियों पर अत्याचार कर रहे थे और पकड़कर जेलों मे डाल रहे थे। जनवरी 1948 मे निज़ाम ने बाहर से भाड़े के गुंडे बुलवाकर सत्याग्रहियों पर जेल के भीतर भी हमले करवाए।
राष्ट्र की मुख्य धारा मे सम्मिलित होने के लिए निज़ाम, और उसकी रजाकार निजी सेना के अत्याचारों के विरुद्ध किया गया सशस्त्र संघर्ष जनता में राष्ट्रीयता की भावना का एक अनुपम उदाहरण है। हैदराबाद पर सैन्य कार्यवाही से पूर्व युवाओं और किसानो द्वारा निज़ाम की पुलिस और रजाकारों के विरुद्ध मोर्चा खोलना हैदराबाद के भारत विलय का एक स्वर्णिम अध्याय है। बिदार क्षेत्र के किसानों द्वारा उस समय के संघर्ष के लोकगीत आज भी गाए जाते हैं।
संदर्भग्रंथ
Das, Durga (1953) SARDAR PATEL’S CORRESPONDENCE 1945-50, Vol 7
Menon, V.P. (1950) The Story of the Integration of the Indian States , Orient Longman Private Limited, New Delhi/Calcutta
Munshi,K. M(1957)The end of an era (Hyderabad Memoirs), Bharatiya Vidya Bhawan , Bombay