10 जनवरी 1966 : ताशकंद समझौता दिवस, जिसके 12 घंटे के भीतर ही पूर्व PM लाल बहादुर शास्त्री की हो गई मौत

    10-जनवरी-2024
Total Views |
 
10 January 1966 Tashkent Agreement Day
 

आज 10 जनवरी है और ही के दिन वर्ष 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था जिसे ताशकंद समझौते के नाम से जाना गया। भारत और पाकिस्तान के बीच 10 जनवरी, 1966 को उजबेकिस्‍तान की राजधानी ताशकंद में हुआ 'ताशकंद समझौता दोनों देशों के बीच हुआ एक शांति समझौता था। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 4 बड़े युद्ध हो चुके हैं और गर्व की बात यह है कि इन सभी युद्धों में भारत ने पाकिस्तान के दांत खट्टे किए हैं। लेकिन यह कहानी है 1965 के युद्ध के, जब हमारी सेना पाकिस्तानी सेना को पीछे ढकेलते हुए लाहौर के करीब पहुँच चूँकि थी, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि हमें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। 

 
1965 के युद्ध को शांत करने की वो वजह था दोनों देशों के बीच हुआ ताशकंद समझौता। इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी शक्तियों का प्रयोग एक दूसरे के बीच बीच नहीं करेंगे और अपने झगड़ों का शान्तिपूर्ण ढंग से निपटारा करेंगे। उस समय यह समझौता भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे अयूब ख़ाँ की लम्बी वार्ता के उपरान्त ताशकंद, रूस में हुआ। 
 
  
समझौते का प्रारूप
 

'ताशकंद सम्मेलन' सोवियत संघ, रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित किया गया था। दोनों देशों के बीच हुआ यह शान्ति समझौता संयुक्त रूप से प्रकाशित हुआ था। इसमें कहा गया था कि- 

 
1. भारत और पाकिस्तान एक दुसरे के खिलाफ शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने-अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटारा करेंगे। 
 
 
2. दोनों देश 25 फ़रवरी, 1966 तक अपनी सेनाएँ, 5 अगस्त, 1965 की सीमा रेखा पर पीछे हटा लेंगे। 
 
 
3. इन दोनों देशों के बीच आपसी हित के मामलों में शिखर वार्ताएँ तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएँ जारी रहेंगी। 
 
 
4. भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित होंगे। 
 
 
5. दोनों देशों के बीच राजनयिक सम्बन्ध फिर से स्थापित कर दिये जाएँगे। 
 
 
6. एक-दूसरे के बीच में प्रचार के कार्य को फिर से सुचारू कर दिया जाएगा। 
 
 
7. आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों तथा संचार सम्बन्धों की फिर से स्थापना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा। 
 
 
8. ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाएँगी कि लोगों का निर्गमन बंद हो। 
 
 
9. शरणार्थियों की समस्याओं तथा अवैध प्रवासी प्रश्न पर विचार-विमर्श जारी रखा जाएगा तथा हाल के संघर्ष में ज़ब्त की गई एक दूसरे की सम्पत्ति को लौटाने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा। 
 
 
Taskent Declaration
 
 
ताशकंद समझौते से पूर्व की घटना  
 
 
दरअसल अगस्त 1965 के पहले सप्ताह में, पाकिस्तान के करीब 30 हजार से 40 हजार सैनिकों ने जम्मू कश्मीर से लगी भारतीय सीमा में घुसने के लिए “ऑपरेशन जिब्राल्टर” (Operation Gibraltar) चलाया। पाकिस्तान की नापाक निगाहें यूँ तो हमेशा से जम्मू कश्मीर पर गड़ी रहीं लेकिन उसे उसके नापाक मंसूबों में कभी सफलता नहीं मिली ना ही मिलेगी। 1947 में युद्ध हारने के बाद 1965 में भी पाकिस्तान ने फिर अपनी नापाक मंसूबो को अंजाम देना शुरू कर दिया। पाकिस्तान का टारगेट जम्मू कश्मीर के चार ऊंचाई वाले इलाकों गुलमर्ग, पीरपंजाल, उरी और बारामूला पर कब्ज़ा करना था ताकि यदि भारी लड़ाई छिड़े तो पाकिस्तान की सेना ऊँचाई पर बैठकर भारतीय सेना को जवाब दे सके। 
 
 
लेकिन हुआ ठीक उल्टा, भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान की इस नापाक चाल को भांप लिया और “ऑपरेशन जिब्राल्टर” को फेल कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच 1965 के युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई। पाकिस्तान को चीन की तरफ से पूरा समर्थन मिल रहा था,  लेकिन इस समय चीन के रूस और अमेरिका से रिश्ते अच्छे नहीं थे इसी कारण वह युद्द में सीधे तौर पर भाग नहीं ले रहा था। चीन भले सीधे तौर पर इस युद्ध में शामिल नहीं था लेकिन वो इस जंग को खत्म करवाने की जगह इसे लंबा खिंचवाने की फ़िराक में था। लेकिन अमेरिका और रूस नहीं चाहते थे कि दक्षिण एशिया में चीन का दबदवा बढे इसलिए ये दोनों देश भारत के पक्ष में थे और युद्ध को जल्दी ख़त्म करना चाहते थे।
 
 
1965 india pakistan war image
 
 
भारतीय सेना इस युद्ध में भी हमेशा की भाँती पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ी और उसे भारतीय सीमा से पीछे ढकेलना शुरू किया। एक वक्त यह भी आया जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को खदेड़ते हुए लाहौर के बाहर तक पहुँच गयी थी। 1965 की जंग के समय भारत के आर्मी चीफ थे जयंतो नाथ चौधरी उन्हीं की एक गलती के कारण भारत को पाकिस्तान से समझौता करना पड़ा और भारत को पाकिस्तान के जीते हुए सभी इलाके लौटाने पड़े। इस समझौते को ताशकंद समझौते के नाम से जाना गया। लेकिन इस समझौते के बाद भारत को दो बड़े नुकसान हुए। पहला तो पाकिस्तान की जीती हुई जमीन को वापस लौटाना पड़ा, अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो आज POJK का मुद्दा ही नहीं होता। दूसरा सबसे बड़ा नुकसान रूस में हुए इस ताशकंद समझौते के महज 12 घंटे के भीतर ही भारत के तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। जोकि आज तक एक रहस्य बनी हुई है। 
 
 
समझौते का प्रभाव  
 

इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों पक्षों की सेनाएँ उस सीमा रेखा पर वापस लौट गईं, जहाँ पर वे युद्ध के पूर्व में तैनात थी। परन्तु इस घोषणा से भारत-पाकिस्तान के दीर्घकालीन सम्बन्धों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। फिर भी ताशकंद घोषणा इस कारण से याद रखी जाएगी कि इस पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई।