जयंती विशेष : मेजर माेहित शर्मा की शौर्यगाथा ; जिन्होंने इफ्तिखार भट बन जैश आतंकियों से की दोस्ती और फिर उतारा मौत के घाट

    13-जनवरी-2024
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Ashok Chakra Awardee Major Mohit Sharma Bravery Story
 
 
13 जनवरी, 1978- 21 मार्च, 2009
 
आज कहानी भारतीय सेना के एक ऐसे वीर जवान की जिसने आतंकियों को ख़त्म करने के लिए आतंकवादी का भेष बनाकर पहले उनका विश्वास जीता और फिर उनके ही गढ़ में उनका अंत कर दिया। जी हाँ दरअसल ये कहानी है मेजर मोहित शर्मा (Major Mohit Sharma) की जो 21 मार्च, 2009 को एक आतंक विरोधी अभियान में आतंकियों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। हालाँकि इस दौरान मेजर मोहित शर्मा ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकी मुठभेड़ में अपने साथियों की जान बचाते हुए 4 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था और अंत में गोली लगने के कारण वीरगति को प्राप्त हो गए।
 
 
13 जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक जिले में जन्में मेजर मोहित शर्मा बचपन से ही पढने में अव्वल रहे। पढाई में उत्कृष्ट और देश भक्ति का जज्बा सीने में लिए मेजर मोहित शर्मा 11 दिसंबर, 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से पासआउट हुए और उन्हें पहला कमीशन 5 मद्रास में मिला। मेजर शर्मा की पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्‍हें जम्मू कश्मीर में 38 राष्‍ट्रीय राइफल्‍स के साथ तैनात किया गया। 21 मार्च, 2009 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में मेजर मोहित शर्मा जिस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे, उस ऑपरेशन को नाम दिया गया था 'ऑपरेशन रक्षक'।
 
 
Ashok Chakra Awardee Major Mohit Sharma Bravery Story
 
 
हफरुदा के घने जंगलों में आतंकी मुठभेड़
 
 
दरअसल मेजर मोहित शर्मा को इंटेलिजेंस से यह जानकारी मिली कि कुपवाड़ा स्थित हफरुदा के घने जंगलों में कुछ आतंकी छिपे हुए हैं और वो हमले की योजना बना रहे हैं। इस बात की जानकारी मिलते ही मेजर शर्मा ने पूरे ऑपरेशन की प्‍लानिंग की और अपनी जान की परवाह किए बिना निर्भीक अपनी टुकड़ी के साथ घने जंगल में आतंकियों से लोहा लेने निकल पड़े। जंगल में छिपे आतंकियों को इस बात का आभास जैसे ही हुआ कि वो भारतीय सेना की टुकड़ी से घिर चुके हैं उन्होंने तुरंत गोलीबारी शुरू कर दी और देखते ही देखते यह ऑपरेशन मुठभेड़ के रूप में तब्दील हो गई। मेजर शर्मा की टुकड़ी आतंकियों की गोलीबारी का लगातार जवाब दे रही थी।
 
 
हालाँकि तभी एक ऐसा समय आया जब मेजर शर्मा की टीम के कमांडों आतंकियों की गोलीबारी की चपेट में आ गए।ये देखते ही मेजर मोहित शर्मा ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपने साथियों को बचाने के लिए आगे आ गए और देखते ही देखते 2 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। इसी दौरान मेजर मोहित के सीने में एक गोली लग गई। घायल होने के बावजूद वह रुके नहीं और अपने कमांडोज को लगातार निर्देश देते रहे। घायल अवस्था में भी मेजर शर्मा ने आगे बढ़कर चार्ज संभाला और वहां मौजूद अन्य 2 आतंकवादियों को भी मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इस बीच मेजर मोहित शर्मा गोली लगने के कारण बुरी तरह से घायल हो चुके थें और आखिरकार अंत में वह सीमा की सुरक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
 
 
मेजर शर्मा की बहादुरी के किस्से 
 
 
मेजर मोहित शर्मा की बहादुरी का किस्सा यहीं नहीं ख़त्म होता, बल्कि उनकी बहादुरी का एक किस्सा तो ऐसा भी है जो हर नौजवान में देशभक्ति की भावना को बढ़ा देगा। दरअसल यह किस्सा उस वक्त का है जब मेजर मोहित शर्मा ने आतंकियों के गढ़ में घुसकर आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया था। शिव अरूर और राहुल सिंह की किताब ‘इंडिया मोस्ट फीयरलेस 2’ में भी इस बात का जिक्र है कि कैसे मेजर मोहित शर्मा ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन 'हिजबुल मुजाहिद्दीन' में घुसपैठ करके 2 आतंकवादियों को मार गिराया था। दरअसल दक्षिण कश्मीर संभाग से 50 किमी दूर शोपियाँ में मेजर ने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया था।
 
 
Ashok Chakra Awardee Major Mohit Sharma Bravery Story
 
आतंकियों के गढ़ में दाढ़ी बाल बढाए मेजर मोहित शर्मा 
 
 
अंडर कवर ऑपरेशन
 
 
मेजर शर्मा ने इस काम के लिए सबसे पहले अपना नाम और हुलिया पूरी तरह से बदल लिया। आतंकवादियों के गढ़ में घुसने से पहले उन्होंने लम्बी दाढ़ी-मूँछ रख कर आतंकियों की तरह अपने हाव-भाव बनाए। फिर इफ्तिखार भट्ट नाम के जरिए वह हिजबुल आतंकी अबू तोरारा (Abu Torara) और अबू सबजार ( Abu Sabzar) के संपर्क में आए। आतंकियों के संपर्क में आने के बाद मेजर शर्मा ने बतौर इफ्तिखार भट्ट दोनों हिजबुल आतंकियों को ये कहकर विश्वास दिलाया कि भारतीय सेना ने उनके भाई को साल 2001 में मारा था और अब वह बस सेना पर हमला करके बदला लेना चाहते हैं। उन्होंने अपने मनगढ़ंत मंसूबे बताकर आतंकियों से कहा कि इस काम में उन्हें उन दोनों की मदद चाहिए। मेजर शर्मा ने दोनों आतंकियों से कहा कि उन्हें आर्मी के चेक प्वाइंट पर हमला बोलना है और उसके लिए वह जमीनी काम कर चुके हैं।
 
 
मेजर शर्मा के इस ऑपरेशन में आतंकियों ने कई बार उनसे उनकी पहचान पूछी। लेकिन वह कहते, “मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मुझको सीखना है।” तोरारा ने तो कई बार उनकी पहचान के बारे में उनसे पूछा। लेकिन आखिरकार वे मेजर शर्मा के जाल में फँस गए और मदद करने के लिए राजी हो गए। आतंकियों ने उन्हें बताया कि वह कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड रहेंगे और आतंंकी हमले के लिए मदद जुटाएँगे। मेजर शर्मा ने आतंकियों से कहा कि वह तब तक घर नहीं लौटेंगे जब तक कि अपने भाई की मौत का बदला नहीं ले लेते और सेना के चेक प्वाइंट को उड़ा नहीं देते।
 
 
Major Mohit Sharma Story
 
 
''मेरे बारे में कोई शक है तो मुझे गोली मार दो”
 
 
देखते ही देखते आने वाले दिनों में दोनों आतंकियों ने सब व्यवस्था कर ली। साथ ही पास के गाँव से 3 अन्य आतंकियों को भी बुला लिया। बीच में एक बार आतंकी तोरारा को मेजर शर्मा पर दोबारा संदेह हुआ तो उसने मेजर मोहित शर्मा से उनकी पहचान पूछी। मेजर ने उससे कहा, “अगर मेरे बारे में कोई शक है तो मुझे गोली मार दो।” अपने हाथ से राइफल छोड़ते हुए वह आतंकियों से बोले, “तुम ऐसा नहीं कर सकते, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है। इसलिए तुम्हारे पास अब मुझे मारने के अलावा कोई चारा नहीं है।” 
 
 
मेजर की बातें सुनकर दोनों आतंकी असमंजस में पड़ गए। इतने में मेजर मोहित शर्मा को मौका मिला और उन्होंने थोड़ी दूर जाकर अपनी 9 mm पिस्टल को लोड किया और दोनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने 2 गोलियाँ आतंकियों के छाती पर मारी और एक सिर में। इसके बाद वह उनके हथियार लेकर नजदीक के आर्मी कैंप में आ गए।
 
 
अशोक चक्र से सम्मानित
 
 
हालाँकि इस ऑपरेशन के 5 साल बाद कुपवाड़ा के एक सैन्य ऑपरेशन में वह स्वयं भी बलिदान हो गए। अपने आखिरी समय में भी मेजर ने अपने कई साथियों को सुरक्षित बचाया। आखिर में सीने में गोली लगने के कारण दम तो़ड़ने वाले मेजर मोहित शर्मा के शूरता के किस्से आज भी समय-समय पर दोहराए जाते हैं। देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत शांति-कालीन सैन्य अलंकरण अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
 
Written By
 
Ujjawal Mishra (Arnav)