इतिहास के पन्नों में 18 जनवरी 1989 : अमर वीर बलिदानी 2nd लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह बेदी की वीरगाथा ; जिन्होंने विदेशी सरजमीं पर अपने लहू से लिखी थी बहादुरी की दास्तां

18 Jan 2024 14:11:51
 
2nd Lieutenant Amardeep Singh Bedi
 
 
संक्षिप्त परिचय
 

अमरदीप का जन्म 25 जून 1966 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुआ था। अमरदीप के  पिता जी का नाम NMS बेदी और मां का नाम सुरजीत कौर है। उनका परिवार बरेली के सिविल लाइन्स में रहता है। पढ़ाई के साथ साथ अमरदीप को बचपन से गाने का बहुत शौक था। उनके सुरीली आवाज के लिए हार्टमैन कालेज में उन्हें नाइटिंगल आफ हार्टमैन कालेज के खिताब से नवाजा गया था। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बरेली कालेज से प्रथम श्रेणी में स्नातक किया। अमरदीप को बचपन से ही भारतीय सैनिकों के साहस और बलिदान के किस्से बेहद प्रेरित करते थे।

 
लिहाजा यही वजह थी कि उन्होंने NCC ज्वाइन कर ली थी। फिर वर्ष 1985 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल (OTS) चेन्नई में दाखिला लिया। OTS चेन्नई में एक साल के कड़े प्रशिक्षण के बाद 1986 में उन्हें मद्रास इंजीनियर ग्रुप (एमईजी) में नियुक्त किया गया था, जिसे अनौपचारिक रूप से मद्रास सैपर्स के रूप में जाना जाता था। इसके बाद भारतीय थल सेना के विख्यात मद्रास इंजीनियरिंग ग्रुप रेजिमेंट में वह सेकेंड लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुए। सेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद वे यंग लीडरशिप कोर्स(वाइएलसी) के लिए भी चुने गए। वर्ष 1987 में उनकी यूनिट को ऑपरेशन पवन में भाग लेने के लिए जाफना (श्रीलंका) भेजा गया।’ 
 
 
Operation Pawan : 1980 के दशक में श्रीलंका गृहयुद्ध की आग में जल रहा था। इन दिनों 'लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम' यानि (LTTE) ने जाफना द्वीप पर कब्जा कर रखा था, और इस दौरान श्रीलंका की सेना LTTE से मुकाबला नहीं कर पा रही थी। ऐसे में श्रीलंका की सरकार ने भारत से मदद की गुहार लगाई। भारत ने 'ऑपरेशन पवन' के तहत श्रीलंका में गृहयुद्ध खत्म करने के लिए शांति सेना भेजी। इसमें उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रहने वाले भारतीय सेना के वीर जवान 'सेकेंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह बेदी' भी उस टुकड़ी का हिस्सा थे।
 
 
लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह बेदी शौर्यगाथा 
 

‘जाफना में जंगलों में छिपे उग्रवादियों के एक सर्च आपरेशन के दौरान अमरदीप सिंह (2nd Lieutenant Amardeep Singh Bedi) अपने साथियों संग खाड़ी पार कर रहे थे। लेकिन उस स्थान पर उग्रवादी पहले से घात लगाकर बैठे थे जिसकी जानकारी अमरदीप सिंह की टुकड़ी को नहीं मिली। खाड़ी पार करते समय पहले से घात लगाए बैठे उग्रवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ने अमरदीप की टीम पर हमला बोल दिया। दुश्मनों के हमले से बचते हुए सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह ने जवाबी कार्रवाई की। हालाँकि जंगलों में उग्रवादियों की संख्या कहीं अधिक थी, लिहाजा अमरदीप की टुकड़ी दुश्मनों के हमले की रेंज में थी। 

 
 साथियों को बचाते हुए दिया सर्वोच्च बलिदान 
 
 
अमरदीप सिंह ने युद्ध के दौरान कर्तव्यनिष्ठा और बहादुरी का परिचय देते हुए सामने से दुश्मनों को सामना किया। अपने 2 साथियों को बचाने के लिए अमरदीप ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। दुश्मन पर गोलियां बरसाते हुए वह उग्रवादियों के करीब 70 मीटर नजदीक पहुंच गए। तभी कम दूरी का फायदा उठाकर उग्रवादियों ने अचानक अमरदीप पर मशीनगन से गोलियां फायर कर दी। दुश्मनों के इस हमले में सेकंड लेफ्टिनेंट अपने साथियों की जान बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। हालाँकि इस दौरान उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर अपने दोनों साथियों को जीवनदान दिया।
 

इस युद्ध में सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह के अलावा करीब 1200 भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनके इसी अदम्य साहस और बलिदान के लिए वर्ष 1990 में अमरदीप सिंह बेदी को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।  

 
अमरदीप सिंह का अंतिम ख़त 
 

अमर बलिदानी सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह बेदी के भाई कमलजीत सिंह एक बताते हैं कि, ‘ऑपरेशन पवन में जब अमरदीप सिंह सर्च ऑपरेशन के लिए जाने वाले थो तो उससे पहले उन्होंने अपने परिवार के लिए एक खत लिखा था। उन्होंने खत में लिखा था, ‘मैं सर्च ऑपरेशन पर जा रहा हूं। मेरी परवाह मत करना। जल्द ही ऑपरेशन खत्म करके मैं वापस घर आऊंगा।’ लेकिन किसे पता था कि यह ख़त अमरदीप का अंतिम ख़त होगा। अमरदीप का यह अंतिम खत उनके घर तो पहुंचा किन्तु युद्ध भूमि में उनके सर्वोच्च बलिदान के बाद। ख़त के साथ साथ उनके परिवार को उनके बलिदान की खबर पहुंची और अमरदीप का पार्थीव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ उनके घर पहुंचा तो वहां मातम पसर गया।



 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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