अमरदीप का जन्म 25 जून 1966 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुआ था। अमरदीप के पिता जी का नाम NMS बेदी और मां का नाम सुरजीत कौर है। उनका परिवार बरेली के सिविल लाइन्स में रहता है। पढ़ाई के साथ साथ अमरदीप को बचपन से गाने का बहुत शौक था। उनके सुरीली आवाज के लिए हार्टमैन कालेज में उन्हें नाइटिंगल आफ हार्टमैन कालेज के खिताब से नवाजा गया था। प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बरेली कालेज से प्रथम श्रेणी में स्नातक किया। अमरदीप को बचपन से ही भारतीय सैनिकों के साहस और बलिदान के किस्से बेहद प्रेरित करते थे।
‘जाफना में जंगलों में छिपे उग्रवादियों के एक सर्च आपरेशन के दौरान अमरदीप सिंह (2nd Lieutenant Amardeep Singh Bedi) अपने साथियों संग खाड़ी पार कर रहे थे। लेकिन उस स्थान पर उग्रवादी पहले से घात लगाकर बैठे थे जिसकी जानकारी अमरदीप सिंह की टुकड़ी को नहीं मिली। खाड़ी पार करते समय पहले से घात लगाए बैठे उग्रवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) ने अमरदीप की टीम पर हमला बोल दिया। दुश्मनों के हमले से बचते हुए सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह ने जवाबी कार्रवाई की। हालाँकि जंगलों में उग्रवादियों की संख्या कहीं अधिक थी, लिहाजा अमरदीप की टुकड़ी दुश्मनों के हमले की रेंज में थी।
इस युद्ध में सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह के अलावा करीब 1200 भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनके इसी अदम्य साहस और बलिदान के लिए वर्ष 1990 में अमरदीप सिंह बेदी को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
अमर बलिदानी सेकंड लेफ्टिनेंट अमरदीप सिंह बेदी के भाई कमलजीत सिंह एक बताते हैं कि, ‘ऑपरेशन पवन में जब अमरदीप सिंह सर्च ऑपरेशन के लिए जाने वाले थो तो उससे पहले उन्होंने अपने परिवार के लिए एक खत लिखा था। उन्होंने खत में लिखा था, ‘मैं सर्च ऑपरेशन पर जा रहा हूं। मेरी परवाह मत करना। जल्द ही ऑपरेशन खत्म करके मैं वापस घर आऊंगा।’ लेकिन किसे पता था कि यह ख़त अमरदीप का अंतिम ख़त होगा। अमरदीप का यह अंतिम खत उनके घर तो पहुंचा किन्तु युद्ध भूमि में उनके सर्वोच्च बलिदान के बाद। ख़त के साथ साथ उनके परिवार को उनके बलिदान की खबर पहुंची और अमरदीप का पार्थीव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ उनके घर पहुंचा तो वहां मातम पसर गया।