POJK & POTL के प्रसिद्ध मंदिरों, गुरुद्वारों, बौद्ध स्थलों के विध्वंस की कहानी, 1947 के बाद पाकिस्तान ने चुन-चुन कर मिटाया इतिहास

    08-जनवरी-2024
Total Views |

Story Of POJK
 
 
देश विभाजन के बाद पाकिस्तानी कबाइलियों ने 22 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर में हमला कर दिया था। उन हथियारबंद कबाइलियों के साथ पाकिस्तानी सैनिक भी शामिल थे। जिन्होंने हजारों की संख्या में निर्दोष हिंदूओं, सिखों की हत्या की थी और वर्षों पुराने मंदिरों, गुरुद्वारा और बौद्ध धर्म के धार्मिक स्थलों पर तोड़फोड़ की थी। इसके साथ ही कबाइलियों ने उन पवित्र स्थानों को गलत कार्यों के जरिये अपवित्र भी कर दिया था। इतना ही नहीं उन कबाइलियों और पाकिस्तानी सैनिकों ने हिंदू, सिख पुरूषों की हत्या करके उनके घर की महिलाओं, बेटियों के साथ बलात्कार किया था। इन घटनाओं के बाद उस वक्त बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हो गये थे। बीते 73 सालों भी पीओजेके और पीओटीएल में बचे मंदिरों, गुरुद्वारों और बौद्ध स्थानों को भी हमलावरों ने चुन-चुन क्षतिग्रस्त किया है। वहां मौजूद मंदिरों, गुरुद्वारों की इमारतें पूरी तरह से खंडित हो चुकी है। जहां पर वहां के स्थानीय नागरिक अब पशुओं को रखते है।
 
 
शारदा पीठ - भारतीय सभ्यता व संस्कृति का केंद्र
 
 
हिंदूओं का यह धार्मिक स्थल लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है। प्राचीन काल से कश्मीर को शारदापीठ के नाम से ही जाना जाता है, जिसका अर्थ है देवी शारदा का निवास। यह मंदिर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र नीलम नदी के तट पर स्थित है। पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद धीरे-धीरे यह मंदिर खंडित हो चुका है। मान्यता है कि देवी सती के शरीर के अंग उनके पति भगवान शिव द्वारा लाते वक्त यहीं पर गिरे थे। इसलिए यह 18 महाशक्ति पीठों में से एक है या कहें कि ये पूरे दक्षिण एशिया में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर, शक्ति पीठ है। आज भारतीय हिंदू माता के दर्शन के लिए उत्सुक रहते है, लेकिन पाकिस्तान के कब्जे में होने के कारण कोई भारतीय आसानी से यहां नहीं जा पाता है। 1948 तक, गंगा अष्टमी पर नियमित शारदापीठ यात्रा शुरू होती थी। भक्त नवरात्रों के दौरान मंदिर भी जाते हैं। मंदिर के आसपास कई अन्य छोटे खंडित मंदिर और हिंदू पूजा स्थल आज भी मौजूद है।
 

Story Of POJK 
 
शारदा विश्वविद्यालय
 
 
जम्मू-कश्मीर के प्रोफ़ेसर अयाज रसूल नाजली वर्ष 2007 में शारदा पीठ गये थे। यह पीओजेके में मुजफ्फराबाद से 160 किलोमीटर दूर है। शारदा पीठ को वहाँ के लोग शारदा पीठम भी कहते है। शारदा पीठ सिर्फ हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्म के लिए भी अहम है। यहाँ से ही ‘कल्हण’ और ‘आदिशंकर’ जैन दार्शनिक निकले थे। नाजली ने अपने पुस्तक ‘इन सर्च ऑफ रूट्स’ में लिखा है कि कनिष्क के शासन काल के समय शारदा सेन्ट्रल एशिया में सबसे बड़ी शैक्षिक संस्थान था। इस संस्थान में बौद्ध धर्म के अलावा इतिहास, भूगोल, संरचना विज्ञान, तर्क और दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी। उन्होंने बताया कि इस विश्वविधालय में अपनी खुद की एक लिपि भी विकसित की थी जिसे शारदा लिपि के नाम से जाना जाता है। उन्होंने बताया कि उस वक्त इस विश्वविद्यालय में दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तकालय भी थी।
 
 
 
पाकिस्ताने के कब्जे वाले मीरपुर शहर में वर्षों पहले कई मंदिर थे, जिनमें से अधिकांश मंगला बांध के निर्माण के समय जलमग्न हो गये थे। आज भी मंगला डैम में पानी का स्तर कम होने पर मंगला देवी मंदिर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ट्रिप एडवाइजर जैसी यात्रा पुस्तकों में भी मीरपुर में एक शिवाला मंदिर और बाणगंगा मंदिर के बारे में वर्णन है। इसी तरह पीओजेके में पुंछ के पास एक देवी गली मंदिर है। देवी गली में घने देवदार के जंगल और पहाड़ों से घिरी हरी-भरी घास की मैदान हैं। देवी गली का नाम इस क्षेत्र के इतिहास से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह स्थान पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र पर कब्जे से बरसों पहले से हिंदुओं के लिए एक पवित्र पूजा स्थल था।
 
Story Of POJK
 
मीरपुर में क्षतिग्रस्त मंदिर
 
अली बेग गांव में सिखों के लिए अली बेग गुरुद्वारा एक लोकप्रिय पूजा स्थल था। जिसे पीओजेके में पाकिस्तानी अधिकारियों ने अब मोहम्मद यक़ूब शहीद हाई स्कूल फॉर गर्ल्स में बदल दिया है।स्कूल में तब्दील होने से पहले यहां पर पुलिस स्टेशन और साबुन का कारखाना भी हुआ करता था।
 
 
  POJK Alibeg Gurudwara
 
 
पाकिस्तान में मौजूद मंदिरों का सच
 
 
2014 में पीओजेके में पुरातात्विक स्थलों के दस्तावेज इकठ्ठा करने के लिए प्रयास किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार थोरची किला, शारदा किला, चक किला, बरनाद किला, ऐयन किला रणबीर सिंह बरदरी, हिंदू मंदिर, रॉक-कट अभयारण्य, बारादरी कुएं, अली बेग गुरुद्वारा और स्मारक ऐतिहासिक छापों वाले रॉक बोल्डर का दस्तावेजीकरण किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहां अब यह सभी स्थान आवारा पशुओं और मादक पदार्थों का आश्रय बन गया है।
 
 
करगह बुद्ध
 
 
करगह बुद्ध एक पुरातात्विक स्थल है जो गिलगित के बाहर लगभग 6 मील (9.7 किमी) दूर पर स्थित है। यहां एक खड़े बुद्ध की नक्काशीदार प्रतिमा है,संभवतः 7 वीं शताब्दी की है। गिलगित में बोली जाने वाली शिन भाषा में इसे यशान या यक्षिणी कहते है।
 
 
  POJK Alibeg Gurudwara
 
 
स्कर्दू टाउन के पास मेंथल गाँव में स्थित मन्थल बुद्ध रॉक एक बड़ी ग्रेनाइट चट्टान है। जिस पर भगवान बुद्ध की तस्वीर उकेरी गई है जो संभवत: 8 वीं शताब्दी की है। बुद्ध रॉक स्कर्दू में बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण अवशेषों में से एक है। इस नक्काशी के बारे में दुनिया को 20 वीं शताब्दी में पता चला है। 1906 में स्कॉटिश यात्री एला क्रिस्टी ने पश्चिमी तिब्बत की अपनी यात्रा पर एक पुस्तक लिखी और अपनी पुस्तक में नक्काशी को प्रदर्शित किया था, जिसके बाद इस नक्काशी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान खींचा था।
 
 
  POJK Alibeg Gurudwara
 
 
स्कर्दू में गुरुद्वारा
 
 
स्कर्दू में छोटा नानकियाना गुरुद्वारा स्थित है। माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव चीन से वापस आ रहे थे। तब वह इस जगह पर रूके थे। इसे स्थानीय लोगों द्वारा "अस्थाना नानक पीर" भी कहा जाता है। यह स्कर्दू किले से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल गर्मियों में हजारों लोग इस जगह पर दर्शन करने आते है। देखरेख नहीं होने के कारण गुरुद्वारे की इमारत की स्थिति आज अच्छी नहीं है।
 
 
  POJK Alibeg Gurudwara
 
 
पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में ऐसे बहुत सारे धार्मिक, पवित्र स्थल आज भी मौजूद है, जिनका रखरखाव नहीं होने के कारण उनकी इमारत ढह गई है। बचे हुये मंदिर, गुरुद्वारा आवारा पशुओं और मादक पदार्थों का आश्रय बन गया है।
 
 
गिलगित-बालतिस्तान
 
 
गिलगित-बालतिस्तान का इतिहास और भारत से उसका संबंध वर्षों पुराना है।
 
 
जम्मू में डोगरा राजवंश के संस्थापक महाराजा गुलाब सिंह थे। गुलाब सिंह का राजा के तौर पर राजतिलक महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं किया था। गुलाब सिंह ने अपने राज्य का विस्तार लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान तक किया था। 1846 में कश्मीर घाटी भी इसमें शामिल हो गया था। इस प्रकार आज का चर्चित जम्मू-कश्मीर रियासत ने मानचित्र पर अपना स्थान लिया था। जम्मू-कश्मीर की सीमाएँ एक ओर तिब्बत और दूसरी ओर अफगानिस्तान व रूस से मिलती थीं। गुलाब सिंह ने अगस्त, 1857 में अंतिम श्वास ली। उनके बाद उनके 26 साल के बेटे रणवीर सिंह राजगद्दी पर बैठे। रणवीर सिंह के चार पुत्र हुए। प्रताप सिंह सबसे बड़े पुत्र थे। लगभग तीस साल राज्य करने के बाद 55 साल की उम्र में 12 सितंबर, 1885 को रणवीर सिंह की मृत्यु हो गई और परंपरानुसार उनके बड़े सुपुत्र प्रताप सिंह का राजतिलक हुआ। अगले कुछ ही वर्षों में ही प्रताप सिंह ने राज्य को बखूबी संभाल लिया और राज्य की सीमा में विस्तार करना शुरू कर दिया। 1891 में प्रताप सिंह की सेना ने गिलगित की हुंजा वैली, नागर और यासीन वैली को भी अपने राज्य में मिला लिया। अब प्रताप के राज्य की सीमाएं उत्तर में रूस तक मिलने लगी थी। गिलगित-बाल्टिस्तान में लंबे समय तक बौद्ध धर्म के लोग रहते थे। इसका साक्ष्य आज भी देखने को मिलता है।