
India-Pakistan War 1971 : इतिहास में जब कभी बांग्लादेश (Bangaldesh) के अस्तित्व की बात होगी, तब पाकिस्तान के जुल्म, आतंक, बर्बरता और इसके ख़िलाफ़ भारत के अदम्य साहस का ज़िक्र हमेशा होगा। दिसंबर 1971 से पहले विश्व मानचित्र पर बांग्लादेश का कोई अस्तित्व नहीं था। बल्कि इसे पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) के नाम से जाना जाता था और वर्तमान पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान (West Pakistan) के नाम से जाना जाता था। 1947 में भारत से दो सबसे बड़े सूबे कटकर अलग हुए जिनमें से एक था बंगाल सूबा। लेकिन इस बीच बांग्लादेश के बनने की जो कहानी है वो साल 1947 से शुरू हो चुकी थी। भाषा, प्रांत, आर्थिक भेदभाव समेत राजनीतिक द्वेष के दंश के बीच पूर्वी पाकिस्तान में कई आंदोलन हुए। इसका नतीजा हुआ साल 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध। लिहाज़ा आज की कड़ी में हम सिलसिलेवार ढंग से बांग्लादेश का बनने और उसमें भारत के निर्णायक भूमिका के बारे में बात करेंगे।
16 दिसंबर, 1971 आधुनिक भारत के इतिहास की एक ऐसी तारीख जिस दिन हमारे सशस्त्र बलों, हमारी सेना ने एक अद्भुत उपलब्धि हासिल की। इस दिन हमारी सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के जुल्म, आतंक और बर्बरता से पूर्वी पाकिस्तान को लंबे संघर्ष और पीड़ा से मुक्ति दिलाकर एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण किया। इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज यही वो तारीख है जब पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष अपने हथियार डाल कर आत्मसमर्पण किया था। भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष ढाका में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी के नेतृत्व में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। इस ऐतिहासिक उपलब्धि की याद में भारत हर वर्ष 16 दिसम्बर को विजय दिवस के रूप में मनाता है। लेकिन इस युद्ध की शुरुआत हुई कैसे इस पर नजर डालते हैं।
विस्तृत विवरण
दरअसल 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक नए इस्लामिक मुल्क के रूप में आस्तित्व में आया तभी से पाकिस्तान अपनी नापाक साजिशों को अंजाम देना शुरू कर दिया था। बंटवारे के दौरान (बांग्लादेश) पूर्वी पाकिस्तान और (वर्तमान पाकिस्तान) पश्चिमी पाकिस्तान हुआ करता था। 1947 विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में दो तरफ़ के ज़मीन के हिस्से आए। एक भारत के पश्चिम का और एक भारत के पूर्व का। उस दौर में बंगाल से सटे पूर्वी हिस्से को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। पूर्वी पाकिस्तान में लगभग 75 मिलियन बंगाली बोलने वाले हिन्दू और मुस्लिम रहते थे। बंगाली मुसलमान अलग दिखते थे और उनकी राजनैतिक विचारधारा भी अलग थी। बंगाली मुसलमानों की विचारधारा उदारवादी थी यानि वे लिब्रल सोच रखते थे।
पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान के बीच न सिर्फ़ 1600 किलोमीटर की ज़मीनी दूरी थी बल्कि दोनों हिस्सों की सोच, खान-पान, बोली सब कुछ अलग था। पश्चिम पाकिस्तान के अधिकारियों ने बंगाली भाषा, बंगाली संस्कृति को ख़त्म करने की की हर मुमकिन कोशिश की और इस अन्याय ने पूर्वी पाकिस्तान के सीने में धधक रही आग के लिए हवा का काम किया। पूर्वी पाकिस्तान में अलग राष्ट्र बनने के स्वर तेज़ होने लगे। 1948 में जिन्ना ने पूर्वी पाकिस्तान का दौरा किया और वहां एक देश में एक भाषा यानि उर्दू को ही मान्यता देने की बात कही। इसके बाद जब पाकिस्तान ने 1951 में उर्दू को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कर दी तो उधर पूर्व में विरोध की हूंकार भरी गई। अब पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बांग्ला को दूसरी भाषा घोषित करने की अपील की लेकिन पश्चिमी पाकिस्तानी अधिकारियों ने एक न सुनी।

8 अगस्त 1971 शेख मुजीबुर रहमान के समर्थन में रैली
पाकिस्तान में 1970 का चुनाव
शेख मुजीबुर रहमान कुछ बंगाली नेताओं के साथ मिलकर पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता और पश्चिमी पाकिस्तान के जुल्मों सितम से मुक्ति के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। यही कारण था कि पाकिस्तान के निशाने पर आ गए। किन्तु इन सब के बीच इस विवाद में मुख्य मोड़ 1970 में हुए चुनाव में आया। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान के बीच यूँ तो तनाव 1947 से ही चल रहा था। लेकिन 1970 में हुए चुनाव ने दुनिया को दिखा दिया कि पूर्वी पाकिस्तान के बाशिंदे असल में क्या चाहते हैं। पाकिस्तान के बनने के बाद ये पहला आम लोकतांत्रिक चुनाव था। शेख मुजीबुर रहमान की आवामी लीग (Awami League) ने इस चुनाव में जबरदस्त ऐतिहासिक जीत हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीट मुजीब की पार्टी को मिली। 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत था। लेकिन पश्चिम पाकिस्तान ने उन्हें सरकार बनाने ही नहीं दिया। मुजीब के साथ हुए इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग तेज हो गई। हजारों लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे। इस आन्दोलन से निपटने के लिए पश्चिम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री याह्या ख़ान ने पूर्वी पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू कर दिया।
पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान का अत्याचार
पश्चिम पाकिस्तान ने 1971 के युद्ध से पहले के कुछ महीनों में पूर्वी पाकिस्तान को चीखों से गूंजा दिए और सड़कें ख़ून से रंग दिए। पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तानी लोगों के साथ जो अत्याचार और जुल्म किया उसकी तुलना हिटलर के द्वारा यहूदियों के नरसंहार से की जाती है। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान से देशभक्ति, भाषा भक्ति को निकाल बाहर करने की ठान ली। ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया गया और बंगाली राष्ट्रवादियों की बेरहमी से हत्या शुरु कर दी गई। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की आज़ादी में महिलाओं और पुरुषों दोनों ने ही संघर्ष किया। पश्चिमी पाकिस्तान के धार्मिक नेताओं ने खुले तौर पर बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों को "हिंदू" बताया जबकि उस समय 80% बंगाली लोग मुसलमान थे। इतना ही नहीं उन्होंने बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई को कमजोर करने के लिए बंगाली महिलाओं को "युद्ध की लूट" के रूप में चिह्नित करके बलात्कार जैसे अपराध का समर्थन भी किया। इससे पाकिस्तानी सेना ने ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के समर्थकों ने भी बड़े पैमाने पर महिला क्रांतिकारियों का बलात्कार किया।
3 लाख लोगों की नृशंस हत्याएं
पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान की महिलाओं को गर्भवती करने के उद्देश्य से उनका बलात्कार करते थे। 9 महीनों तक चले बांग्लादेश लिब्रेशन वॉर के दौरान पाकिस्तानी सेना, बांग्लादेश के इस्लामिक दलों ने मिलकर 2 से 3 लाख लोगों की जान ली और 2 से 4 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किए। हालांकि पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर मृतकों की संख्या सिर्फ़ 26000 बताता है। लेकिन यह मृतकों की संख्या 3 से 4 लाख के करीब थी। पाकिस्तानी सेना के आदेश पर बांग्लादेश के बौद्धिक समुदाय के एक बड़े वर्ग की हत्या कर दी गई थी। इतना ही नहीं आत्मसमर्पण के ठीक 2 दिन पहले 14 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने 100 चिकित्सकों, प्रोफेसरों, लेखकों और इंजीनियरों को उठा लिया और उनकी हत्या कर शवों को एक सामूहिक कब्र में छोड़ दिया। बांग्लादेश में मुक्ति बाहिनी अपने तरीके से लड़ाई लड़ रही थी। कॉलेज के युवक-युवतियां, आम लोग सभी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे और संघर्ष कर रहे थे।
बांग्लादेश लिब्रेशन वॉर के दौरान भारत ने राशन भेजकर और अपनी सेना भेजकर बांग्लादेश की सहायता की। युद्ध के दौरान ही लाखों-करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली। भारत के लिए ये एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थी देख भारत के लिए चिंताएं बढना लाजमी था। इसे रोकने के लिए भारत को अब युद्ध में उतरना ही पड़ता। 31 मार्च, 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल लोगों की मदद करने की घोषणा की गई। जिसके बाद फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के कुशल नेतृत्व में भारतीय सेना ने अपनी तरफ से युद्ध में उतरने की तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था।
भारतीय एयरबेस पर पाकिस्तान का हमला
3 दिसंबर को पाकिस्तान ने 11 भारतीय हवाई क्षेत्रों पर हमला कर दिया था। जिसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों पर हमला कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने 'पूर्वी पाकिस्तान' के लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का आदेश दिया। भारत की और से इस युद्ध का नेतृत्व फील्ड मार्शल मानेकशॉ कर रहे थे। पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में भारत के 1400 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। इस युद्ध को भारतीय सैनिकों ने पूरी बहादुरी के साथ लड़ा और पाकिस्तानी सैनिकों की एक भी न चलने दी। इस युद्ध में पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ। 3 दिसंबर 1971 से शुरू हुआ यह युद्ध महज 13 दिन चला। इसके बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल ए.ए. खान नियाज़ी ने लगभग अपने 93,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने समर्पण कर दिया। इसी कारण से हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
युद्ध में अमरीका और सोवियत संघ
अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमरीका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थीं। ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला किया। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध (India-Pakistan War 1971) में कई उड़ानें भरीं और एक हफ्ते के अंदर भारतीय वायु सेना के विमानों ने पूर्वी पाकिस्तान के आसमान पर अपना दबदबा बना लिया था। भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के पहले सप्ताह के अंत तक भारतीय वायुसेना ने लगभग पूरी तरह से हवाई वर्चस्व हासिल कर लिया था। इसका एक कारण ये भी था कि पूर्व में पूरी पाकिस्तानी वायु टुकड़ी, PAF नंबर 14 स्क्वाड्रन, तेजगाँव, कुर्मीटोला, लालमोनिरहाट और शमशेर नगर में भारतीय और बांग्लादेश के हवाई हमलों के कारण जमींदोज हो गई थी।
भारतीय सेना ने पाकिस्तान में मचाई तबाही
भारतीय नौसेना के युद्धपोत INS विक्रांत के 'सी हॉक्स फाइटर जेट' ने चटगाँव, बरिसाल और कॉक्स बाजार पर भी हमला किया जिससे पाकिस्तान नेवी का ईस्ट विंग तबाह हो गया और पूर्वी पाकिस्तान के बंदरगाहों को प्रभावी ढंग से ब्लॉ़क कर दिया। इससे फंसे हुए पाकिस्तानी सैनिकों के बचने के सभी रास्ते भी बंद हो गए थे। उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी मीटिंग करने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस हमले से पकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणामस्वरूप 16 दिसंबर, 1971 को दोपहर के तकरीबन 2:30 बजे आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय पाकिस्तानी सेना के लगभग 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।

इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया। ये युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसीलिए देश भर में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष में 16 दिसंबर को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3,900 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए। युद्ध के 8 महीने बाद अगस्त 1972 में भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौता (Shimla Agreement 1972) किया। इसके अंतर्गत बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था।
आज विजय दिवस के अवसर पर देश के सभी वीर सैनिकों को हमारा नमन। साथ ही युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए माँ भारती के वीर सपूतों को हमारी श्रद्धांजली।