अंतरिक्ष में डॉकिंग की प्रक्रिया सबसे पहले अमेरिका ने 16 मार्च, 1966 को की थी। इसके बाद, सोवियत संघ ने 30 अक्टूबर, 1967 को दो स्पेसक्राफ्ट को जोड़ने में सफलता हासिल की। चीन ने पहली बार 2 नवंबर, 2011 को अंतरिक्ष में डॉकिंग की। अब भारत ने भी इस तकनीक में कदम रख लिया है, और इसके साथ ही यह रूस, अमेरिका और चीन के साथ उस क्लब का हिस्सा बन गया है, जहां डॉकिंग और अनडॉकिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
यह डॉकिंग तकनीक भारत के आगामी चंद्रयान-4 मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिसमें चांद से सैंपल लाने की योजना है। इसके अलावा, भविष्य में भारत अपने खुद के अंतरिक्ष स्टेशन – भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन – का निर्माण भी करेगा, जिसमें कई अंतरिक्ष यानों को जोड़ने के लिए डॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। 2040 तक, जब एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को चांद पर भेजने और वापस लाने की योजना बनाई जा रही है, तब भी डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
इस मिशन में पीएसएलवी रॉकेट से 2 छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा गया। ये उपग्रह करीब 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दूसरे के पास आकर डॉकिंग और अनडॉकिंग प्रक्रिया का परीक्षण करेंगे। ISRO के वैज्ञानिक इन उपग्रहों को धीरे-धीरे करीब लाएंगे और करीब आने के बाद डॉकिंग करेंगे। मिशन की सफलता से यह साबित हो गया है कि भारत अब अंतरिक्ष में इस तरह की जटिल तकनीक को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सक्षम है।
इस स्पैडेक्स मिशन की सफलता से ISRO को अंतरिक्ष में मानव युक्त मिशनों की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि मिली है। भविष्य में जब भारत अपने अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करेगा या अंतरिक्ष यान के जरिए मानव मिशन भेजेगा, तो इस तकनीक का उपयोग अहम साबित होगा। इसके अलावा, इस डॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल उपग्रहों की सेवा, अंतरिक्ष में संसाधनों का प्रबंधन, और विभिन्न अंतरिक्ष अभियानों में किया जाएगा।
इस मिशन के बाद, ISRO ने पीएसएलवी रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग स्टार्ट-अप्स और निजी संस्थानों को बाहरी अंतरिक्ष में प्रयोग करने का अवसर देने के लिए किया है। भारत का अंतरिक्ष नियामक, IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Center), इन प्रयोगों को वास्तविकता में बदलने में मदद कर रहा है। स्टार्ट-अप्स और निजी विश्वविद्यालयों के उपकरणों का उपयोग अंतरिक्ष में विभिन्न प्रकार के प्रयोगों के लिए किया जाएगा।
इसरो द्वारा किए जा रहे कुछ प्रयोगों में से एक है बाहरी अंतरिक्ष में बीज के अंकुरण का प्रदर्शन। इसके तहत, इसरो ने अंतरिक्ष में पौधों के विकास और अंकुरण का अध्ययन करने के लिए क्रॉप्स नामक अनुसंधान मॉड्यूल का विकास किया है। इसके तहत, लोबिया और पालक जैसे बीजों के अंकुरण और विकास की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाएगा। इसके अलावा, मलबे को पकड़ने के लिए रोबोटिक हाथ और हरित प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण भी किया जाएगा।