Pulwama Terror Attack : 14 फरवरी, 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा किये गए आत्मघाती हमले में CRPF के हमारे 40 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके अलावा हमले में घायल जवानों में से 9 अन्य जवान भी इलाज के दौरान अपने प्राण न्योच्छावर कर गए। यानि करीब 49 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। पिछले 30 सालों में जम्मू कश्मीर में ये सबसे बड़ा आतंकी हमला था। ज्यादातर जवान छुट्टी मनाकर वापिस लौटे थे और कश्मीर में उन्हें अपने ड्यूटी पर तैनात होना था। आज पुलवामा हमले की पांचवीं बरसी पर पूरा देश आज उनके शौक में डूबा है। हमले में वीरगति को प्राप्त हुए जवान देश के तमाम हिस्सों से थे, वो सिख भी थे, मुस्लिम भी और हिंदू भी। लेकिन क्षेत्र और मजहब से ऊपर उठकर उन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। आगे पढ़िए इन अमर बलिदानियों की कहानी... ताकि हमारे दिलों में ये हमारे जावन हमेशा जिंदा रहें। उनके पराक्रम उनका शौर्य उनका बलिदान हमें प्रेरणा देता रहे।
रोहिताश लाम्बा (राजस्थान)
3 महीने की बेटी का चेहरा तक नहीं देख पाए बलिदानी रोहिताश लाम्बा। पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद होने वालों में राजस्थान निवासी जवान रोहिताश लांबा भी वीरगति को प्राप्त हो गए। जब मौत की खबर उनके परिजनों को मिली तो उनके घर पर मातम पसर गया। करीब एक साल पहले ही रोहिताश शादी के बंधन में बंधे थे। तीन माह पहले ही उनकी पत्नी ने बच्ची को जन्म दिया था।
मनोज कुमार बेहरा (ओडिशा)
मनोज कुमार बहेरा ओडिसा के कटक जिले के नियाली इलाके के रतनपुर गाँव के थे। पुलवामा आतंकी हमले में बलिदान हुए कांस्टेबल मनोज कुमार बेहरा की शादी दो साल पहले ही हुई थी। 2006 में वे सीआरपीएफ में शामिल हुए थे।
एच गुरु(कर्नाटक)
गुरु (33) मांड्या जिले के मद्दुर तालुक के गुडीगेरे गाँव से थे। वह आत्मघाती हमले में जान गंवाने वाले 42 सुरक्षाकर्मियों में से एक थे। वह सीआरपीएफ की 82 वीं बटालियन का सदस्य थे। उन्होंने गुडीगेरे के एक सरकारी स्कूल में पढाई की और एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में टेक्निकल में कोर्स किया। उन्होंने अपना प्रशिक्षण तो पूरा किया लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की और लगभग पांच साल पहले भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल हो गए। वह झारखंड में 94 वीं बटालियन के साथ तैनात थे। लगभग छह महीने पहले, वह अपने गाँव में एक नए निवास स्थान पर चले गए थे और पास के सासापुर गाँव की रहने वाली कलावती से शादी कर ली थी। उनके घर में उनकी पत्नी, पिता होन्नाह, माँ चिककोलम्मा और दो छोटे भाइयों, मधु और आनंद रहते है।
मानेश्वर बासुमतारी (असम)
सीआरपीएफ -98 बटालियन के शहीद हेड-कांस्टेबल मानेश्वर बासुमतारी असम के बक्सा जिले के तामुलपुर के कोलबारी गाँव के मूल निवासी थे। बसुमतारी के परिवार में उनकी पत्नी सुनमती बासुमतारी और दो बच्चों - धनंजय और दिद्मेश्वरी हैं।
जयमल सिंह(पंजाब)
मोगा जिले के कस्बा कोट इसे खां के रहने वाले सीआरपीएफ जवान जयमल सिंह, सीआरपीएफ की जिस बस को फिदायीन आतंकी ने निशाना बनाया उस बस को जयमल चला रहे थे। परिजनों ने बताया कि आमतौर पर जयमल की ड्यूटी ऑफिस में रहती थी, गुरुवार को उन्होंने लंबे अरसे बाद बस की स्टेयरिंग थामी थी। 26 अप्रैल 1974 को जन्मे जयमल सिंह 19 साल की उम्र में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे।
सुखजिंदर सिंह(पंजाब)
तरनतारन जिले के गंडीविंड धात्तल गांव के रहने वाले सुखजिंदर सिंह ने भी इस आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए। सुखजिंदर ने 17 फरवरी 2003 को 19 साल की उम्र में सीआरपीएफ ज्वाइन की थी। 8 महीने पहले ही वह प्रोमोट होकर हेडकांस्टेबल बने थे। पूरे परिवार की जिम्मेदारी उन पर थी। 2010 में शादी होने के 7 साल की मन्नतों के बाद 2018 में सुखजिंदर सिंह को बेटे की खुशी मिली, जिसका नाम उन्होंने बड़े चाव से गुरजोत सिंह रखा। अब 7 महीने बाद ही मासूम के सिर से पिता का साया उठ गया।
कुलविंदर सिंह (पंजाब)
रोपड़ जिले के गांव रौली निवासी दर्शन सिंह के इकलौता बेटा कुलविंदर सिंह भी पुलवामा हमले में शहीद हो गए। कुलविंदर का जन्म 24 दिसंबर 1992 को हुआ था। 2014 में वह सेना में भर्ती हुआ था। हाल ही में उसकी मंगनी हुई थी। नवंबर में शादी तय की थी। गुरुवार को हमले के बाद उसकी यूनिट के एक जवान ने फोन किया था, पर उसने सही से जानकारी नहीं दी। शाम को मोबाइल पर शहीदों की लिस्ट आई तो उन्हें बेटे की शहादत का पता चला। इकलौते बेटे की शहादत के बाद अंदर से टूट चुके पिता ने कहा, 'मैं बर्बाद हो गया, पर इस बात पर गर्व है कि बेटा देश के काम आया।'
मनिंदर सिंह(पंजाब)
एक साल पहले ही सीआरपीएफ में भर्ती हुए दीनानगर के रहने वाले मनिंदर सिंह भी इस हमले में शहीद हो गए। 37 साल के मनिंदर दो दिन पहले ही छुट्टी से ड्यूटी पर लौटे थे। उनके पिता को बेटे की शहादत पर गर्व भी है और गम भी। साथ ही इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों पर गुस्सा भी उनकी आंखों में है।
अश्विनी कुमार काछी(मध्यप्रदेश)
अश्विनी बचपन से सेना में भर्ती होकर देश सेवा करना चाहता था। राजस्थान में ट्रेनिंग पूरी होने के बाद छह महीने पहले ही वे जम्मू-कश्मीर में तैनात हुए थे। घर में इकलौते अश्वनी को ही सरकारी नौकरी मिली थी। अश्विनी अपने परिवार में सबसे छोटे थे। अश्विनी के घर में माता-पिता के अलावा पांच भाई-बहन हैं। वह सीआरपीएफ की 35वीं बटालियन में पदस्थ थे।
तिलकराज(हिमाचल प्रदेश)
तिलक कांगड़ा के गांव धेवा के रहने वाले थे। तिलकराज तीन दिन पहले ही गांव से छुट्टी पूरी करके ड्यूटी पर पहुंचे थे। वह अपने नवजात बेटे को देखने आए थे। हर समय खुश रहने वाले और मिलनसार तिलकराज गांव से निकले तो उन्होंने अपने दोस्तों और परिजनों से कहा था कि जल्द ही वापस आउंगा। 11 फरवरी को घर से ड्यूटी जाने के मात्र 3 दिन के बाद उसके शहीद होने की खबर गांव में पहुंच गई।
प्रसन्ना साहू (ओडिशा)
वीर बलिदानी प्रसन्ना साहू जगतसिंहपुर जिले के शिखर गांव के निवासी थे। सीआरपीएफ की 61 बटालियनों में कांस्टेबल के रूप में तैनात पिछले साल नवंबर में अपने घर आए थे।
नितिन राठौर (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के चौरपंगरा गाँव के एक मूल निवासी, राठौड़ 2005 में सीआरपीएफ में शामिल हुए थे। वह इस साल पदोन्नति होने वाले थे। वह CRPF की G कंपनी की 03 बटालियन में थे। राठौड़ के बहनोई अशोक चव्हाण बताया, "वह अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के बाद 9 फरवरी को कश्मीर के लिए रवाना हुए थे। वह एक महीने के लिए यहां थे। मैं उन्हें अकोला स्टेशन पर छोड़ने गया था। गुरुवार को, लगभग। सुबह मेरी बहन ने उनसे बातचीत की।
राम वकील (उत्तरप्रदेश)
विनायकपुर गांव के रहने वाले जवान राम वकील की पत्नी की मौत हो चुकी है। उनके तीन बच्चे हैं जिनकी देखरेख उनकी बूढ़ी मां करती हैं। तीनों बच्चों के सिर से मां के बाद अब पिता का साया भी उठ गया है।
संजय राजपूत (महाराष्ट्र)
शहीद संजय सिंह 1996 में सीआरपीएफ में शामिल किये गए। पहली पोस्टिंग त्रिपुरा में थी। 11 साल तक देश की सेवा करने के बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर में पोस्टिंग मिली,मलकापुर के शहीद जवान संजय राजपूत के दो बेटे जय (12 वर्ष की आयु) और शुभम (8) हैं, और उनकी पत्नी सुषमा परिवार के साथ नागपुर में रहती हैं। 10 फरवरी को संजय राजपूत से मलकापुर आए थे, नागपुर में छुट्टियां बिता लेने के बाद जम्मू के लिए निकल गए। यह उनकी अंतिम यात्रा थी।
नसीर अहमद (जम्मू-कश्मीर)
शहीद नशीर अहमद, राजौरी जिले के डोडासन-बाला गाँव का निवासी थे। 46 वर्षीय अहमद सेना में हेड कांस्टेबल के रूप में काम कर रहे थे और 22 साल की सेवा पूरी कर चुके थे। नशीर अहमद शहादत से पहले उस बस के कमांडर थे जिसे आत्मघाती हमले में निशाना बनाया गया।
अधवेश यादव (उत्तरप्रदेश)
पुलवामा के आतंकी हमले में चंदौली का लाल अवधेश यादव भी वीरगति को प्राप्त हो गए। अवधेश यादव 45वीं बटालियन में तैनात थे। रेडियो आपरेटर सिग्नल पद पर तैनात थे. अवधेश मुगलसराय कोतवाली के बहादुरपुर गांव के रहने वाले थे।
श्याम बाबू (उत्तरप्रदेश)
कानपुर देहात के डेरापुर थाना के रैगवा के रहने वाले श्याम बाबू बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई करते हुए ही 2007 में उन्होंने सीआरपीएफ ज्वाइन की थी. श्याम लाल के दो बच्चे हैं. एक लड़का 4 वर्ष का और एक लड़की 5 माह की है।
अजीत कुमार आज़ाद(उत्तरप्रदेश)
शहीद होने वालों में उन्नाव शहर कोतवाली के लोकनगर मोहल्ला के रहने वाले प्यारेलाल भी उसी बस में सवार थे, 35 वर्षीय अजीत कुमार आजाद 115वीं बटालियन में सीआई के पद पर तैनात थे.
कौशल कुमार रावत (उत्तरप्रदेश)
आगरा के कइरई गांव निवासी कौशल कुमार रावत भी इस घातक हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
प्रदीप सिंह (उत्तरप्रदेश)
कन्नौज के तिरवां के सुखसेनपुर निवासी जवान प्रदीप सिंह यादव भी उस बटालियन में शामिल थे, जिसे आतंकियों ने अपना निशाना बनाया. प्रदीप अपने पीछे पत्नी नीरज और दो बेटी सुप्रिया यादव और सोना यादव छोड़ गए हैं।
अमित कुमार (उत्तरप्रदेश)
अमित कुमार शामली के रेलपार कॉलोनी के निवासी थे।
विजय मौर्य (उत्तरप्रदेश)
देवरिया के भटनी थाना क्षेत्र के छपिया जयदेव गांव के विजय मौर्या भी हमले में शहीद हुए हैं। वे CRPF के 82वीं बटालियन में कॉन्स्टेबल पद पर तैनात थे।
रमेश यादव (उत्तरप्रदेश)
जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले में बनारस निवासी जवान रमेश यादव रमेश चौबेपुर थाना क्षेत्र के तोफापुर गांव के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम श्याम नारायन है।
महेश कुमार (उत्तरप्रदेश)
प्रयागराज के मेजा के महेश कुमार भी शहीद हुए जवानों में शामिल हैं। महेश 118 बटालियन में तैनात थे. इससे पहले उनकी पोस्टिंग बिहार में थी।
प्रदीप कुमार (उत्तरप्रदेश)
शामली के बनत गांव के लाल प्रदीप भी इस हमले में शहीद हो गए.
पंकज त्रिपाठी (उत्तरप्रदेश)
सीआरपीएफ के 53वीं बटालियन के कांस्टेबल पंकज उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के हरपुर गांव के रहने वाले थे। हमले वाले दिन सुबह 10 बजे उन्होंने अपनी पत्नी से फोन पर बात की थी। जब शाम को इस हमले की खबर आई तो उन्होंने दोबारा कॉल करने की कोशिश की लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल सकी।
हेमराज मीणा (राजस्थान)
कोटा जिले में विनोद कलां गांव के हेमराज मीणा (43) सीआरपीएफ की 61वीं बटालियन में थे। वे 18 साल से फौज में थे। बड़े भाई रामबिलास ने बताया कि हेमराज नागपुर (महाराष्ट्र) में ट्रेनिंग पर गए हुए थे। वहां से लौटते वक्त इसी सोमवार रात को कुछ देर के लिए गांव आए थे और मंगलवार सुबह साढ़े 6 बजे गांव से रवाना होकर बुधवार को ही जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे। दोपहर बाद जैसे ही हमले की खबरें आई तो बेटियों की फौज के अफसरों से बात हो गई थी, इसके बाद मेरी भी कमांडर से बात हुई, तब जाकर उनकी शहादत की पुष्टि हुई। जाते वक्त हेमराज मीणा ने पत्नी से 20 दिन बाद ही वापस लौटने का वादा किया था एवं कहा था कि आने के बाद परिवार के साथ घूमने जाएंगे।
भागीरथ सिंह (राजस्थान)
राजाखेड़ा विधानसभा क्षेत्र के जैतपुर गांव निवासी भागीरथ सिंह सीआरपीएफ की 45 वीं बटालियन में तैनात था। गुरुवार को हुए आतंकी हमले में वे वीरगति को प्राप्त हो गए। भागीरथ के दो बच्चे हैं। इसमें एक बेटा और एक बेटी है। बताया गया है कि भागीरथ 17 जनवरी को छुट्टी पर आए थे और 11 फरवरी को ही छुट्टी समाप्त होने पर ड्यूटी पर चले गए थे। 4 वर्ष पूर्व ही उनकी शादी हुई थी। वह 2013 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। भागीरथ के बचपन में ही उसकी मां का देहांत हो गया था।
जीतराम (राजस्थान)
भरतपुर नगर क्षेत्र के गांव सुन्दरावली निवासी जवान जीतराम भी इस आतंकी हमले में शहीद हो गए। शहीद जीतराम घर से 2 दिन पहले ही पुलवामा गए थे।
नारायण गुर्जर (राजस्थान)
राजसमंद के बिनोल गांव के निवासी थे नारायण गुर्जर। 12 फरवरी को ही वह ड्यूटी पर लौटे थे। पुलवामा आतंकी हमले में उनकी शहादत की खबर से पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया।