#NavratriSpecial : उज्जैन स्थित माँ हरसिद्धि मंदिर की विशेषता ; जहाँ हर रोज 51 फीट ऊंचे दीप स्तंभों पर किया जाता है 1011 दीप प्रज्ज्वलित

    11-अप्रैल-2024
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Harsiddhi Mata Mandir Ujjain
 
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां माँ सती के अंग के टुकड़े, शरीर पर धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये पवित्र तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी के प्रसिद्ध और पावन मंदिरों में 52 शक्तिपीठ शामिल हैं। हालाँकि वैसे तो 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं लेकिन तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। इन शक्तिपीठ के अस्तित्व में आने के पीछे एक खास वजह है।
 
 
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष की मर्जी के बिना भोलेनाथ से विवाह किया था। एक बार राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपनी बेटी और दामाद को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। माता सती बिना पिता के निमंत्रण यज्ञ में पहुंच गईं, जबकि भोलेनाथ ने उन्हें वहां जाने से मना किया था। राजा दक्ष ने माता सती के सामने उनके पति भगवान शिव को अपशब्द कहे और उनका अपमान किया। पिता के मुंह से पति के अपमान माता सती से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ की पवित्र अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
 
देवाधी देव महादेव पत्नी के वियोग को सहन न कर सके। वह माता सती के शव को लेकर शिव तांडव करने लगे। महादेव के इस रौद्र रूप से ब्रह्मांड पर प्रलय आने लगी, सभी देवताओं ने भगवन विष्णु से गुहार लगाई कि कैसे भी कर के वे महादेव को शांत करें अन्यथा बहुत बड़ी विपत्ति उत्पन्न हो जाएगी। देवताओं की स्तुति से भगवन विष्णु ने महादेव को रोकने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। माता के शरीर के अंग और आभूषण 52 टुकड़ों में धरती पर अलग अलग स्थानों पर जा गिरे, और यही पवित्र स्थान शक्तिपीठ बन गए।
 
 
Harsiddhi Mata Mandir Ujjain
 
 
हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन
 
 
इन्हीं 52 शक्तिपीठों में से एक है उज्जैन स्थित माँ हरसिद्धि मंदिर। आज की इस कड़ी में हम माँ हरसिद्धि मंदिर से जुड़ी विशेषताओं को जानेंगे। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि माता मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पवित्र एवं दिव्य स्थान पर माँ सती की कोहनी गिरी थी। माँ के इस पवित्र दरबार में जो भी भक्त सच्चे दिल से अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं वे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हालाँकि यूँ तो इस पवित्र मंदिर से जुड़ी कई अनेक विशेषताएं हैं, लेकिन उनमें जो ख़ास और लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र है वो है मंदिर परिसर में स्थापित 2 दीप स्तम्भ।
 
 
 
 
 
दीप स्तंभ की विशेषता
 
 
इन दीप स्तंभों पर प्रतिदिन भक्तों की मदद से 1011 दीपक प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। मंदिर प्रांगण में स्थित इन दीप स्तंभों की उंचाई 51 फीट है यानि इतनी ऊंचाई पर चढ़कर प्रतिदिन दीप प्रज्जवलित करना कितना कठिन है ये कल्पना की जा सकती है। मान्यता है कि इन दीप स्तंभों की स्थापना उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी। विक्रमादित्य का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है। इस दृष्टिकोण से ये दीप स्तंभ लगभग 2 हजार साल से अधिक पुराने बताए जाते हैं।
 
 
Harsiddhi Mata Mandir Ujjain
 
 
उज्जैन का रहने वाला जोशी परिवार लगभग 100 वर्षों से इन दीप स्तंभों को रोशन कर रहा है। दोनों दीप स्तंभों को एक बार प्रज्ज्वलित करने में करीब 4 किलो रूई की बाती व 60 लीटर तेल लगता है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है। पहले नवरात्रि में तथा कुछ प्रमुख त्योहारों पर ही दीप स्तंभ जलाए जाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से श्रृद्धालुओं के सहयोग से हर रोज ये दीप स्तंभ जलाए जाते हैं।
 
 
दोनों दीप स्तंभों को एक बार प्रज्ज्वलित करने में करीब 4 किलो रूई की बाती व 60 लीटर तेल लगता है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है। हरसिद्धि मंदिर प्रबंध समिति के प्रबंधक अवधेश जोशी ने बताया कि पहले नवरात्रि में तथा कुछ प्रमुख त्योहारों पर ही दीप स्तंभ जलाए जाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से श्रृद्धालुओं के सहयोग से हर रोज ये दीप स्तंभ जलाए जाते हैं। हले के समय में चैत्र व शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि तथा प्रमुख त्योहारों पर ही दीप स्तंभ जलाए जाते थे, लेकिन अब रोज दीप स्तंभ जलाए जाते हैं।
 
 Harsiddhi Mata Mandir Ujjain
 
 
यात्रा के लिए अनुकूल समय
 
 
उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। किवदंती है कि हर बारह साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन माता की कृपा से पुन: नया सिर मिल जाता था। बारहवीं बार जब उन्होंने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर वापस नहीं आया। इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे रुण्ड पड़े हैं। कहते हैं ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं। रात को हरसिद्धि मंदिर के पट (दरवाजे) बंद होने के बाद गर्भगृह में विशेष पर्वों के अवसर पर पूजा होती है। श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ होने वाली इस पूजा का तांत्रिक महत्व है। भक्तों की मनोकामना के लिए विशेष तिथियों पर भी यह पूजा होती है। वैसे तो यहां की तीर्थयात्रा कभी भी की जा सकती है, लेकिन सबसे अच्छा समय है अक्टूबर से जून का। अक्टूबर में यहां आश्विन नवरात्रि के अवसर पर अनेक धार्मिक आयोजन होते हैं। रात्रि को आरती में एक उल्लासमय वातावरण होता है।
 

Harsiddhi Mata Mandir Ujjain 
 
शक्तिपीठ कौन कौन से हैं ?
 
 
किरीट शक्तिपीठ
 

कात्यायनी पीठ वृन्दावन

 
करवीर शक्तिपीठ

 
श्री पर्वत शक्तिपीठ

 
विशालाक्षी शक्तिपीठ

 
गोदावरी तट शक्तिपीठ
 

शुचींद्रम शक्तिपीठ
 

पंच सागर शक्तिपीठ
 

ज्वालामुखी शक्तिपीठ
 

हरसिद्धि शक्तिपीठ
 

अट्टहास शक्तिपीठ
 

जनस्थान शक्तिपीठ
 

कश्मीर 'हिम' शक्तिपीठ

 
नन्दीपुर शक्तिपीठ

 
श्री शैल शक्तिपीठ

 
नलहाटी शक्तिपीठ

 
मिथिला शक्तिपीठ

 
रत्नावली शक्तिपीठ
 

अम्बाजी शक्तिपीठ
 

जालंधर शक्तिपीठ
 

रामगिरि शक्तिपीठ
 

वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ
 

वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ
 

कन्याकुमारी शक्तिपीठ
 

बहुला शक्तिपीठ
 

भैरवपर्वत शक्तिपीठ

 
मणिवेदिका शक्तिपीठ

 
प्रयाग शक्तिपीठ
 

विरजा शक्तिपीठ

 
कांची शक्तिपीठ
 

कालमाधव शक्तिपीठ
 

शोण शक्तिपीठ
 

कामाख्या शक्तिपीठ

 
जयंती शक्तिपीठ
 

मगध शक्तिपीठ

 
त्रिस्तोता शक्तिपीठ

 
त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ

 
विभाष शक्तिपीठ
 
 
देवीकूप शक्तिपीठ
 
 
युगाद्या शक्तिपीठ
 
 
विराट शक्तिपीठ
 
 
कालीघाट काली मंदिर
 
 
मानस शक्तिपीठ
 
 
लंका शक्तिपीठ
 
 
गण्डकी शक्तिपीठ
 
 
गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
 
 
हिंगलाज शक्तिपीठ
 
 
सुंगधा शक्तिपीठ
 
 
करतोयाघाट शक्तिपीठ
 
 
चट्टल शक्तिपीठ
 
 
यशोर शक्तिपीठ