जब भी देश के इतिहास में महान राजाओं के बारे में बात होगी तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का नाम इसमें जरूर आएगा। पंजाब पर शासन करने वाले महाराजा रणजीत सिंह (Ranjit Singh) ने महज 10 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा था और 12 साल की उम्र में उन्होंने गद्दी संभाल ली थी। जबकि वहीं 18 साल की उम्र में उन्होंने लाहौर को जीत लिया था। 40 वर्षों तक के अपने शासन में उन्होंने अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं भटकने नहीं दिया। 12 अप्रैल, 1801 यह वो तारीख है जब महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लाहौर (अब पाकिस्तान में) में सिख साम्राज्य की स्थापना की गई। 7 जुलाई, 1799 को उन्होंने पहली जीत हासिल की। उन्होंने चेत सिंह की सेना को हराकर लाहौर पर कब्जा कर लिया।
जब वे किले के मुख्य द्वार में प्रवेश किया तो उन्हें तोपों की शाही सलामी दी गई। उसके बाद उन्होंने अगले कुछ दशकों में एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना की। इसके बाद 12 अप्रैल, 1801 को रणजीत सिंह की पंजाब के महाराज के तौर पर ताजपोशी की गई। यह क्षण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था। महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिख साम्राज्य की स्थापना से पंजाब क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि आई। रणजीत सिंह, जोकि अपनी सैन्य कौशल के लिए जाने जाते हैं उन्होंने सिख खालसा सेना का नेतृत्व करते हुए युद्ध में कई जीत हासिल की और पूरे पंजाब और उसके बाहर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। प्रशासनिक कौशल, सिख प्रमुखों को एकजुट करने और एक मजबूत शासन स्थापित करने में भी उनका महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
महाराजा रणजीत सिंह के शासन के तहत, सिख साम्राज्य ने अपने क्षेत्र का विस्तार किया और क्षेत्र में एक बहुत बड़ी शक्ति बन गया। साम्राज्य की राजधानी लाहौर संस्कृति, कला और वाणिज्य का केंद्र बन गई। रणजीत सिंह की धर्मनिरपेक्ष नीतियों और सभी धर्मों के प्रति सम्मान ने उन्हें विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों से प्रशंसा दिलाई। उनके नेतृत्व में सिख साम्राज्य सिख संप्रभुता और आत्मनिर्णय का प्रतीक बन गया। लाहौर में सिख साम्राज्य की स्थापना न केवल विदेशी आक्रमणों के खिलाफ दशकों के संघर्ष और प्रतिरोध की परिणति थी, बल्कि इस क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि के दौर की शुरुआत भी हुई।
19वीं शताब्दी के आरंभ में महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब, कश्मीर और पेशावर तक फैला था। इस समय मुग़ल और इस्लामी कट्टरपंथी हिंदुस्तान में अपनी जड़ें जमा रहे थे। जिसको टक्कर देने के लिए हिन्दू और सिख एक साथ मिलकर लड़ रहे थे। महाराजा रणजीत सिंह का यह साम्राज्य सिख गुरुओं के नेतृत्व में मुस्लिम शासकों के विरुद्ध हो रहे विद्रोह का परिणाम था। इसी समय सईद अहमद बरेलवी, जो अवध से था और वहाबी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता था, उसने भारत में फिर से इस्लामिक राज्य की परिकल्पना करके जिहाद को पुनर्जीवित किया। शक्तिशाली अंग्रेजों के शासन में ऐसे राज्य कि स्थापना करना आसान नहीं था , इसलिए उसने सिखों के साम्राज्य को जिहाद के लिये चुना। उसने पहले पेशावर के पख्तूनों को सिखों के विरुद्ध भड़काया और धीरे धीरे बालाकोट को अपना जिहादी गढ़ बनाया।
सन 1831 में महाराजा रणजीत सिंह के सैनिकों ने बालाकोट में बड़ी कार्रवाही करके सईद अहमद बरेलवी और उसके साथी इस्माइल देलहवी को मार गिराया और उनके ठिकाने ध्वस्त कर दिए । बरेली का सपना था कि वह बालाकोट को अपना ठिकाना बना कर कश्मीर पर कब्जा कर लेगा।लेकिन वीर सिख सेना के कारण उसका यह सपना पूरा ना हो सका। महाराजा रणजीत सिंह की बालाकोट के युद्ध में विजय हुई और बरेलवी का उन्होंने सिर धड़ से अलग कर दिया। इसे जेहाद के फितूर में अजर मसूद ने भी कश्मीर में अपनी आतंकी गतिविधियों के लिए बालाकोट को हेड क्वार्टर बनाया था।