30 मई 1999 : कारगिल युद्ध के महावीर मेजर सोनम वांगचुक की कहानी, जिन्होनें 18,000 फीट पर स्थित 'चोरबाट ला' को दुश्मनों से कराया मुक्त

    30-मई-2024
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Major Sonam Wangchuk Kargil War Hero MVC
 
 
11 मई 1964 को लद्दाख में जन्में कर्नल सोनम वांगचुक पूर्व भारतीय सैनिक हैं। सोनम वांगचुक को कारगिल युद्ध में अपने सफल ऑपरेशन के दौरान दुश्मन के समक्ष वीरता और उत्तम युद्ध कौशल का परिचय देने के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार महावीर चक्र (एमवीसी) से सम्मानित किया गया था। कर्नल वांगचुक 1969 में लगभग 5 वर्ष की आयु में सोलन , हिमाचल प्रदेश चले गए। वहां उन्होंने चौथी कक्षा तक सेंट ल्यूक में पढ़ाई की। बाद में 1973 में, उनका परिवार धर्मशाला चला गया जहाँ उन्होंने सेक्रेड हार्ट हाई स्कूल में पढ़ाई की।
 
 
यहां उनकी दलाई लामा के साथ घनिष्ठ बातचीत हुई क्योंकि उनके पिता 14 वें दलाई लामा के सुरक्षा अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। 1975 में उनके पिता का तबादला दिल्ली हो गया। दिल्ली में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद कर्नल सोनम वांगचुक ने OTA चेन्नई में भाग लिया और सेना के 4 वें बटालियन, असम रेजिमेंट में शामिल हुए। उन्हें बाद में लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंट के इंडस विंग में भेजा गया।
 
 
चोरबाट ला पर पाकिस्तान का कब्ज़ा
 
 
26 जुलाई 1999, भारतीय इतिहास का एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी भारतवासी नहीं भुला सकता। एक तरफ भारत-पाकिस्तान के बीच लाहौर में समझौता हो रहा था, तो वहीं दूसरी तरफ भारत पर अपनी नापाक नजर रखने वाला पाकिस्तान देश को तबाह करने और जम्मू कश्मीर को हमसे छीनने की रणनीति बना रहा था। मई आते-आते पाकिस्तानी सेना हमारी सीमा में कई किलोमीटर तक अंदर आने और लद्दाख में सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण ऊंची चोटियों पर कब्ज़ा करने में भी सफल हो गया था। पाकिस्तानी सैनिक 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित चोरबाट ला पर कब्ज़ा कर लिया था।
 
 
पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर मिलते ही लद्दाख स्काउट्स के जवान मुस्तैद थे। दुश्मन 5500 फीट की ऊंचाई से लगातार गोली बारी कर रहा था। लिहाजा पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से चोरबाट ला को मुक्त कराना एक बड़ी चुनौती थी। इस मिशन को अंजाम देने और दुश्मनों को मार भगाने के लिए सेना ने जिम्मेदारी सौंपी लद्दाख स्काउट्स के मेजर सोनम वांगचुक को। दरअसल जिस वक्त युद्ध की शुरुआत हुई थी उस वक्त कर्नल वांगचुक छुट्टी पर थे। लेकिन जैसे ही उनके पास जंग की खबर पहुंची वह अपनी छुट्टी बीच में ही छोड़कर बेस कैंप पहुंच गए थे। सोनम वांगचुक ने अपने 30-40 जवानों के साथ इस मिशन को अंजाम दिया।
 
 
 
 
जब सोनम वांगचुक ने संभाला मोर्चा -
 
 
30 मई को वांगचुक की टुकड़ी के जवानों ने एलओसी के ठीक उस पार 12 से 13 पाकिस्तानी टेंट को स्पॉट किया जिसमें 130 से ज्यादा जवान मौजूद थे। इसके साथ ही उन्होंने 3 से 4 पाकिस्तानी जवानों को दूसरी तरफ से चोटी पर चढ़ते देखा और बिना समय गंवाएं उन्हें मार गिराया। लेकिन पाकिस्तानी हर तरफ से घुसपैठ करने की कोशिश कर कर रहे थे और दूरी की वजह से उन्हें मारा नहीं जा सकता था। जिसके बाद वहां तैनात JCO ने मेजर वांगचुक तक यह खबर पहुंचाई। खबर मिलते ही मेजर वांगचुक सेना मुख्यालय से परमिशन लेकर अपने 25 जवानों के साथ मिशन की तरफ बढे। दो फ़ीट गहरे बर्फ में इन रणबाकुरों ने 8 किलोमीटर की इस दूरी को मात्र ढाई घंटे में पूरा किया। लेकिन जब मेजर अपने दल के साथ ऑपरेशन पोस्ट तक की चढ़ाई शुरू करने ही वाले थे तब पाकिस्तानी फौज ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी।
 
 
पाकिस्तानी सौनिकों ने घंटों गोलीबारी की जिसमें एक भारतीय सौ
Sonam Wanghuk kargil war 
 
जब पाकिस्तानी सैनिकों के छुड़ाए छक्के
 
  
सोनम वांगचुक ने अपनी टुकड़ी को अगले हमले के लिए रात होने तक इंतजार करने का आदेश दिया, लेकिन चांद की रोशनी इतनी अधिक थी कि दुश्मन आसानी से इन्हें अपना शिकार बना सकता था। लेकिन तभी अचानक पूरी घाटी देखते ही देखते कोहरे से भर उठी। लिहाजा माँ भारती के इन रणबांकुरों ने -6 डिग्री के तापमान में 18000 फीट की दुर्गम चढ़ाई में आधी बची दुरी को रात भर में नाप दिया। सुबह होते ही मेजर वांगचुक के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने पाकिस्तानियों पर हमला बोल दिया। लद्दाख स्काउट्स ने अपने हमले में करीब 10 पाकिस्तानी सौनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस बीच हमले में कई अन्य पाकिस्तानी फौजी घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। तथा बाकी के बचे सौनिक अपनी जान बचाकर दबे पाँव पोस्ट छोड़कर भाग निकले।
 
 
महावीर चक्र से हुए सम्मानित
 
 
भारतीय सौनिकों ने इसके बाद चोरबाट ला समेत पूरे बटालिक सेक्टर को पाकिस्तान के कब्जे से वापिस ले लिया। 31 मई से 1 जून तक हुई इस लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाने के लिए मेजर सोनम वांगचुक को सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से नवाज़ा गया। साथ ही कारगिल की लड़ाई में रणनीतिक जीत दिलाने वाले लद्दाख स्काउट्स को भारतीय सेना ने गोरखा और डोगरा रेजीमेंट की तर्ज पर 2001 में इंफ़ैन्ट्री रेजीमेंट का दर्जा दिया। आज लद्दाख स्काउट्स के 5 बटैलियन ऑपरेट कर रहे हैं, हर बटैलियन के पास 850 जवान हैं। आपको बता दें कि सियाचिन में भी लद्दाख के लड़ाकों को तैनात किया जाता है।