25 जून, 1990 मानवीय इतिहास का काला दिन ; जब इस्लामिक आतंकियों ने की कश्मीरी महिला गिरिजा टिक्कू की नृशंस हत्या

    25-जून-2024
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25 June 1990 Kashmiri woman Girija
1990 के दशक में जम्मू कश्मीर में हुए कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार से आज लगभग सारी दुनियां वाकिफ है। उस दौर में घाटी से हजारों की संख्या में कश्मीरी हिंदुओं को आतंक के कारण पलायन करना पड़ा था। सैंकड़ों निर्दोष मासूम लोगों की इस्लामिक आतंकियों ने मौत ने नृशंस हत्या कर दी थी। आज लगभग 3 दशक बाद भी जब वो मंजर आंखों के सामने आता है तो कलेजा सिहर उठता है।
 
 
कहानी गिरिजा टिकू की 
 
 
ऐसी ही दिल को झकझोर कर रख देने वाली एक कहानी है कश्मीरी हिन्दू गिरिजा टिकू की। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम 1990 में हुए उसी जघन्य अपराध की चर्चा करेंगे जिन्हें पढ़कर आपका कलेजा दर्द से कराह उठेगा। अमानवीय अत्याचारों से गुजरने वाले कई दर्दनाक किस्सों में से एक दर्दनाक किस्सा है कश्मीरी हिंदू गिरिजा टिकू का। वो गिरिजा टिकू जो 1990 के दौर में अपनी ही जन्मभूमि में इस्लामिक आतंकियों का शिकार हुईं और आतंकियों द्वारा उनकी निर्ममता से हत्या की गई।
 
25 जून, 1990- निर्भया कांड से भी बदतर बर्ताव हुआ था कश्मीरी महिला गिरिजा टिक्कू के साथ
 
 
 
11 जून 1990 काला दिन :
 
 
कश्मीरी हिन्दू गिरिजा कुमारी टिकू बारामूला जिले के गांव अरिगाम (वर्तमान में बांदीपोरा जिले) की रहने वाली थी। गिरिजा एक स्कूल में लैब सहायिका के तौर पर कार्यरत थीं। 11 जून 1990 की सुबह गिरिजा टिकू अपने घर से अपनी सैलरी लेने स्कूल के लिए निकली। स्कूल पहुंचकर सैलरी लेने के बाद वापस घर लौटते वक्त वो पास में मौजूद अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर चली गईं।
 
 
गिरिजा इस बात से बेखबर थीं कि उनका पीछा किया जा रहा है। गिरिजा टिकू पर इस्लामिक जिहादियों की नजर लंबे वक्त से थी। गिरिजा अपने सहकर्मी से मिलने घर पहुंची उसी वक्त आतंकियों ने गिरिजा को अपहृत कर लिया। खास बात यह थी कि गिरिजा का अपहरण गांव में रहने वाले लोगों की नजरों के सामने ही हुआ। पर खौफ का माहौल ऐसा था कि किसी ने भी अपनी आवाज नहीं उठाई।
 
 
गिरिजा के साथ सामूहिक दुष्कर्म
 
 
आतंकियों ने गिरिजा टिकू को अपहरण करने के बाद गांव से दूर ले गए और उनके साथ कई दिनों तक सामूहिक दुष्कर्म किया। सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें कई तरह की यातनाएं भी दीं। हैवानियत और बर्बरता की सारी हदों को पार करने के बाद भी जब इन जिहादियों का जी नहीं भरा तो उन्होंने 25 जून को गिरिजा टिकू को लकड़ी काटने वाली आरा मशीन के बीच लेटाकर गांव वालों के सामने ही दो अलग-अलग हिस्सों में काट दिया।
 
 
यह भयावह मंजर वहां खड़े लोग एक टक देखते रहे। 1990 के उस दौर में आतंकियों का कश्मीरी हिंदुओं को सन्देश साफ़ था कि जम्मू कश्मीर में केवल “निज़ाम –ऐ- मुस्तफा'' को मानने वाले लोग ही रह सकते है और गिरिजा टिकू जैसी एक सामान्य सी अध्यापिका को भी वो ''निजाम –ऐ- मुस्तफा” के लिए खतरा मानते थे। कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार पर बनीं फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) लगभग सभी ने देखा होगा। फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' में अंत से पहले किरदार शारदा पंडित की आरा मशीन के जरिये निर्मम हत्या को प्रदर्शित किया गया है। ये सीक्वेंस बारामूला जिले की गिरिजा टिकू की कहानी से प्रेरित है। असल में गिरिजा टिकू के साथ जो हुआ था, वो खौफनाक फिल्म के प्रदर्शित दृश्यों से भी ज्यादा खौफनाक था।
 
 
अपने पीछे छोड़ गईं अपने दो मासूम बेटे और बेटी
 
 
गिरिजा टिकू अपने पीछे 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की बेटी छोड़ गईं। 1990 में कश्मीर में हुए इस हादसे पर वहां के स्थानीय लोग चुप रहे। हाल ही में आई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स में भी इस दर्दनाक और भयावह मंजर को दर्शाया गया है। आप कल्पना कर सकते हैं कि आखिरकार वो दौर, वो मंजर कैसा रहा होगा जब गिरिजा टिक्कू को आरा मशीन के बीचों बीच लेटाकर दो हिस्सों में काट दिया गया। गिरिजा टिकू के अलावा सैंकड़ों हजारों ऐसे निर्दोष मासूम लोगों को इन इस्लामिक जिहादियों ने 1990 में अपना शिकार बनाता था।