जयंती विशेष ; 'अगर मैं वापस नहीं लौटा तो मेरी अंगूठी मेरी मंगेतर को देना...'' कारगिल युद्ध के बलिदानी कैप्टन अनुज नैय्यर की कहानी

    28-अगस्त-2024
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Captain Anuj Nayyar Kargil war 1999

कारगिल युद्ध को 25 वर्ष पूरे होने को है। इस युद्ध में मां भारती के सैंकड़ों वीर सपूतों ने देश की रक्षा खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया था। उन वीर सपूतों में से एक थे कैप्टन अनुज नैय्यर। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन अनुज नैय्यर और उनकी बटालियन 17 जाट रेजीमेंट को टाइगर हिल के पश्चिम में स्थित प्वाइंट 4875 के एक हिस्से पिंपल कॉम्प्लेक्स को पाकिस्तानी सैनिकों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

 
प्वाइंट 4875 को मुक्त कराने की मिली जिम्मेदारी
 

प्वाइंट 4875 की यह पोस्ट कुल 6000 फीट की ऊंचाई पर थी। इस प्वाइंट पर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा कर रखा था। लिहाजा पाकिस्तानी सैनिकों से इस प्वाइंट को मुक्त कराना बेहद ही महत्वपूर्ण था। परंतु यह टास्क बेहद ही कठिन भी था। युद्ध में आगे की राह को और आसान बनाने के लिए दुश्मनों से इस प्वाइंट को मुक्त कराना बेहद ही जरूरी था लिहाजा अपने मिशन को पूरा करने के लिए कैप्टन अनुज नैय्यर ने अपनी बटालियन के साथ दुर्गम ऊंची चोटी पर 6 जुलाई की रात चढ़ाई करना शुरू कर दिया। इस रास्ते में कैप्टन नैय्यर और उनकी टीम का कदम कदम पर मौत से सामना होना लगभग तय था परंतु अपने जान की परवाह न करते हुए वो लगातार आगे बढ़ते रहे।

 
9 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को उतारा मौत के घाट
 

कैप्टन अनुज नैय्यर की सोच थी कि किसी भी तरह इस मिशन को पूरा करना है चाहे उसके लिए जो भी करना पड़े। अपने इसी जज्बे को कायम रखते हुए कैप्टन नैयर अपनी बटालियन के साथ दबे पांव आगे बढ़ते रहे। हालांकि अचानक घात लगाकर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को कैप्टन अनुज और उनकी बटालियन के दस्तक देने की आहत मिल गई। आहट मिलते ही दुश्मन सैनिकों ने घातक हथियारों से कैप्टन अनुज की टीम पर हमला शुरू कर दिया। इस बीच कैप्टन नैय्यर और उनकी टीम ने दुश्मन सैनिकों का जमकर मुकाबला किया और पाकिस्तान के लगभग 9 से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

 
प्वाइंट 4875 पर फहराया विजय पताका
 

इस हमले के बाद कैप्टन अनुज और उनके साथियों ने बाकी पाकिस्तानी घुसपैठियों को भागने पर मजबूर कर दिया। कैप्टन नैय्यर के सफल नेतृत्व के कारण और उनके साथियों की बहादुरी के चलते पिंपल 2 पर 17 जाट ने लगभग विजय प्राप्त कर ली थी। घायल हो चुके कैप्टन अनुज नैय्यर ने मशीनगन से अन्य बचे पाकिस्तानी सैनिकों के बंकरों को भी तबाह कर दिया था। लेकिन विजय का तिरंगा फहराने के लिए जैसे ही वह आगे बढ़े तभी दुश्मन सेना की ओर से एक ग्रेनेड सीधा उनके ऊपर पड़ा और कैप्टन नैय्यर कारगिल के मैदान में मां भारती की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।  

कैप्टन नैय्यर के बलिदान के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने प्वाइंट 4875 को एक बार फिर कब्जा करना चाहा परन्तु तब तक पीछे से कारगिल के शेर कारगिल वॉर का असल योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की एंट्री हुई और उन्होंने पनिस्तानी सैनिकों पर अंधाधुंध फायरिंग करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इस हमले के बाद प्वाइंट 4875 दुश्मनों से मुक्त हो गया और 6000 फीट की ऊंचाई पर भारत का झंडा फहराया गया।

 
जंग पर जाने से पहले अपने सीनियर को दी थी अंगूठी
 

कहते हैं कि जब कैप्टन अनुज नैय्यर जंग पर जा रहे थे, तो उन्होंने अपने एक सीनियर को एक अंगूठी दी और कहा था कि ये अंगूठी उनकी होने वाली मंगेतर को दे दें। जब सीनियर ने उनसे कहा कि तुम खुद देना, तो उसके जवाब में कैप्टन अय्यर ने कहा कि “मैं जंग पर जा रहा हूं वापस लौटूंगा या नहीं कोई ठीक नहीं। हां अगर जंग से वापस लौट आया तो यह अंगूठी मैं खुद दे दूंगा परंतु अगर वापस ना आया तो आप इसे मेरे घर भेज देना और मेरा संदेश मेरे घर वालों तक पहुंचा देना”। हालांकि किस्मत को भी यही मंजूर था और दुर्भाग्यवश इस जंग से कैप्टन अनुज वापस नहीं लौट सके।

 
मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित
 

कैप्टन अनुज नय्यर की वीरता और कुशल नेतृत्व के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज कैप्टन अनुज अय्यर पूरे देश के लिए एक मिसाल हैं। देश के लिए उनका बलिदान सदियों तक याद किया जाता रहेगा।

देश की रक्षा एवं सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले मां भारती के ऐसे वीर सपूत महावीर चक्र विजेता कैप्टन अनुज नय्यर को हमारा नमन।