अनुच्छेद 370 की समाप्ति को 5 वर्ष पूरे ; जानें कैसे 370 और 35A जम्मू कश्मीर की विकास में बनी सबसे बड़ी बाधा !

    05-अगस्त-2024
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5 Years of Abrogation of article 370 
जम्मू कश्मीर का इतिहास अनंतकाल से ‘ज्ञान की धरा’ का इतिहास रहा है। अनेक महान विभूतियों का जन्म इसी पवित्र धरा पर हुआ है, जिन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा में बहुमूल्य योगदान दिया। सदियों से जम्मू कश्मीर ऋषि-मुनियों, तीर्थस्थलों, प्राचीन मंदिरों, तीर्थयात्राओं, पवित्र नदियों, पर्वतों का क्षेत्र रहा है और जम्मू कश्मीर की वास्तविक पहचान भी यही है। समय के साथ-साथ जम्मू कश्मीर पर कई विदेशी आक्रमण हुए, जिससे इसकी मूल संस्कृति पर इस्लाम का प्रभाव पड़ा और यह राजनैतिक उथल-पुथल से प्रभावित होता रहा। इन सभी परिस्थितियों से गुजरने के बाद भी जम्मू कश्मीर का गौरवशाली इतिहास जम्मू कश्मीर की वास्तविक कहानी बताता रहा है। लेकिन 1947 में अंग्रेजों द्वारा भारत के विभाजन ने जम्मू कश्मीर के गौरवशाली इतिहास और भूगोल पर ऐसी लकीर खींच दी, जिसने जम्मू कश्मीर का वास्तविक स्वरूप बदल दिया। जिस जम्मू कश्मीर का अधिमिलन महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 में भारत के साथ किया, उस जम्मू कश्मीर राज्य का 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र आज भी पाकिस्तान और चीन के अधिक्रांत है।  
 
 
1947 पाकिस्तानी हमला 
 
 
1947 में भारत के विभाजन की त्रासदी का दर्दनाक दंश भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ जम्मू कश्मीर को भी झेलना पड़ा। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जम्मू कश्मीर को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। जम्मू कश्मीर के भू-सामरिक, भू-सांस्कृतिक, भू-राजनीतिक और मुस्लिम बहुल राज्य होने के कारण पाकिस्तान ने अक्तूबर, 1947 में कब्जे की नियत से जम्मू कश्मीर पर हमला किया। उस अमानवीय हमले में पकिस्तानियों ने हजारों निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी, लोगों के घरों को जल दिया, कई माताओं-बहनों के साथ दुष्कर्म किया। इस घटनाक्रम में लाखों लोग बेघर होकर दर-दर भटकने को विवश हो गए। जम्मू कश्मीर में इसके बाद पनपे आतंकवाद और अलगाववाद के चलते भी हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। भारत विभाजन के समय जिन लोगों ने भारत में रहना चुना उनमें पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, जो कि पाकिस्तान के सियालकोट क्षेत्र से जम्मू कश्मीर में आए, सात दशकों तक मूल अधिकारों से वंचित रहे। 
 
 
 370 & 35A की आड़ में मानवाधिकारों का हनन 
 
 
ऐसे ही 1820 से जम्मू कश्मीर में अपनी सेवाएं दे रहे गोरखा समाज की बात हो, 1957 में जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा पंजाब से लाया गया वाल्मीकि समाज हो या फिर जम्मू कश्मीर के बाहर किसी अन्य राज्य में विवाह करने वाली जम्मू कश्मीर की बेटियां हों, अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद-35-A के कारण सबके मानवाधिकारों का हनन होता रहा। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जबसे जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन हुआ है, तभी से लेकर एक जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को लेकर अनेकों प्रश्न खड़े कर झूठे विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया जाता रहा है। वास्तव में जम्मू कश्मीर का प्रश्न भारत की संवैधानिक सर्वोच्चता, प्रतिष्ठा और राज्य के सम्पूर्ण समाज के समग्र विकास, राष्ट्रीय एकात्मता और अखंडता का विषय है। 
 
 
अनुच्छेद 370 का कैसे हुआ दुरूपयोग ?
 
 
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान देश में लागू होते ही जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के रूप में ऐसी भेंट दी गई, जिसका भुगतान जम्मू कश्मीर के लोगों को 7 दशकों तक करना पड़ा। अनुच्छेद-370 का दुरुपयोग करते हुए जम्मू कश्मीर की सत्ता में रहे राजनेताओं ने जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से लागू नहीं होने दिया, जिससे संविधान के सभी प्रावधानों का लाभ जम्मू कश्मीर की जनता को नहीं मिल सका। लोग अपने मूल अधिकारों से भी वंचित रहे। परिणामस्वरूप जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से एकीकरण नहीं हो पाया। इसके कारण जम्मू कश्मीर में विकास की गति भी रुक गई। अनुच्छेद-370 के काले साये ने जम्मू कश्मीर के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों का हनन किया।
 
 
यहां तक कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए तीनों नए शब्द ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ भी जम्मू कश्मीर में लागू नहीं थे। जम्मू कश्मीर में 11 प्रतिशत से ज्यादा अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या थी। लेकिन इन्हें राज्य विधानसभा में राजनैतिक आरक्षण प्राप्त नहीं था। जम्मू कश्मीर में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को ओबीसी का दर्जा ही नहीं था। इन्हें ओएससी कहा जाता था और केवल 2 प्रतिशत आरक्षण ही मिलता था। जम्मू कश्मीर में भारत के अन्य राज्यों की तरह लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की व्यवस्था पूरी तरह से लागू नहीं थी। 
 
 
 
 
 
अनुच्छेद 35A 
 
 
इसी तरह अनुच्छेद 35-A ने जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों को कुछ विशेष अधिकार दिए थे, जो अस्थायी निवासियों के पास नहीं थे। अस्थायी निवासी जम्मू कश्मीर में न तो स्थायी रूप से बस सकते थे, न कोई संपत्ति खरीद सकते थे और न ही किसी सरकारी नौकरी, तकनीकी शिक्षा तथा छात्रवृत्ति का अधिकार रखते थे। यहां तक कि वे कभी भी राज्य की विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनावों में मतदान भी नहीं कर सके। वे किसी भी तरह की सरकारी सहायता नहीं ले सकते थे। यदि जम्मू कश्मीर की कोई महिला राज्य से बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति और बच्चों को भी इन विशेषाधिकारों से वंचित होना पड़ता था। लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं था। जम्मू कश्मीर विधानसभा को राज्य के ‘स्थायी निवासी’ की परिभाषा तय करने का अधिकार था, परंतु इस परिभाषा को कभी बदला नहीं गया। इससे जम्मू कश्मीर राज्य की देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा एक अलग पहचान बनाने और बताने का प्रयास किया गया। इससे देश की एकात्मता की भावना विकसित नहीं हो सकी। इससे जम्मू कश्मीर के भारत में संपूर्ण एकीकरण की प्रक्रिया भी बाधित होती रही। 
 
 
370 की समाप्ति के लिए संघर्ष 
 
 
भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में पूर्ण रूप से लागू हो, राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा पूरे सम्मान के साथ जम्मू कश्मीर में लहराए और भारतीय संविधान एवं संसद की ही संप्रभुता है, यह स्थापित करने में सबसे बड़ी बाधा अनुच्छेद-370 ही था। इस बाधा को दूर करने और जम्मू कश्मीर के संपूर्ण एकीकरण के लिए देश में एक लंबा संघर्ष चला। अनुच्छेद-370 को निरस्त करना केवल चुनावी वक्तव्य नहीं था, बल्कि यह एक अटल संकल्प था, जो राष्ट्रीय विचार के साथ खड़े हर देशभक्त ने अपने मन में संजो रखा था। वर्षों से प्रत्येक भारतीय के जीवन की साध थी कि जम्मू कश्मीर का अलगाव दूर हो और वह सच्चे अर्थों में पूर्ण एवं शक्तिशाली भारत बन जाए। इस संकल्प की सिद्धि के लिए अनेक हुतात्माओं ने जीवन का सर्वोच्च बलिदान तक दिया। इसी दृढ़ संकल्प के चलते डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने सत्याग्रह किया और कहा कि ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे’। उनके उस सत्याग्रह का दुखद परिणाम उनकी मृत्यु के रूप में सामने आया। 
 
 
स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रवादी आन्दोलन 'प्रजा परिषद्' 
 
 
स्वतंत्र भारत में यह पहला बलिदान था जो जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए दिया गया था। ऐसे ही प्रयास जम्मू कश्मीर को भारत के साथ एकात्म करने के लिए राज्य के अंदर भी चल रहे थे। प्रजा परिषद का पूरा आंदोलन एकात्मता का आंदोलन था। तिरंगा हाथ में लेकर भारत का संविधान राज्य में लागू करने की मांग करने वाले असंख्य सत्याग्रही देशभक्तों पर दर्जनों स्थानों पर पुलिस ने बर्बरता से लाठी भांजी, हजारों लोग देश भर में गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिए गए, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी सम्मिलित थीं। जम्मू में जगह-जगह प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के आदेश पर पुलिस ने तिरंगा हाथ में लिए सत्याग्रहियों पर गोलियां चलाईं। इसमें 15 आंदोलनकारियों की मौत भी हो गई। राज्य की जनता को अलग-थलग करने के इस षड्यंत्र का अंतिम परिणाम वही होना था, जो हर भारतीय ने 5 अगस्त, 2019 को सदन में घटित होते देखा। संविधान सभा में हुई चर्चा को देखें तो स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद-370 को भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, ताकि देश के संविधान के प्रावधान राज्य में भी लागू किए जा सकें। इसके उलट अनुच्छेद-370 की आड़ में ऐसे प्रावधान राज्य में लागू किए गए, जिन्होंने जम्मू कश्मीर को मुख्य धारा से काटकर अलगाववाद को बल दिया।
 
 
5 अगस्त, 2019 का वो ऐतिहासिक क्षण  
 
 
स्वतंत्रता के 72 वर्षों बाद 5 अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर की बनाई गई अलग पहचान को बदलते हुए अनुच्छेद-370 को निरस्त कर ऐतिहासिक गलतियों को सुधार लिया गया। 5 अगस्त, 2019 का दिन जम्मू कश्मीर के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया। इस शुभ दिन प्रातः भारत के राष्ट्रपति ने एक संवैधानिक आदेश क्रमांक 272 जारी किया। इसमें महामहिम राष्ट्रपति की ओर से अनुच्छेद-370 के खंड ‘1’ द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जम्मू कश्मीर राज्य सरकार की सहमति से संविधान (जम्मू कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 के लागू होने की अधिसूचना जारी की गई। यह बिल्कुल वही संवैधानिक प्रक्रिया थी, जिसका पालन करते हुए 1954 का आदेश जारी किया गया था। नए आदेश ने 14 मई, 1954 को जारी किए गए आदेश को, जो समय-समय पर यथा संशोधित किया गया था, को निरस्त कर दिया।
 
 
इसी प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अनुच्छेद-367 में उपबंध ‘4’ जोड़ा गया, जिसके अनुसार जम्मू कश्मीर भी भारत के अन्य राज्यों की सामान्य सूची में शामिल हो गया। इसका सीधा अर्थ यह है कि संसद द्वारा बनाए जाने वाले सभी नियम अथवा संशोधन संघ में शामिल अन्य किसी भी राज्य की भांति जम्मू कश्मीर पर भी लागू होंगे और इसके लिए राज्य की विधानसभा की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। इससे पहले जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान में किया गया कोई भी संशोधन अथवा नया नियम राज्य में स्वतः लागू नहीं होता था। स्थानीय राजनैतिक दलों द्वारा इस व्यवस्था को ही राज्य का विशेष दर्जा बताकर लोगों में अलगाव का भाव पैदा किया जाता था।
 
 
इसी के साथ राज्य की विधानसभा में अब राज्य संविधान सभा की शक्तियां विहित हो गई हैं। पहले विधानसभा राज्यपाल को अपनी सिफारिश भेजती थी, जिसे राज्यपाल महामहिम राष्ट्रपति को आदेश जारी करने के लिए अग्रेषित करते थे। अब यह कार्य अन्य राज्यों की तरह विधानसभा के स्थान पर राज्य मंत्रिमंडल कर सकेगा। अनुच्छेद-370 के उपबंध ‘2’ व ‘3’ को समाप्त कर दिया गया, जिसके अनुसार अनुच्छेद-370 की समाप्ति के लिए राज्य संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक थी। 
 
 
6 अगस्त, 2019
 
6 अगस्त, 2019 को संवैधानिक आदेश क्रमांक 273 के अधीन घोषणा करते हुए राष्ट्रपति, संसद की सिफारिश पर भारत के संविधान के अनुच्छेद-370 के खंड (1) के साथ पठित अनुच्छेद-370 के खंड (3) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह घोषणा की कि 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनुच्छेद-370 के सभी खंड, सिवाय निम्नलिखित के, जो नीचे दिए गए के अनुसार है, प्रचलन में नहीं रहेंगे, अर्थात्, ‘370. इस संविधान के समय-समय पर यथा-संशोधित, सभी उपबंध बिना किन्हीं उपांतरणों या अपवादों के अनुच्छेद-152 या अनुच्छेद-308 या इस संविधान के किसी अन्य अनुच्छेद या जम्मू कश्मीर के संविधान में किसी अन्य उपबंध या किसी विधि, दस्तावेज, निर्णय, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना या भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाली किसी रूढ़ि या प्रथा या किसी अन्य लिखत, संधि या करार जो अनुच्छेद-363 के अधीन यथा परिकल्पित या अन्यथा है, में तत्प्रतिकूल किसी बात के अंतर्विष्ट होते हुए भी, जम्मू कश्मीर राज्य को लागू होंगे।’ 
 
 
अनुच्छेद-370 का उपबंध ‘1’
 
 
अनुच्छेद-370 का उपबंध ‘1’ अभी भी लागू है, जिसका उपयोग कर राष्ट्रपति ने 2019 का संवैधानिक आदेश जारी किया था। एक अन्य प्रस्ताव लाकर केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर राज्य को विभाजित कर दो केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया - जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2019 के 34) की धारा-2 के खंड (ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुरूप, केंद्र सरकार ने इसके लिए अक्तूबर, 2019 के 31वें दिन को निर्धारित किया, जो कि इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए निर्धारित दिन और इसी के परिणामस्वरूप 31 अक्तूबर, 2019 को जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में अस्तित्व में आए। 
 
 
राष्ट्रपति के आदेश को SC में चुनौती 
 
 
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 को निरस्त करने की वैधानिकता को चुनौती देने के लिए अनेक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में लगीं। याचिकाओं पर 11 दिसंबर, 2023 को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 पर केंद्र सरकार का फैसला बरकरार रखा। आज जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी हुए पांच वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन पांच वर्षों में जम्मू कश्मीर में विभिन्न स्तरों पर कई महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। अब जम्मू कश्मीर में भी देश के अन्य राज्यों के समान एक ही संविधान लागू है। अब यहां भी संविधान के सभी प्रावधान लागू हैं और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ‘एक देश, एक निशान, एक विधान’ का संकल्प भी पूरा हो गया।
 
 
लोगों को मिला उनका अधिकार 
 
 
नए डोमिसाइल कानून लागू होने के साथ अब अनुच्छेद-35अ के पीड़ितों और देश के दूसरे राज्यों के निवासी भी यहां के स्थायी निवासी बन सकते हैं। इन निवासियों के लिए कानून में कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद देश का कोई भी नागरिक यहां का निवासी होने के लिए पात्र हो सकता है। जम्मू कश्मीर में जमीनी स्तर के लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए 73वें और 74वें संशोधन द्वारा शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वास्तविक रूप से स्वशासी स्थानीय निकायों के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का सपना पूरा हुआ है। इससे न सिर्फ पंचायती राज प्रणाली और शहरी निकाय मजबूत हुई, बल्कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलने से सशक्त बनने का अवसर मिला है।
 
 
पहाड़ी जातीय समूह, पाडरी जनजाति, कोली और गद्दा ब्राह्मण को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान कर अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल किया गया है। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर प्रशासन ने चूड़ा, भंगी, बाल्मीकि, मेहतर की तरह वाल्मीकि समाज को भी अनुसूचित जाति में शामिल किया है। इन समुदायों के लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। अब जम्मू कश्मीर में एक ओर जहां सड़क, पुल, अस्पताल, रेल नेटवर्क के साथ उच्च शिक्षा संस्थान बन रहे हैं, वहीं आतंकवाद, अलगाववाद, सीमा पार से गोलीबारी जैसी घटनाओं में कमी आई है। तीन दशकों के बाद पहली बार कश्मीर घाटी में दशहरा मनाया गया और राम नवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकी निकाली गई। घाटी में जी-20 सम्मेलन का सफलतापूर्ण आयोजन होना, सिनेमा थिएटर का पुनः खुलना, तिरंगे का सम्मान बढ़ना, पत्थरबाजी का लगभग समाप्त होना, पर्यटकों की संख्या बढ़ना, अमरनाथ यात्रा शांतिपूर्ण होना निःसंदेह यह सब जम्मू कश्मीर में एक बड़े और बुनियादी बदलाव के सूचक हैं। जम्मू कश्मीर में खेल गतिविधियां जोर पकड़ रही हैं। 
 
 
विकास की मुख्य धारा से जुड़ा नया जम्मू कश्मीर 
 
 
विकास कार्यों के साथ-साथ पूंजीगत निवेश में भी वृद्धि हो रही है। घाटी में सैकड़ों मंदिरों के जीर्णाेद्धार व संरक्षण पर भी कार्य हो रहा है। जम्मू कश्मीर में अब उर्दू और अंग्रेजी के अतिरिक्त डोगरी, कश्मीरी और हिंदी भाषा भी राज्य की आधिकारिक भाषाओं की सूची में सम्मिलित हैं। जम्मू कश्मीर प्रशासन ने प्रतिष्ठित लोगों और बलिदानियों के नाम पर स्कूलों, कॉलेजों और सड़कों का नामकरण किया है। जम्मू कश्मीर में भेदभाव की राजनीति पर रोक लगी है। जम्मू कश्मीर में परिसीमन आयोग ने अंतिम आदेश में 90 विधानसभा सीटों में से 47 कश्मीर और 43 जम्मू संभाग को आबंटित की हैं। इसके साथ ही इन सीटों को पांच लोकसभा क्षेत्रों में संतुलित तरीके से व्यवस्थित किया गया है।
 
 
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कश्मीर की तीन सीटों में 50.86 प्रतिशत मतदान हुआ, जो कि 2019 के चुनावों में केवल 19.16 प्रतिशत था। कश्मीर में बढ़ी यह मतदान प्रतिशतता यहां मजबूत होते लोकतंत्र का प्रमाण है। इसके साथ ही पहली बार जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं।
 
 
 
5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 के निष्प्रभावी होने और उसके बाद से आए सकारात्मक बदलावों के कारण जम्मू कश्मीर की एकात्मता के स्पष्ट संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। इस दिन की ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता को समझते हुए हर वर्ष 5 अगस्त का दिन जम्मू कश्मीर में ‘एकात्मता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन से वास्तविक रूप में जम्मू कश्मीर में भी भारतीय संविधान पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस सुखद बयार में जहां जम्मू कश्मीर में सुशासन की उम्मीद जगी है, वहीं भेदभाव, अन्याय एवं हिंसा के गहरे घाव भरने की भी आस जगी है। आशा है कि जम्‍मू कश्‍मीर में पुनः वही प्राचीन संस्‍कृति एवं ज्ञान धारा का प्रवाह दिखाई देगा, जिसकी स्‍थापना ऋषियों-तपस्वियों ने वर्षों तक गहरी साधना के बाद इस धरती पर की थी। इसके साथ ही इतिहास में जम्मू कश्मीर की पहचान जो एक ‘ज्ञान की धरा’ के रूप में थी, वही पहचान पुनः दिखाई देगी।
 
 
 
डॉ० अजय कुमार
सहायक आचार्य
कश्मीर अध्ययन केंद्र
 
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला