भारत को बड़ी उपलब्धि : अमेरिका ने भाभा समेत 3 परमाणु संस्थानों से हटाए 20 साल पुराने प्रतिबंध

    16-जनवरी-2025
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 America removed 20 years old sanctions from 3 nuclear institutes
 
अमेरिका ने बुधवार को तीन प्रमुख भारतीय परमाणु संस्थाओं पर लगा 20 साल पुराना प्रतिबंध हटा लिया। इस फैसले से भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग के नए युग की शुरुआत होने की उम्मीद जताई जा रही है। जिन संस्थाओं पर से प्रतिबंध हटाए गए हैं, उनमें भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR), और इंडियन रेयर अर्थ (IRE) शामिल हैं।
 
 
यह कदम अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जेक सुलिवन के भारत दौरे के बाद उठाया गया। सुलिवन ने 6 जनवरी को दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में अपने संबोधन में कहा था कि अमेरिका उन नियमों को हटाएगा जो भारतीय परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग में अवरोध डाल रहे थे।
 
 
भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौता 
 
 
अमेरिका का यह निर्णय भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग के लंबे इतिहास से जुड़ा हुआ है। भारत ने 11-13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए थे, जिन्हें 'ऑपरेशन शक्ति' के नाम से जाना जाता है। इन परीक्षणों के बाद कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, और अमेरिका ने भी 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था।
 
 
हालांकि, भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद, जुलाई 2005 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका का दौरा किया और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ एक परमाणु करार पर सहमति जताई। इस करार के तहत, भारत को अमेरिकी परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्री प्राप्त करने का रास्ता मिला, लेकिन इसके बदले में भारत को दो मुख्य शर्तों पर सहमत होना पड़ा था।
 
 
पहली शर्त थी कि भारत अपनी सैन्य और नागरिक परमाणु गतिविधियों को अलग-अलग रखेगा। दूसरी शर्त थी कि परमाणु तकनीक और सामग्री देने के बाद, भारत के परमाणु केंद्रों की निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा की जाएगी।
 
 
भारत ने इन शर्तों से सहमति व्यक्त की और इसके बाद मार्च 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने भारत का दौरा किया। इस दौरे के दौरान भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग पर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ। हालांकि, इस समझौते के बाद विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया, विशेषकर लेफ्ट पार्टियों ने इसे भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के लिए खतरा बताया। बावजूद इसके, मनमोहन सिंह ने संसद में बहुमत साबित किया और 8 अक्टूबर 2008 को अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने इस समझौते पर अंतिम दस्तखत कर दिए।
 
 
अमेरिका का चीन के खिलाफ कड़ा रुख
 
 
अमेरिका द्वारा भारतीय परमाणु संस्थाओं पर से प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, अमेरिका ने चीन से जुड़ी 11 संस्थाओं पर प्रतिबंध की लिस्ट में जोड़ने का भी फैसला लिया है। अमेरिकी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह कदम उठाया है। अमेरिकी ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (BIS) ने इसकी पुष्टि की है।
 
 
 भारत के लिए महत्वपूर्ण अवसर 
 
 
यह कदम भारत के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है, क्योंकि इसके तहत भारत को वैश्विक परमाणु बाजार में अधिक स्वतंत्रता मिल सकती है। हालांकि, इस समझौते के तहत जो नए रिएक्टर लगाने की योजना बनाई गई थी, वे अब तक स्थापित नहीं हो पाए हैं। फिर भी, इस परमाणु डील का भारत को यह फायदा हुआ है कि वह दुनिया भर के परमाणु बाजारों में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है और परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है।
 
 
अमेरिका का यह कदम भारत-अमेरिका के रिश्तों में एक नई शुरुआत को दर्शाता है। दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग को लेकर यह ऐतिहासिक परिवर्तन दोनों देशों के रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा। साथ ही, यह कदम वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती स्थिति को भी संकेत करता है। भविष्य में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु, ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में और भी सहयोग बढ़ने की संभावना है, जो दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएगा।