भारत-अमेरिका के बीच बड़े प्रोजेक्ट का रोडमैप तैयार : चीन के वर्चस्व पर लगेगा पूर्ण विराम, जानें पूरा मामला

08 Jan 2025 13:00:54
 
India America partnership
 
भारत और अमेरिका के बीच पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई ऐतिहासिक सहमति के बाद, दोनों देशों के बीच बहुमूल्य धातुओं के क्षेत्र में सहयोग को नया दिशा मिला है। इस सहयोग का उद्देश्य चीन के वर्चस्व को चुनौती देना है, जो इन धातुओं के खनन और आपूर्ति श्रृंखला में प्रमुख ताकत बनकर उभरा है। अब, इस सहयोग के तहत एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर इन बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति को मजबूती देना है। 
 
 
साझेदारी का नया रूप: गैलियम, ग्रेफाइट और ग्रार्मेनियम
 
 
हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और अमेरिकी NSA जैक सुलीवान के नेतृत्व में हुई बैठक में इस सहयोग की दिशा तय की गई। इस सहयोग के पहले चरण में ग्रेफाइट, गैलियम और ग्रार्मेनियम जैसी बहुमूल्य धातुओं के सप्लाई चेन को मजबूत बनाने पर जोर दिया जाएगा। ये धातुएं अत्याधुनिक तकनीकी उद्योगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, जैसे सेमीकंडक्टर, मोबाइल फोन्स, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहनों, और ग्रिड स्टोरेज में इनका इस्तेमाल होता है।
 
 
इसके बाद, दूसरे चरण में लिथियम, टाइटेनियम, और गैलियम की प्रोसेसिंग सुविधाओं को विकसित किया जाएगा ताकि दोनों देशों के उद्योगों को इन धातुओं की पर्याप्त आपूर्ति हो सके। यह कदम भारत और अमेरिका के लिए बेहद अहम है क्योंकि इन धातुओं का इस्तेमाल आने वाले समय में न केवल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, बल्कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी बनाने में भी किया जाएगा।
 
 
चीन के वर्चस्व पर पूर्ण विराम
 
 
भारत और अमेरिका दोनों ही बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला में चीन के आधिपत्य से परेशान हैं। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इन धातुओं के खनन, प्रोसेसिंग और आपूर्ति में चीन का दबदबा है। उदाहरण के लिए, चीन के पास लिथियम के खनन का केवल 7 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन वह दुनिया के 60 प्रतिशत लिथियम बाजार पर काबिज है। इसी तरह, चीन दुनिया में 75 प्रतिशत बैटरी का उत्पादन करता है, जिसका सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ता है।
 
 
भारत की बात करें, तो हमारे दोपहिया और तीनपहिया वाहनों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी का लगभग 90 प्रतिशत चीन से आयातित है। इससे न केवल भारत की बैटरी उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है, बल्कि चीन पर निर्भरता भी बढ़ती है। इस समस्या को हल करने के लिए भारत और अमेरिका का सहयोग बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।
 
 
भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी
 
 
इस नई साझेदारी के तहत, दोनों देशों के शोध संस्थानों और कारपोरेट सेक्टर के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। इससे न केवल बहुमूल्य धातुओं के खनन और प्रोसेसिंग में मदद मिलेगी, बल्कि इससे नई तकनीकों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा, जो भविष्य में सेमीकंडक्टर, स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहनों और अन्य उच्च तकनीकी उत्पादों के निर्माण में मददगार साबित होंगे।
 
 
यह कदम न केवल भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा, बल्कि चीन की एकाधिकार की स्थिति को भी कमजोर करेगा। भारत और अमेरिका के बीच इस सहयोग से न केवल उनके उद्योगों को लाभ मिलेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण होगा, जो भविष्य में तकनीकी उन्नति को और गति देगा।
 
 
भारत और अमेरिका का यह कदम चीन के वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग बढ़ाने के साथ-साथ दोनों देशों के उद्योगों को नए अवसर मिलेंगे। यह साझेदारी भविष्य में न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि प्रौद्योगिकी और ऊर्जा क्षेत्र के लिए भी लाभकारी साबित होगी। 
 
 
 
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