24 अक्टूबर 1947 : पाकिस्तानी सेना द्वारा बारामुला में हिंदू व सिखों का नरसंहार व 19 वर्षीय मक़बूल शेरवानी की बहादुरी के क़िस्से

    24-अक्तूबर-2025
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baramulla massacre 1947
 
22 अक्टूबर 1947 क़बाइलियों की भेष में जब पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर के बड़े भूभाग पर हमला किया था, तो उस वक्त पाकिस्तानी सैनिक जम्मू कश्मीर के रास्तों से बहुत ज़्यादा परिचित नहीं थे। 22 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मुज्जफ्फराबाद, भींबर, कोटली जोकि (वर्तमान में पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर यानि PoJK का हिस्सा है) यहाँ सरेआम लूट पाट, मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार और क़त्लेआम की घटना को अंजाम देने के बाद दोमेल के रास्ते पाकिस्तानी सैनिक उरी पहुँचे। 23 अक्टूबर तक पाकिस्तानी सैनिक उरी पर क़ब्ज़ा कर चुके थे। उनका अगला निशाना श्रीनगर एयर बेस पर क़ब्ज़ा करना था। चूँकि अभी जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत के साथ नहीं हुआ था लिहाज़ा भारतीय सैनिकों को वहाँ पहुँचने में समय लग रहा था। लेकिन अभी पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर की तरफ़ बढ़ते उससे पहले उरी में महाराजा हरि सिंह के सेना प्रमुख ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह से इन हमलावरों का आमना सामना हुआ।
 
 
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह से दुश्मनों की भिड़ंत
 
 
भारी हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिक जब उरी से श्रीनगर की तरफ़ बढ़ रहे थे तब ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने हालात को पूरी तरह से विपरीत और दुश्मन को मजबूत समझते हुए एक रणनीति के तहत कैप्टन नसीब सिंह को उरी नाले पर बने एक पुल को उड़ाने का आदेश दिया, ताकि दुश्मन को रोका जा सके। आदेश मिलते ही नसीब सिंह ने नाले पर बने उस पुल को ध्वस्त कर दिया जिसके कारण दुश्मन सेना को लंबे वक्त तक तक उस पार ही रुकना पडा। हालाँकि उससे पहले ही कुछ पाकिस्तानी सैनिक पुल पार कर चुके थे। उरी में अगले एक दिन ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह की टुकड़ी के साथ आमना सामना होने के बाद इन हमलावरों का अगला निशाना बारामुला बना।
 
 
baramulla massacre 1947 
 
बारामुला नरसंहार
 
 
24-25 अक्टूबर तक क़बाइलियों की भेष में ये पाकिस्तानी सैनिक बारामुला में पहुँच चुके थे। बबारामुला पहुँच कर इन हमलावरों ने एक बार फिर हैवानियत की सारी हदों को पार करते हुए जमकर अत्याचार मचाया। हिंदू-सिख और मुस्लिम महिलाओं से दुष्कर्म, मासूम नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार और फिर उनकी हत्या इसके अलावा घरों में जमकर लूट पाट की घटना को अंजाम दिया। वहाँ ये हमलावर कई दिनों तक रहे और आगजनी, लूट पाट, तोड़फोड़, बलात्कार और हत्याएं बिना किसी रोक टोक के करते रहे। सेंट जोसफ कान्वेंट में यूरोपियन नन्स की और मिशनरी अस्पताल में क्रिश्चन नर्सों की सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी निर्मम हत्या कर दी। कई लड़कियों को उठा लिया और कई पूजा स्थलों में तोड़फोड़ और लूटपाट कर उन पवित्र स्थलों को जान बूझकर दूषित कार्यों से अपवित्र किया। 3000 ट्रकों में सामान लादकर ये हमलावर अपने साथ भी ले गए।
 
 
इन सब घटनाओं से एक मुस्लिम युवक उस वक्त भली भाँति परिचित था। जिसका नाम था मक़बूल शेरवानी। उस वक्त अगर मक़बूल शेरवानी नहीं रहा होता तो पाकिस्तानी सैनिक अपने मंसूबों में कामयाब हो सकते थे। जिसके तहत श्रीनगर पर उनका क़ब्ज़ा हो जाता। दरअसल पाकिस्तानियों ने मक़बूल की आँखों के सामने ही उसके शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। अगर बारामुला से श्रीनगर की दूरी देखें तो वो महज़ 71 किलोमीटर है। इसे तय करने में लगभग ढाई घंटे का वक्त लगता। 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का भारत में अधिमिलन हुआ और भारतीय सैनिक श्रीनगर के लिए रवाना हुई। भारतीय सैनिकों के श्रीनगर पहुँचने तक पाकिस्तानी हमलावरों को रोककर रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन इस काम को आसान करने का काम किया था मक़बूल शेरवानी ने।

baramulla massacre 1947 
 
मक़बूल शेरवानी की बहादुरी के क़िस्से
 
 
पाकिस्तानी सैनिक बारामुला में नरसंहार और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देने के बाद भारी संख्या में हथियारों के साथ श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। जैसा कि हमने पहले बताया कि पाकिस्तानी सैनिक जम्मू कश्मीर के रास्तों से भली भाँति परिचित नहीं थे। लिहाज़ा बारामुला से श्रीनगर का सफ़र कैसे तय करें ये उनके लिए मुश्किल हो गया। पाकिस्तानियों की इस कमजोरी का फ़ायदा उठाया मक़बूल शेरवानी ने। जब पाकिस्तानी सैनिकों ने रास्ते में मक़बूल शेरवानी से श्रीनगर का रास्ता पूछा तो मक़बूल ने उन पाकिस्तानी हमलावरों को श्रीनगर का ग़लत रास्ता बता दिया। मक़बूल शेरवानी ने श्रीनगर के बजाय पाकिस्तानी सैनिकों को सोपोर का रास्ता बता दिया। मक़बूल की बातों पर विश्वास कर सोपोर की ओर बढ़ गए। सोपोर का रास्ता बेहद लंबा था, लिहाज़ा ग़लत रास्ते के कारण पाकिस्तानी सैनिकों को 2 दिनों तक दर दर भटकना पड़ा।
 
 
इधर दूसरी तरफ़ जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर का भारत के साथ अधिमिलन कर दिया। भारत के साथ अधिमिलन होते ही संपूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो गया जिसकी रक्षा का जिम्मा भारतीय सैनिकों को मिल गया। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय सेना को आदेश दिया कि वो जम्मू कश्मीर को पाकिस्तानी सैनिकों के क़ब्ज़े से मुक्त कराए। लिहाज़ा भारतीय सैनिक श्रीनगर के लिए रवाना हुए। जब तक भारतीय सैनिक श्रीनगर पहुँचते तब तक पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर के बजाय सोपोर के रास्ते में भटक रही थी। मक़बूल शेरवानी की इस चतुराई और बहादुरी से भारतीय सैनिकों को तैयारी करने का मौक़ा मिला और पाकिस्तानी सैनिक अपने नापाक मंसूबों को हासिल कर पाने में विफल हुए।
 
 
27 अक्टूबर से भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी हमलावरों से जम्मू कश्मीर के हिस्से को मुक्त कराना शुरू किया और पाकिस्तानी हमलावरों को चुन चुन कर मौत के घाट उतारा। वहीं मक़बूल शेरवानी को भी अपनी इस बहादुरी और पाकिस्तानी सैनिकों को धोखा देने के लिए भारी क़ीमत चुकानी पड़ी। भारतीय सैनिकों से जब पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचाकर भाग रहे थे तभी रास्ते में उन्हें एक बार फिर मक़बूल शेरवानी मिल गए। मक़बूल को देखते ही पाकिस्तानी सैनिक उन्हें पहचान गए और फिर उन्हें अपने साथ बंधक बनाकर ले गए। 7 नवंबर 1947 को पाकिस्तानी सैनिकों ने मक़बूल शेरवानी को सूली पर लटका कर 15 गोलियों से उनका सीना छल्ली कर दिया। लेकिन इस बहादुर युवक ने अपना बलिदान देकर भी पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को विफल करने का काम किया। मक़बूल ने जिस बहादुरी से दुश्मनों से देश की रक्षा की उसे ये देश सदियों तक याद करता रहेगा।