1932 में स्थापित भारतीय वायुसेना ने बहुत कम समय में खुद को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना के रूप में स्थापित किया। आज इसके पास अत्याधुनिक राफेल, सुखोई, तेजस, मिराज-2000, चिनूक और अपाचे हेलिकॉप्टरों जैसे हथियार हैं, जो भारत की आकाशीय शक्ति का परिचय देते हैं।
लेकिन यह गौरवशाली यात्रा आसान नहीं थी, इसकी शुरुआत हुई 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से। साथ ही हाल ही में पाकिस्तान प्रायोजित पहलगाम हमले के जवाब में भारतीय सेना के Operation Sindoor में पूरी दुनिया ने भारतीय वायुसेना की ताकत देखी है। आज वायुसेना दिवस के अवसर पर हम आपको वायु सेना की वीरता और कुछ महत्वपूर्ण कार्रवाईयों से अवगत कराएंगे..जिसे जानने व पढने के बाद आपका सीना गर्व से भर उठेगा।
1947-48 : भारत-पाकिस्तान युद्ध में वायु सेना का पराक्रम
आजादी के बीते इन 78 वर्षों में भारत ने अब तक 5 युद्ध लड़े हैं। इनमें से 4 युद्धों में भारत का मुकाबला हमारे देश पर अपनी नापाक नजर रखने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान से हुआ है। इन चारों युद्धों की शुरुआत भले ही पाकिस्तान ने की हो पर युद्ध का अंत हमेशा भारत के जाबांज और वीर बहादुर सैनिकों ने किया है और हर युद्ध में जीत का जश्न भारत में मना। 1947 में भारत से विभाजित होकर पाकिस्तान दुनिया के नक़्शे पर आया और अपने जन्म से ही उसने अपनी नापाक हरकतों को जाहिर करना शुरू कर दिया।
जम्मू कश्मीर पर कब्जे की नियत से पाकिस्तानी सेना ने 22 अक्टूबर 1947 को कबयिलियों की भेष में हमला कर दिया। धीरे धीरे पाकिस्तानी हमलावर भिम्बर, मुजफ्फराबाद, कोटली, पुंछ के रास्ते होते हुए बारामुला तक आ पहुंचे थे। उनका अगला निशाना श्रीनगर था। इधर उरी और बारामुला के बाद 5000 से भी अधिक की संख्या में पाकिस्तानी हमलावर अब श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे। इसी बीच 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किया और सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करते ही पहले से तैयार बैठी भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट की टुकड़ी को श्रीनगर भेजने का आदेश दिया गया।
पहला चरण :
सबसे पहले चुनौती थी श्रीनगर को बचाना। लिहाजा जमीन के रास्ते बंद थे, इसलिए भारतीय वायुसेना ने डकोटा DC-3 विमान से सैनिकों और हथियारों की आपूर्ति शुरू की। 27 अक्टूबर 1947 को, लेफ्टिनेंट कर्नल रणजीत राय को उनकी C और D कंपनियों के साथ श्रीनगर रवाना होने और श्रीनगर और उससे जुड़े क्षेत्रों को पाकिस्तानी हमलावरों से बचाने का जिम्मा सौंपा गया।
अपने मिशन को पूरा करने के लक्ष्य के साथ कर्नल राय दिल्ली से सुबह करीब 5 बजे भारतीय वायुसेना के डकोटा विमान में उड़ान भरी। लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय और उनकी दो कंपनियां 27 अक्टूबर को सुबह 8:30 बजे श्रीनगर में उतरीं और स्थिति का प्रारंभिक आकलन करने के बाद कार्रवाई में जुट गईं। जानकारी के लिए बता दें कि यह भारत के इतिहास का पहला और सबसे साहसी एयरलिफ्ट ऑपरेशन था। चूँकि मौसम अत्यधिक ख़राब होने के कारण श्रीनगर का रनवे साफ़ नजर नहीं आ रहा था। इसके अलावा यह भी अंदेशा था कि कहीं एयरपोर्ट पर दुश्मनों का कब्ज़ा ना हुआ हो..
लिहाजा डकोटा विमान की कमान संभाल रहे पायलट बीजू पटनायक ने बेहद ही साहसी तरीके से विमान को लैंड कराया। वही बीजू पटनायक जो बाद में उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे। इन विमानों ने सिर्फ सैनिक ही नहीं, बल्कि हथियार, भोजन और जरूरी सामान भी पहुंचाया। इस त्वरित कार्रवाई ने भारतीय सेना को श्रीनगर की रक्षा मजबूत करने और पाकिस्तानी हमलावरों को शहर में घुसने से रोकने में मदद की।
दूसरा चरण: जमीनी युद्ध को वायुसेना का समर्थन
जब श्रीनगर सुरक्षित हो गया, तब वायुसेना ने दूसरी अहम भूमिका निभाई, जमीनी युद्ध को आसमान से समर्थन देना। IAF के Hawker Tempest और De Havilland Mosquito लड़ाकू विमानों ने दुश्मन ठिकानों पर बमबारी की और उनकी सप्लाई लाइनों को नष्ट किया। इन हवाई हमलों ने पाकिस्तान समर्थित कबायली दस्तों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। वायुसेना की कार्रवाई इतनी सटीक थी कि भारतीय सेना को महत्वपूर्ण स्थानों पर तेजी से कब्जा करने में बड़ी मदद मिली।
परिणाम
भारतीय वायुसेना की तत्परता और बहादुरी ने 1947 के कश्मीर युद्ध का रुख भारत की ओर मोड़ दिया। अगर वायुसेना इतनी तेजी से कार्रवाई न करती, तो श्रीनगर शायद दुश्मनों के हाथों में चला जाता। 1949 में तत्कालीन नेहरु सरकार की कुछ गलतियों के कारण युद्धविराम हुआ और जम्मू कश्मीर का बड़ा हिस्सा जिसे हम POJK, और POTL कहते हैं पाकिस्तान के कब्जे में चला गया बाकी का हिस्सा सुरक्षित भारत के नियंत्रण में बना रहा। अगर सेना को कुछ दिनों की और मोहल्लत मिलती तो आज विश्व मानचित्र पर भारत का नक्शा कुछ और होता।
भारतीय वायुसेना का यह योगदान न सिर्फ भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखने में अहम था, बल्कि उसने नई आज़ादी पाए भारत को यह विश्वास भी दिलाया कि हमारी सुरक्षा के आसमान पर कोई साया नहीं पड़ेगा।
1965 और 1971: जब पाकिस्तान ने टेके घुटनें
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वायुसेना ने पाकिस्तान के F-86 Sabre विमानों को धूल चटा दी। स्क्वाड्रन लीडर एबी देवाया जैसे वीरों ने अपने जीवन की आहुति देकर आकाश में एक नया इतिहास लिखा। लेकिन भारत की वायुशक्ति की सबसे निर्णायक जीत 1971 के युद्ध में देखने को मिली जब पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को स्वतंत्र कराने की लड़ाई में वायुसेना ने ऑपरेशन “चेंगरि” और “कैक्टस लिली” चलाए।
वायुसेना ने पाकिस्तानी ठिकानों पर भीषण बमबारी की, उनके रनवे ध्वस्त कर दिए और हवाई समर्थन देकर भारतीय थलसेना को निर्णायक बढ़त दिलाई। फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के 6 फाइटर प्लेन को नेस्तनाबूद कर भारत की जीत सुनिश्चित कर दी थी। फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों भारतीय वायुसेना के इकलौते ऐसे जवान हैं जिन्हें उनकी वीरता के लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
इस युद्ध के अंत में 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया, और बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह भारतीय वायुसेना की सबसे गौरवशाली विजय मानी जाती है।
ऑपरेशन मेघदूत : सियाचिन पर भारत का नियंत्रण
ऑपरेशन मेघदूत अप्रैल 1984 में भारतीय सेना और वायुसेना द्वारा संयुक्त रूप से चलाया गया था। इसके तहत रणनीतिक रूप से अहम सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करना था। क्योंकि इस दुर्गम चोटी पर दुश्मन देश पाकिस्तान की नजर थी। वायुसेना ने ऊंचाई पर सैनिकों, रसद, हथियार और आपूर्ति सामग्री पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी, यह दुनिया का सबसे ऊंचाई पर लड़ा गया युद्ध था। इस ऑपरेशन के कारण भारत ने सियाचिन पर स्थायी नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
1999 कारगिल युद्ध : ऑपरेशन सफ़ेद सागर
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा दिखाए गए शौर्य और पराक्रम की गाथाएं आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा हैं। जम्मू कश्मीर की भूमि पर कब्जे की नियत से किया गया पाकिस्तानी सेना का यह हमला उसके नापाक मंसूबों का एक और उदाहरण था। पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को भांपते हुए भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने मिलकर एक योजना तैयार की। योजना के तहत, दोनों सेनाओं ने मिलकर दुश्मन के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू करने का फैसला किया। दोनों सेनाओं के इस फैसले के बाबत केंद्र सरकार को अवगत कराया। कैबिनेट से अनुमति मिलते ही भारतीय वायुसेना ने 26 मई 1999 को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ की शुरूआत कर दी और दुश्मन को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
ऑपरेशन सफ़ेद सागर के तहत भारतीय वायुसेना के जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों पर जमकर गोले बरसाए जिससे कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हुई। इस ऑपरेशन की ख़ास बात यह थी कि ऑपरेशन को अंजाम देने वाले पायलट और इंजीनियर को महज़ एक सप्ताह की ट्रेनिंग मिली थी बावजूद इसके इन जवानों ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये। इस मिशन की ख़ास बात यह भी थी कि भारत ने पहली बार 32 हज़ार फीट की ऊँचाई पर वायु शक्ति का प्रयोग किया था। उधर दूसरी तरफ़ भारतीय थल सेना द्वारा ऑपरेशन विजय की शुरुआत हुई और चुन चुन कर पाकिस्तानियों सैनिकों को मौत के घाट उतारते हुए उनके क़ब्ज़े से सभी प्वॉइंट को मुक्त कराये जाने लगा।
वायुसेना का अद्भुत पराक्रम
भारतीय वायुसेना ने इस मिशन में अपने सबसे शक्तिशाली फाइटर जेट्स उतारे:
मिग-21, मिग-27, जगुआर, और पहली बार मिराज-2000 का ऊँचाई पर उपयोग किया गया।
मिराज-2000 ने लेजर गाइडेड बम से पाकिस्तानी बंकरों को तबाह कर दिया।
टाइगर हिल, तोलोलिंग और ड्रास की चोटियों पर दुश्मनों के ठिकानों को टुकड़ों में बाँट दिया गया।
यह पहली बार था जब भारतीय वायुसेना ने इतनी ऊँचाई पर पूरी तरह आक्रामक हवाई कार्रवाई की – और वह भी बिना नियंत्रण रेखा (LoC) पार किए।
बालाकोट एयरस्ट्राइक :
पुलवामा हमले के 3 दिनों बाद 17 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सभा के दौरान अपने संबोधन के जरिये यह घोषणा की थी कि 'मैं अपने दिल में वही आग महसूस करता हूं, जो आपके अंदर भड़क रही है। उन्होंने कहा था कि "सभी आंसुओं का बदला लिया जाएगा" और सशस्त्र बलों को "दुश्मन के खिलाफ प्रतिशोध की जगह, समय को तय करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है।" 17 फरवरी को पीएम मोदी ने यह भाषण दिया और 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर घुस कर एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया। पुलवामा हमले के महज 12 दिनों बाद भारतीय वायुसेना के जाबांज जवानों ने नापाक पाकिस्तान से उसके किये की सजा दी।
300 आतंकियों को उतारा मौत के घाट
वायुसेना ने 26 फरवरी को रात करीब 3 बजे वायुसेना के 12 मिराज 2000 फाइटर जेट्स ने लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) को पार करके बालाकोट स्थित जैश आतंकियों के ठिकानों पर बामबारी की। जारी आंकड़ो के मुताबिक इस हमले में जैश से जुड़े करीब 300 आतंकी मारे गए। एयरस्ट्राइक में तकरीबन हजार किलो बम आतंकी ठिकानों पर बरसाए गए थे। पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान से बदला लेने का प्लान बनाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NSA अजित डोभाल को दी थी। उनके अलावा, तत्कालीन वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने भी एयरस्ट्राइक में अहम भूमिका निभाई थी।
ऑपरेशन सिंदूर :
22 अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में हुए जघन्य नरसंहार में 26 हिन्दू और 2 विदेशी पर्यटकों का धर्म के आधार पर नृशंस हत्या कर दी गई। हत्या से पहले आतंकियों ने इन पर्यटकों से उनका धर्म पूछा और उन्हें कलमा पढने को कहा और फिर गोलियों से भून दिया। इस नृशंस आतंकी हमले के बाद भारत ने अब तक की सबसे व्यापक सैन्य कार्रवाई –'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने ना सिर्फ POJK में बल्कि पहली बार पाकिस्तान के भीतर घुसकर जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के 9 प्रमुख आतंकी ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ का स्तर, समन्वय और प्रभाव भारत की नई और परिपक्व हो चुकी आतंकवाद-रोधी नीति को दर्शाता है जिसमें सैन्य सटीकता, रणनीतिक संदेश और अंतरराष्ट्रीय वैधता का संतुलन दिखता है। इस अभियान से पाकिस्तान की सेना और आतंकी संगठनों की गहरी साठगांठ उजागर हुई और भारत-विरोधी जिहादी नेटवर्क की आधारभूत संरचनाएं ध्वस्त कर दी गईं। अनुमान के तहत इस हमले में 150 से अधिक आतंकी मारे गए। जिसमें आतंकी मसूद अजहर के परिवार के कुल 14 सदस्य मारे गए।

सिर्फ युद्ध ही नहीं, संकट में भी वायु सेना की अद्भुत सेवा"
भारतीय वायुसेना ने हमेशा यह साबित किया है कि उसका साहस और समर्पण केवल लड़ाई तक सीमित नहीं है। संकट की किसी भी घड़ी में, चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या वैश्विक संकट, वायुसेना ने देश और देशवासियों के लिए अनेकों सराहनीय कार्य किए हैं।
चाहे वह विपत्तिजनक बाढ़ और सुनामी हों, या अंतरराष्ट्रीय संकट जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास संघर्ष, या अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान फंसे भारतीय छात्रों और नागरिकों की सुरक्षित वापसी हर बार वायुसेना ने साहस और दक्षता का परिचय दिया।
इसके अलावा, देश में हुए नेपाल त्रासदी, उत्तराखंड आपदा, वायनाड त्रासदी और अनेक अन्य आपदाओं के दौरान भी वायुसेना ने समय रहते राहत और बचाव अभियान चलाकर हज़ारों लोगों की जानें बचाई और राहत सामग्री पहुँचाई। यह दिखाता है कि भारतीय वायुसेना केवल देश की सीमाओं की सुरक्षा नहीं करती, बल्कि संकट की हर घड़ी में देश की आत्मा और नागरिकों की सुरक्षा की प्रतीक बनी रहती है।
आज का भारत
आज भारतीय वायुसेना में 1.7 लाख से अधिक कर्मी और 1700 से अधिक विमान हैं।
इसके पास अब राफेल, तेजस Mk1A, सुखोई-30MKI, प्रचंड हेलिकॉप्टर और आने वाले AMCA स्टेल्थ फाइटर जेट हैं।
देश अब ‘मेक इन इंडिया’ के तहत स्वदेशी विमान, इंजन और मिसाइलें तैयार कर रहा है।
भारतीय वायुसेना के हर योद्धा के दिल में एक ही नारा गूंजता है - “Touch the sky with glory”
चाहे वह जम्मू कश्मीर की धरती हो, कारगिल की ऊंचाइयां हों, बालाकोट का आसमान या ऑपरेशन सिन्दूर में पाकिस्तान की नापाक धरती हर जगह वायुसेना ने यह साबित किया है कि भारत की शांति के पीछे उसकी शक्ति है।
जय हिन्द!
Written By : Arnav Mishra (Ujjawal)