'बूंद बूंद को तरसेगा पाकिस्तान..' ; सिन्धु जल समझौते पर इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

    01-नवंबर-2025
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Indus Waters treaty impact for pakistan
  
 
Indus Wtaers Treaty : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को अस्थायी रूप से निलंबित (suspend) करने का निर्णय लिया है। भारत के इस रणनीतिक फैसले से पाकिस्तान में गंभीर जल संकट (water crisis) की आशंका जताई जा रही है। ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, अगर भारत सिंधु नदी के जल प्रवाह को रोकता है या घटाता है, तो पाकिस्तान की कृषि, बिजली उत्पादन और पीने के पानी की व्यवस्था पर सीधा और बड़ा असर पड़ेगा।
 
 
भारत का निर्णय और उसका प्रभाव
 
 
भारत के इस फैसले के बाद सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों से पाकिस्तान की ओर जाने वाले जल प्रवाह में कमी आ गई है। इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट 2025 के मुताबिक, पाकिस्तान के मौजूदा जलाशय (dams) सिंधु नदी के पानी को केवल 30 दिनों तक ही रोक पाने की क्षमता रखते हैं। इसके बाद देश को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
 
 
खासकर सर्दियों और सूखे मौसम में, जब जल प्रवाह स्वाभाविक रूप से कम होता है। देश की 80% खेती सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। पाकिस्तान की बिजली उत्पादन प्रणाली का बड़ा हिस्सा जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़ा है। अगर भारत अपने हिस्से की नदियों पर नियंत्रण बढ़ाता है या सिंधु नदी का बहाव घटाता है, तो पाकिस्तान के मैदानी और घनी आबादी वाले क्षेत्र, विशेषकर पंजाब और सिंध प्रांतों में खेती ठप पड़ सकती है, पानी की किल्लत बढ़ सकती है और बिजली संकट गहरा सकता है।
 
 
भारत की क्षमता और रणनीति
 
 
हालांकि भारत का मौजूदा बुनियादी ढांचा (infrastructure) नदियों के जल प्रवाह को पूरी तरह रोकने में सक्षम नहीं है, लेकिन सीमित स्तर पर जल नियंत्रण भी पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। भारत यदि अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली नदियों पर बांधों और जल परियोजनाओं की क्षमता बढ़ाता है, तो वह सिंधु प्रणाली के प्रवाह को काफी हद तक नियंत्रित कर सकता है। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ कठोर और विश्वसनीय कार्रवाई नहीं करता, तब तक इस संधि पर रोक जारी रहेगी। इसके साथ ही भारत ने अटारी बॉर्डर के व्यापारिक आवागमन पर भी अस्थायी रोक जैसी कई कूटनीतिक कार्रवाइयाँ की हैं।
 
 
सिंधु जल संधि क्या है?
 
 
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित हुई थी। इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
 
 
इस समझौते के तहत भारत से पाकिस्तान की ओर बहने वाली छह नदियों सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज को दो समूहों में बाँटा गया था:
 
 
पूर्वी नदियाँ (Ravi, Beas, Sutlej) इन पर भारत का पूरा अधिकार है। भारत इन नदियों के जल का पूर्ण उपयोग कर सकता है सिंचाई, पीने के पानी और बिजली उत्पादन के लिए।
 
 
पश्चिमी नदियाँ (Indus, Jhelum, Chenab) इनका अधिकांश जल पाकिस्तान को दिया गया। भारत को इन नदियों पर केवल गैर-खपत वाले उपयोग (Non-Consumptive Use) की अनुमति है, जैसे बिजली उत्पादन या रन-ऑफ-रिवर प्रोजेक्ट, जिनमें पानी पुनः नदी में छोड़ दिया जाता है।
 
 
पाकिस्तान पर संभावित असर
 
 
संधि के निलंबन से पाकिस्तान की वाटर सप्लाई पर सीधा असर पड़ेगा। उसे इस समझौते के तहत कुल जल प्रवाह का करीब 80% हिस्सा मिलता है। पश्चिमी नदियों से आने वाला यही पानी उसकी खेती, पेयजल और बिजली उत्पादन की रीढ़ है। पाकिस्तान पहले से ही पानी की कमी और जल प्रबंधन की कमजोर व्यवस्था से जूझ रहा है। ऐसे में भारत का यह कदम उसके लिए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर संकट खड़ा कर सकता है।
 
 
भारत का स्पष्ट रुख
 
 
भारत ने दो टूक कहा है कि आतंकवाद और संवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। जब तक पाकिस्तान अपनी भूमि से भारत विरोधी आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई नहीं करता, सिंधु जल संधि पर रोक जारी रहेगी, और सीमा-पार सहयोग से जुड़े अन्य क्षेत्रों पर भी समीक्षा की जाएगी।
 
 
निष्कर्ष
 
 
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का सिंधु जल संधि को निलंबित करना सिर्फ एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी है कि अब आतंकवाद की कीमत सिर्फ “कड़े शब्दों” में नहीं, बल्कि कार्रवाई और संसाधनों के स्तर पर चुकानी होगी। अगर पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करता, तो आने वाले वर्षों में उसे भयंकर जल संकट, कृषि तबाही और ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ सकता है और यह उसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।