क्या फिर से सुनाई देगी ‘पोखरण’ की गूंज ? ट्रंप का दावा - पाकिस्तान कर रहा परमाणु परीक्षण, अब क्या होगी भारत की नई रणनीति ?

03 Nov 2025 13:49:22
 
Pakistan conducting nuclear tests Donald Trump claim
  
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया है कि पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण शुरू कर दिए हैं। ट्रंप के अनुसार, रूस, चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान सभी अपने परमाणु कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे हैं। लिहाजा इसलिए अमेरिका अब पीछे नहीं रह सकता। उन्होंने अमेरिकी सेना को ‘नए न्यूक्लियर टेस्ट की तैयारी’ का आदेश भी दे दिया है।
 

अगर यह दावा सच साबित होता है, तो यह न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक रणनीतिक झटका होगा। 33 साल पुराने CTBT (Comprehensive Test Ban Treaty) की भावना पर ही सवाल उठ खड़ा होगा, जिसके तहत दुनिया भर में किसी भी तरह के परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाई गई थी।

 
 
 
 
भारत के लिए बढ़ती रणनीतिक चुनौती
 

ट्रंप के बयान का सबसे गंभीर असर भारत के लिए है। क्योंकि अगर पाकिस्तान अपने परमाणु परीक्षण दोबारा शुरू करता है और चीन पहले से ही अपने परमाणु जखीरे को तेज़ी से बढ़ा रहा है तो भारत को दो परमाणु मोर्चों से एक साथ चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि यह स्पष्ट करना बेहद उचित होगा कि आज के समय में जब दुनिया तकनीकी रूप से बेहद विकसित हो चुकी है तो ऐसे में दुनिया की नजरों से बचा कर न्यूक्लिअर टेस्ट करना आसान नहीं।

 
कितना आसान है आज के वक्त में परमाणु परिक्षण ?  
 
 
परमाणु परीक्षण कोई आसान काम नहीं है कि जब जी में आया तब कर लिया। इसके लिए वैज्ञानिक, तकनीकी, लॉजिस्टिकल और राजनीतिक तैयारी का मिश्रण करना होता है। ना सिर्फ बड़े बल्कि एक छोटे देश के लिए भी इसमें महीनों से सालों लग सकते हैं। ऊपर से सैटेलाइट की नजर से बचना बेहद मुश्किल। परमाणु परिक्षण के लिए डिजाइन तैयार करना, सामग्री एकत्रित करना, डिवाइस तैयार करना, परिक्षण के लिए जगह का चुनाव करना और इन सभी से भी महत्वपूर्ण गोपनीयता बनाए रखना जोकि सबसे मुश्किल है।
 
 
ऐसे में आर्थिक रूप से कंगाल देश पाकिस्तान के लिए आज के समय में परमाणु परिक्षण करना ये संभव नहीं लगता। कहीं न कहीं ट्रंप का बयान हमेशा की तरह राजनीतिक लाभ के लिए हो सकता है। लेकिन मान लेते हैं कि अगर ट्रंप का यह दावा सच भी साबित हुआ तो भारत के लिए क्या कोई चुनौती हो सकती है ? या भारत आगे क्या कदम उठा सकता है ? इस बात पर भी चर्चा करते हैं।
 
 
वर्तमान स्थिति:
 
 
भारत के पास लगभग 180 परमाणु हथियार हैं,
 
 
पाकिस्तान के पास लगभग 170,
 
 
और चीन के पास लगभग 600, जो 2030 तक 1,000 तक पहुंच सकते हैं।
 

हालाँकि विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान की चुनौती ‘सीमित’ है, लेकिन चीन की क्षमता अब ‘निवारक’ से आगे बढ़कर ‘हमलावर’ प्रकृति की होती जा रही है। चीन के पास अब FOBS (Fractional Orbital Bombardment System) जैसी प्रणाली है, जो किसी भी दिशा से हमला कर सकती है और भारत की मिसाइल डिफेंस प्रणाली को चकमा देने में सक्षम है।

 
पोखरण-II और अधूरा सवाल
 

भारत ने 1998 में पोखरण-II परीक्षणों के बाद यह घोषणा की थी कि अब वह स्वेच्छा से आगे कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। उस समय भारत ने ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध (Credible Minimum Deterrence)’ और ‘पहले इस्तेमाल न करने (No First Use)’ की नीति अपनाई थी। हालांकि, परीक्षणों को लेकर वैज्ञानिक जगत में मतभेद बने रहे। 

 
 1998 के परीक्षणों के समन्वयक डॉ. के. संथानम ने बाद में दावा किया कि भारत का हाइड्रोजन बम परीक्षण पूरी तरह सफल नहीं हुआ था। उनका कहना था कि परीक्षण की वास्तविक शक्ति केवल 10–15 किलोटन रही, जबकि अपेक्षित थी 200 किलोटन। वहीं तत्कालीन परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रमुख राजगोपाल चिदंबरम ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा था कि परीक्षण पूरी तरह सफल रहे। इन मतभेदों ने भारत की थर्मोन्यूक्लियर (Hydrogen Bomb) क्षमता पर एक स्थायी प्रश्नचिह्न छोड़ दिया जो आज भी बहस का विषय है।
 
 
क्या फिर से परीक्षण का समय आ गया है?
 

अब जबकि अमेरिका, रूस, चीन और संभवतः पाकिस्तान भी अपने परीक्षणों को फिर शुरू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं कई भारतीय रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए भी यह ‘खिड़की’ खुल रही है। रणनीतिक विश्लेषक भरत कर्नाड का कहना है कि भारत के छोटे परमाणु हथियार चीन के विशाल थर्मोन्यूक्लियर हथियारों की तुलना में कमजोर हैं। इसलिए भारत को अपनी थर्मोन्यूक्लियर क्षमता को सिद्ध करने के लिए एक बार फिर परीक्षण करना चाहिए।  

 
वहीं, सुरक्षा विश्लेषक संदीप उन्नीथन का मत है कि भारत के पास पर्याप्त वैज्ञानिक डेटा है जिससे वह कंप्यूटर सिमुलेशन और Cold Tests के जरिए भी हथियारों में सुधार कर सकता है बिना किसी वास्तविक विस्फोट के। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ‘तकनीकी पर्याप्तता’ आने वाले दशक की रणनीतिक जरूरतों को पूरा कर पाएगी? हालाँकि इन सब के बीच यह भी स्पष्ट करना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि पाकिस्तानी के परमाणु परिक्षण को लेकर कोई भी सटीक जानकारी नहीं है। सिर्फ ट्रंप के दावे के आधार पर यह मान लेना कि पाकिस्तान परमाणु परिक्षण कर रहा है यह थोडा अनुचित होगा।
 

हालाँकि अगर यह सम्भावना सच भी साबित होती है तो भारत के लिए कोई ख़ास चुनौती नहीं रहने वाली। भारत पहले से ही एक विशाल परमाणु संपन्न देश है। साथ ही भारत की तीनों सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और मजबूत सेना है। इस बात का ज्ञान पाकिस्तान को भारत से हुए लगभग सभी युद्धों में मालुम हो चुका है। साथ ही हाल में हुए ऑपरेशन सिन्दूर में जिस तरह से पाकिस्तान को भारतीय सेना से मार पड़ी उसे शायद पाकिस्तान अगले कई वर्षों तक भूल नहीं सकता।

 
भारत की छवि बनाम सुरक्षा की प्राथमिकता
 

भारत ने 1974 से अब तक दो विरोधी अवधारणाओं के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाए रखा है एक ओर वैश्विक शांति और निरस्त्रीकरण का समर्थन, और दूसरी ओर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना। भारत ने न तो NPT (Non-Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर किए और न ही CTBT पर, लेकिन इसके बावजूद दुनिया भारत को एक “जिम्मेदार परमाणु शक्ति” के रूप में देखती है।

 
अगर भारत अब परीक्षण करता है, तो उसकी यह छवि खतरे में पड़ सकती है। लेकिन अगर भारत परीक्षण नहीं करता और पड़ोसी देश करते हैं तो उसकी रणनीतिक विश्वसनीयता कमज़ोर पड़ सकती है। यानि विशेषज्ञों की राय में आगे की राह ‘रणनीतिक धैर्य’ और ‘तकनीकी तैयारी’ दोनों ही जरूरी है। जैसे भारत को जल्दबाज़ी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए लेकिन निष्क्रिय रहना भी अब विकल्प नहीं है।
 
 
लिहाजा पहला कदम, भारत को अपनी थर्मोन्यूक्लियर क्षमता का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर ‘सिमुलेशन + Cold Test’ का संयोजन अपनाना चाहिए।
 
 
दूसरा, चीन और पाकिस्तान के संभावित संयुक्त खतरे के मद्देनज़र, भारत को मल्टी-लेयर मिसाइल डिफेंस और डिलीवरी सिस्टम्स (Agni-VI, MIRV Technology) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
 
 
तीसरा, भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश देना चाहिए कि अगर कोई और परीक्षण करता है, तो भारत अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र है।
 
 
पोखरण की याद
 

भारत का परमाणु कार्यक्रम कभी ‘हमले’ के लिए नहीं, बल्कि ‘निवारण’ (Deterrence) के लिए रहा है। लेकिन अब जब वैश्विक शक्तियाँ फिर से परीक्षण के रास्ते पर लौट रही हैं और पाकिस्तान जैसी अस्थिर ताकतें भी अपनी परमाणु गतिविधियों को तेज़ कर रही हैं तो भारत को अपनी तकनीकी क्षमता, कूटनीतिक विवेक और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के बीच नया संतुलन बनाना होगा। शायद अब वक्त आ गया है कि भारत ‘पोखरण की आत्मा’ को फिर याद करे न कोई आक्रामकता, न कोई हड़बड़ी लेकिन संकल्प यही कि भारत की सुरक्षा और गरिमा पर कोई प्रश्नचिह्न न उठे।

 
 
 
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