
अगर यह दावा सच साबित होता है, तो यह न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक रणनीतिक झटका होगा। 33 साल पुराने CTBT (Comprehensive Test Ban Treaty) की भावना पर ही सवाल उठ खड़ा होगा, जिसके तहत दुनिया भर में किसी भी तरह के परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाई गई थी।
#Watch : परमाणु परीक्षण कर रहा है पाकिस्तान..!'
— Jammu-Kashmir Now (@JammuKashmirNow) November 3, 2025
ट्रंप ने किया बड़ा खुलासा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में CBS न्यूज़ को दिए अपने एक साक्षात्कार में बड़ा खुलासा किया है। दुनिया के कई देश परमाणु बम की टेस्टिंग कर रहे हैं, लेकिन वे इसके बारे में बात नहीं करते… pic.twitter.com/Q0xM6GrH4y
ट्रंप के बयान का सबसे गंभीर असर भारत के लिए है। क्योंकि अगर पाकिस्तान अपने परमाणु परीक्षण दोबारा शुरू करता है और चीन पहले से ही अपने परमाणु जखीरे को तेज़ी से बढ़ा रहा है तो भारत को दो परमाणु मोर्चों से एक साथ चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि यह स्पष्ट करना बेहद उचित होगा कि आज के समय में जब दुनिया तकनीकी रूप से बेहद विकसित हो चुकी है तो ऐसे में दुनिया की नजरों से बचा कर न्यूक्लिअर टेस्ट करना आसान नहीं।
हालाँकि विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान की चुनौती ‘सीमित’ है, लेकिन चीन की क्षमता अब ‘निवारक’ से आगे बढ़कर ‘हमलावर’ प्रकृति की होती जा रही है। चीन के पास अब FOBS (Fractional Orbital Bombardment System) जैसी प्रणाली है, जो किसी भी दिशा से हमला कर सकती है और भारत की मिसाइल डिफेंस प्रणाली को चकमा देने में सक्षम है।
भारत ने 1998 में पोखरण-II परीक्षणों के बाद यह घोषणा की थी कि अब वह स्वेच्छा से आगे कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। उस समय भारत ने ‘विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध (Credible Minimum Deterrence)’ और ‘पहले इस्तेमाल न करने (No First Use)’ की नीति अपनाई थी। हालांकि, परीक्षणों को लेकर वैज्ञानिक जगत में मतभेद बने रहे।
अब जबकि अमेरिका, रूस, चीन और संभवतः पाकिस्तान भी अपने परीक्षणों को फिर शुरू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं कई भारतीय रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिए भी यह ‘खिड़की’ खुल रही है। रणनीतिक विश्लेषक भरत कर्नाड का कहना है कि भारत के छोटे परमाणु हथियार चीन के विशाल थर्मोन्यूक्लियर हथियारों की तुलना में कमजोर हैं। इसलिए भारत को अपनी थर्मोन्यूक्लियर क्षमता को सिद्ध करने के लिए एक बार फिर परीक्षण करना चाहिए।
हालाँकि अगर यह सम्भावना सच भी साबित होती है तो भारत के लिए कोई ख़ास चुनौती नहीं रहने वाली। भारत पहले से ही एक विशाल परमाणु संपन्न देश है। साथ ही भारत की तीनों सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और मजबूत सेना है। इस बात का ज्ञान पाकिस्तान को भारत से हुए लगभग सभी युद्धों में मालुम हो चुका है। साथ ही हाल में हुए ऑपरेशन सिन्दूर में जिस तरह से पाकिस्तान को भारतीय सेना से मार पड़ी उसे शायद पाकिस्तान अगले कई वर्षों तक भूल नहीं सकता।
भारत ने 1974 से अब तक दो विरोधी अवधारणाओं के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाए रखा है एक ओर वैश्विक शांति और निरस्त्रीकरण का समर्थन, और दूसरी ओर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना। भारत ने न तो NPT (Non-Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर किए और न ही CTBT पर, लेकिन इसके बावजूद दुनिया भारत को एक “जिम्मेदार परमाणु शक्ति” के रूप में देखती है।
भारत का परमाणु कार्यक्रम कभी ‘हमले’ के लिए नहीं, बल्कि ‘निवारण’ (Deterrence) के लिए रहा है। लेकिन अब जब वैश्विक शक्तियाँ फिर से परीक्षण के रास्ते पर लौट रही हैं और पाकिस्तान जैसी अस्थिर ताकतें भी अपनी परमाणु गतिविधियों को तेज़ कर रही हैं तो भारत को अपनी तकनीकी क्षमता, कूटनीतिक विवेक और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के बीच नया संतुलन बनाना होगा। शायद अब वक्त आ गया है कि भारत ‘पोखरण की आत्मा’ को फिर याद करे न कोई आक्रामकता, न कोई हड़बड़ी लेकिन संकल्प यही कि भारत की सुरक्षा और गरिमा पर कोई प्रश्नचिह्न न उठे।