बडगाम उप-चुनाव में सियासी सरगर्मी तेज ; लेकिन प्रचार से गायब उमर अब्दुल्ला पर PDP ने उठाए सवाल

    04-नवंबर-2025
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budgam bypoll where is omar abdullah
 
जम्मू-कश्मीर में 11 नवंबर को दो विधानसभा सीटों कश्मीर संभाग की बडगाम और जम्मू संभाग की नगरोटा पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। इनमें से बडगाम सीट इन दिनों सबसे ज्यादा सुर्खियों में है, और इसकी वजह सिर्फ मुकाबला नहीं बल्कि नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के भीतर मची गहमागहमी भी है। दरअसल बडगाम सीट को दशकों से NC का गढ़ माना जाता रहा है। हाल के विधानसभा चुनाव में भी उमर अब्दुल्ला बडगाम और गांदरबल दो सीटों से चुनावी मैदान में खड़े हुए थे और दोनों ही सीटों से उन्हें जीत हासिल हुई।
 
 
बडगाम: अब्दुल्ला परिवार का गढ़
 
 
बडगाम विधानसभा सीट पर दशकों से अब्दुल्ला परिवार का दबदबा रहा है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गंदरबल सीट बरकरार रखते हुए बडगाम से इस्तीफा दे दिया। लिहाजा अब इस सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। अब इस सीट पर NC के आगा सैयद महमूद, PDP के आगा सैयद मुंताज मेहदी, और भाजपा के आगा सैयद मोहसिन के बीच मुकाबला दिलचस्प बन गया है। तीनों उम्मीदवार एक ही प्रभावशाली ‘आगा परिवार’ से हैं, जिससे मुकाबला और भी जटिल हो गया है।
 
 
 
  
 
चर्चा का केंद्र: उमर अब्दुल्ला की अनुपस्थिति
 
 
बहरहाल चुनावी माहौल में जिस बात ने सबसे ज्यादा राजनीतिक हलचल पैदा की है, वह है उमर अब्दुल्ला का अब तक प्रचार मैदान में न उतरना। PDP ने इस मुद्दे को तुरंत भुना लिया है। पार्टी के नेताओं ने जनता के बीच जाकर सवाल उठाया है कि “जो नेता खुद इसी सीट से बड़े बहुमत से जीते थे, वे अब अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार करने क्यों नहीं आ रहे? महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती ने आरोप हमला बोलते हुए कहा कि बडगाम सीट से उमर अब्दुल्ला भारी मतों से जीतें लेकिन वे एक बार भी यहाँ की जनता का हाल जानने नहीं आए।” बहरहाल यह सवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक भी है क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस में अंदरूनी मतभेद इतने गहरे हो चुके हैं कि पार्टी प्रमुख भी प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं?
 
 
 
 
 
रुहुल्ला बनाम उमर: NC की अंदरूनी कलह  
 
 
इस उपचुनाव ने NC के भीतर उमर अब्दुल्ला और वरिष्ठ नेता-सांसद आगा सैयद रुहुल्ला के बीच चल रहे विवाद को भी सतह पर ला दिया है। रुहुल्ला, जो 2002 से 2018 तक बडगाम के विधायक रहे हैं और फिलहाल श्रीनगर से सांसद हैं, ने खुलकर ऐलान किया है कि वे उपचुनाव में पार्टी के लिए प्रचार नहीं करेंगे। उनका आरोप है कि “पार्टी और उसके नेता जनता से किए गए वादों से भटक गए हैं, किसी भी मुद्दे पर गंभीर अमल नहीं हो रहा। लिहाजा किस मुंह से जनता के बीच वोट मांगने जाएं।” यानि यहाँ ना सिर्फ PDP बल्कि उमर अब्दुल्ला के खिलाफ उनके अपने ही सांसद भी खड़े हैं। आगा सैयद रुहुल्ला ने कई मौकों पर यह साफ़ किया है कि वे पार्टी के लिए वोट नहीं मांगेगे।
 
 
उमर का पलटवार और सीधा निशाना
 
 
हालाँकि इन सब के बीच नामांकन के दिन उमर अब्दुल्ला ने भी आगा सैयद रुहुल्ला पलटवार किया। उन्होंने कहा कि “किसी सांसद के प्रचार में उतरने या न उतरने से NC की जीत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, हमारी जीत तय है।” उमर ने आगे यह भी कहा कि “अगर बडगाम पिछड़ा है, तो इसके लिए वही लोग जिम्मेदार हैं जो लंबे समय तक यहां के प्रतिनिधि रहे।” यह बयान सीधा-सीधा रुहुल्ला पर तंज माना गया, जिन्होंने करीब 16 साल तक बडगाम का प्रतिनिधित्व किया है।
 
 
NC के भीतर असहजता, PDP की आक्रामकता
 
 
इस पूरे विवाद ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के भीतर असहज माहौल पैदा कर दिया है। एक तरफ पार्टी के शीर्ष नेता उमर अब्दुल्ला प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं, वहीं उनके ही सांसद और पुराने सहयोगी रुहुल्ला सार्वजनिक रूप से असहमति जता रहे हैं। दूसरी ओर, PDP इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। पार्टी के नेता खुले तौर पर जनता के बीच यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि “NC ने अपने 50 विधायकों को प्रचार में उतार दिया, लेकिन उमर अब्दुल्ला खुद नहीं आ रहे यह उनकी जिम्मेदारी से भागने का सबूत है।”
 
 
क्या अब्दुल्ला को सता रहा है डर ?
 
बडगाम उपचुनाव के बीच उमर अब्दुल्ला का प्रचार से दूरी बनाए रखना अब सिर्फ राजनीतिक रणनीति नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक सवाल बन गया है क्या उन्हें इस बात का डर है कि पार्टी के भीतर बढ़ते मतभेद, खासकर सांसद आगा सैयद रुहुल्ला की नाराज़गी, कहीं उनके खिलाफ माहौल न बना दें? या फिर उन्हें यह अंदेशा है कि बडगाम की जनता उनसे पुराने सवाल पूछेगी, जिनका जवाब देना उनके लिए आसान नहीं होगा जैसे कि, “जब आपने दो सीटों से जीत हासिल की थी, तो बडगाम को छोड़कर गांदरबल ही क्यों चुना?”
 
 
बडगाम, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, उस सीट को छोड़ने का निर्णय आज भी कई कार्यकर्ताओं और स्थानीय समर्थकों के लिए एक अनसुलझी पहेली है। संभव है कि उमर अब्दुल्ला जानते हों, इस बार अगर वे जनता के बीच जाते हैं तो ये सवाल फिर गूंजेंगे और शायद उनके पास उन सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं होगा। यही वजह हो सकती है कि वो इस बार प्रचार मैदान से दूरी बनाकर ‘जोखिम’ से बचना चाह रहे हैं। या फिर वे इस ओवर कांफिडेंस में हो कि यह सीट तो NC का गढ़ है तो जीत तय है।
 
  
बडगाम सीट : प्रतिष्ठा की लड़ाई
 
 
बहरहाल 11 नवंबर का उपचुनाव बडगाम के लिए अब सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि NC की प्रतिष्ठा और आंतरिक एकता की परीक्षा बन चुका है। जहाँ एक ओर उमर अब्दुल्ला की चुप्पी और दूरी पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रुहुल्ला की नाराजगी पार्टी के भीतर गहरे मतभेदों की झलक दिखा रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस अपने पारंपरिक गढ़ को बरकरार रख पाएगी, या फिर PDP इस असंतोष को भुना कर अब्दुल्ला परिवार की पकड़ को कमजोर करने में सफल होगी।