पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला क्षेत्र POJK (Pakistan Occupied Jammu & Kashmir) आज सिर्फ एक भू-राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि हमारी आस्था, इतिहास और सभ्यता के घाव की तरह है। बीते 78 वर्षों से यह भारत की पवित्र भूमि पाकिस्तान के अवैध कब्जे में कराह रही है। 1947 में जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया, तब उसकी फौज और भाड़े के कबायली इस क्षेत्र के मंदिरों, मठों और शिक्षा केंद्रों को रौंदते चले गए। तब से अब तक पाकिस्तान की हुकूमत और सेना POJK के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और वहाँ के लोगों पर अत्याचार करने में ही लगी है। इसी पवित्र भूमि में स्थित है शारदा पीठ कश्मीर की बौद्धिक और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक।

किशनगंगा (नीलम) नदी के किनारे बसा यह प्राचीन मंदिर और शिक्षण केंद्र देवी शारदा (मां सरस्वती) को समर्पित है। कहा जाता है कि 6वीं से 12वीं शताब्दी के बीच यह स्थान भारत का प्रमुख विद्या–केंद्र था, जिसे श्रद्धा से “उत्तर का नालंदा” कहा जाता था। यहाँ का विशाल पुस्तकालय और शारदा लिपि की उत्पत्ति उस युग की वैचारिक समृद्धि का प्रमाण थे। यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है जहाँ देवी सती का दक्षिण हस्त यानि दाहिना हाथ गिरा था। आदि शंकराचार्य ने यहाँ ज्ञान–पीठ की परंपरा को प्रतिष्ठित किया था। मुगल काल में भी शारदा तीर्थ की ख्याति बनी रही।

परंतु 1947 के बाद जब पाकिस्तान ने इस पवित्र भूमि पर कब्जा किया, तो इस्लामिक जिहादियों ने इस मंदिर को खंडहरों में बदल दिया। मूर्तियाँ तोड़ी गईं, शिलालेख नष्ट किए गए, और जो कभी विद्या का आलोक केंद्र था, वहाँ अब सिर्फ वीरानी और उपेक्षा का अंधकार है। आज भी कश्मीरी हिंदू अपनी सभ्यता की जड़ों से जुड़े इस तीर्थ को आस्था का प्रतीक और पहचान का आधार मानते हैं। शारदा पीठ सिर्फ एक मंदिर नहीं वह उस आध्यात्मिक कड़ी का नाम है जो भारत की ज्ञान परंपरा को सिंधु पार तक जोड़ती थी। लेकिन पाकिस्तान की लापरवाही और कट्टरपंथ के चलते यह विरासत बर्बादी के कगार पर है।
अब वक्त है कि भारत अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों की पुनर्स्थापना के लिए आवाज बुलंद करे। हमें न सिर्फ अपनी पवित्र भूमि को पाकिस्तान के अवैध कब्जे से मुक्त कराना है, बल्कि उस सभ्यता की ज्योति को फिर से प्रज्वलित करना है जिसे शारदा पीठ जैसे केंद्रों ने कभी प्रखर बनाया था।
आगे के संस्करण में हम POJK के अन्य ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के बारे में बताएंगे, जो आज भी हमारी अस्मिता के प्रतीक हैं और पाकिस्तानी कब्जे की मार झेल रहे हैं।