#POJK में हमारी ऐतिहासिक धरोहरें - आस्था के विस्मृत केंद्र : कीर्तनगढ़ गुरुद्वारा, अली बेग की कहानी

    07-नवंबर-2025
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POJK heritage kirtangadh gurudwara ali beg camp
POJK Cultural Heritage: देश के विभाजन के बाद पाकिस्तानी सेना ने 22 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से पर हमला कर दिया था। इस हमले के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने हजारों की संख्या में निर्दोष हिंदूओं, सिखों की हत्या की थी और वर्षों पुराने ऐतिहासिक मंदिरों और गुरुद्वारों जैसे सभी धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ मचाई थी। सिर्फ इतना ही नहीं हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए पाक सैनिकों ने उन पवित्र स्थानों को गलत कार्यों के जरिये अपवित्र करने का भी काम किया था।
 
 
इन घटनाओं के बाद उस वक्त बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हो गये थे। बीते 78 वर्षों भी पीओजेके अर्थात ''पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर'' और (PoTL) अर्थात ''पाकिस्तान अधिक्रांत टेरिटरी ऑफ लद्दाख'' में बचे मंदिरों, गुरुद्वारों और बौद्ध स्थानों को भी हमलावरों ने चुन-चुन कर क्षतिग्रस्त करने का काम किया है। वहां मौजूद मंदिरों, गुरुद्वारों की इमारतें पूरी तरह से खंडित हो चुकी है।
 
 
कीर्तनगढ़ गुरुद्वारा
 
 
पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र POJK में आज भी हमारी अनेकों आस्था और बलिदान की गवाही देने वाली ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद है जो खंडहरों में बदल चुकी हैं। इन्हीं में से एक है कीर्तनगढ़ गुरुद्वारा, जिसे इस्लामिक आतंकियों ने बाद में अली बेग कैंप के नाम से जेल के रूप में परिवर्तित किया। कीर्तनगढ़ गुरुद्वारा जो कभी मीरपुर और आसपास के क्षेत्रों में सिख समाज की आध्यात्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक चेतना का केंद्र हुआ करता था।
 
 
साल 1901 में संत सुंदर सिंह जी ने इस पवित्र स्थल की स्थापना की थी। तब यहाँ प्रतिदिन गुरु वाणी होता था, आम लोगों के लिए लंगर चलता था, और साथ ही एक मिडल स्कूल भी संचालित था, जहाँ हर धर्म के बच्चे निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे। यह गुरुद्वारा उस समय की सांप्रदायिक सौहार्द और सेवा-परंपरा का जीवंत उदाहरण था, जहाँ इंसानियत सबसे बड़ा धर्म मानी जाती थी। लेकिन नवंबर 1947 में जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया, तो मीरपुर इस्लामिक आतंक का केंद्र बन गया। हजारों हिंदू-सिख परिवार अपने घर छोड़कर कीर्तनगढ़ गुरुद्वारे में शरण लेने पहुँचे, यह सोचकर कि शायद यहाँ वे सुरक्षा रहेंगे। परंतु कबाइलियों की भेष में पाकिस्तानी सेना ने इस पवित्र तीर्थ को आग के हवाले कर दिया।
 
 
मीरपुर, बाग, पलंदर, आदि क्षेत्रों से बचे हुए हिंदू-सिख नागरिकों को जबरन पकड़कर मीरपुर के पास कीर्तनगढ़ गुरुद्वारे (जिसे बाद में "अली बेग कैंप" कहा गया) में ठूस दिया गया। यह गुरुद्वारा, एक धार्मिक स्थल होने की बजाय, हजारों कैदियों के लिए अमानवीय यातनाओं और मृत्यु का केंद्र बन गया।
 
 
पाकिस्तानी हमलावरों और कबायलियों ने पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को बिना भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधा के भीड़-भाड़ में बंद कर दिया। भीषण सर्दी, भीड़ व बिना किसी मानवीय सुविधा के कारण हजारों लोग बीमार पड़ गए। जीवित बचे लोगों के अनुसार, प्रतिदिन चुन-चुनकर बंदियों को मार दिया जाता था या उनके साथ क्रूरता की जाती थी। बच्चों को भी नहीं बख्शा गया।
 

POJK heritage kirtangadh gurudwara ali beg camp
विभिन्न प्रत्यक्षदर्शी, रेड-क्रॉस रिपोर्ट और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, अली बेग कैंप में 7,000–8,000 से अधिक हिंदू-सिख बंदियों का निर्मम नरसंहार हुआ। महिलाओं और लड़कियों का अपहरण, धार्मिक अपमान (बाल जबरन कटवाना, धर्मांतरण) और हत्या इस नरसंहार का हिस्सा थी। महीनों बाद जब रेड-क्रॉस के प्रतिनिधि वहां पहुँचे, तब तक केवल कुछ हजार बीमार, घायल और मानसिक रूप से टूटे लोग ही जीवित पाए गए। बाकी लगभग सभी मारे जा चुके थे या उनका कोई पता नहीं था।
 
 
अली बेग कैंप की घटना 1947 के मीरपुर नरसंहार का सबसे भयानक अध्याय थी, जिसने साफ संदेश दिया कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित यह हमला religious cleansing और मानवता के खिलाफ सुनियोजित अपराध था। अली बेग कैंप में जो हुआ, वह इतिहास का सबसे वीभत्स नरसंहारों में शुमार है, जहां धार्मिक पहचान के नाम पर सुनियोजित हत्या, अपमान व अमानवीयता का चरम दिखा। यह घटना कश्मीर के हजारों विस्थापित परिवारों के लिए आज भी पीड़ा और न्याय की प्रतीक बनी हुई है।

POJK heritage kirtangadh gurudwara ali beg camp
आज भी कीर्तनगढ़ गुरुद्वारे की जली दीवारें और टूटे निशान उस अमानवीय अत्याचार और बलिदान की मूक गवाही देते हैं, जिन्हें इतिहास के पन्नों से मिटा देने की कोशिश की गई। यह स्थान सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि POJK की पीड़ा, लूट और धार्मिक उत्पीड़न का प्रतीक है। अब समय है कि भारत की जनता और सरकार इन विस्मृत धरोहरों की पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिए आवाज उठाए। कीर्तनगढ़ गुरुद्वारा सिर्फ सिखों की आस्था नहीं यह भारत की संवेदनशीलता, समरसता और बलिदान की विरासत है।
 
 
हमारी यह श्रृंखला “POJK में हमारी धरोहरें आस्था के विस्मृत केंद्र” भारत की उन पवित्र भूमि और स्थलों की कथा है, जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे और इस्लामिक जिहाद की आग में झुलस गए। आगे के संस्करण में हम आपको बताएंगे POJK के अन्य पवित्र स्थलों की कहानी जो आज भी भारत की आध्यात्मिक पहचान और संघर्ष की स्मृति बने हुए हैं।