इतिहास के पन्नों में 1 दिसंबर 1989 : श्रीनगर में बिजनेसमैन अजय कपूर की दिनदहाड़े निर्मम हत्या की कहानी

    01-दिसंबर-2025
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Jammu kashmir genocides arjun kapoor murder 1 december

Black Day In History : दिसंबर 1989 तक कश्मीर घाटी इस्लामिक आतंकवाद की आग में झुलसने लगी थी। जेकेएलएफ और अन्य इस्लामिक संगठनों के आतंकियों ने घाटी में हिंदुओं को मुख्य निशाना बनाने की योजना तेज़ कर दी थी। इससे पहले आतंकियों ने समाजसेवी टीकालाल टपलू, रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू जैसी दोनों महान हस्तियों की टारगेट किलिंग कर चुके थे।
 
 
इसके अलावा आतंकियों ने दो हिंदू महिलाओं प्रभावती (चडूरा, बडगाम) और शीला कौल (श्रीनगर) की भी हत्या की जा चुकी थी। फिर भी उस समय तक कश्मीरी हिंदुओं का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू नहीं हुआ था। यही कारण था कि आतंकियों ने हिंदू समुदाय में भय की लहर पैदा करने के लिए एक प्रमुख, प्रभावशाली और संपन्न हिंदू व्यापारी को निशाना बनाने का फैसला किया।
 
 
प्रतिष्ठित बिजनेसमैन अजय कपूर की हत्या
 
 
श्रीनगर के एस.आर. गंज पोस्ट ऑफिस के पास रहने वाले 49 वर्षीय अजय कपूर समाज में सम्मानित, विनम्र और धार्मिक स्वभाव के जाने-माने व्यापारी थे। परिवार में उनकी पत्नी, 25 वर्षीय बेटा और 15 वर्ष की बेटी थी। 1 दिसंबर 1989 की दोपहर, जब अजय कपूर अपने ही इलाके के व्यस्त बाज़ार से गुजर रहे थे, तभी आतंकियों ने अचानक उन्हें घेर लिया। भीड़-भाड़ वाले बाजार के बीच आतंकियों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं और मौके से फरार हो गए।
 
 
अजय कपूर सड़क पर तड़पते रहे, घंटों घायल अवस्था में पड़े रहे, लेकिन न तो किसी स्थानीय ने अस्पताल ले जाने में मदद की, न किसी ने उन्हें उठाने की भी कोशिश की। हर एक के मन में उन दिनों आतंक का डर फैला हुआ था। स्थानीय लोगों को लगता था कि अगर मदद को आगे आए तो अगला निशाना वो भी बनेंगे। लिहाजा गोली लगने के बाद काफ़ी समय तक घायल अवस्था में वे सड़क पर पड़े रहे।
 
 
पुलिस पहुँची तो हो चुकी थी मौत
 
 
घटना की सूचना मिलने पर जब तक स्थानीय पुलिस मौके पर यानि घटनास्थल पर पहुँची तब तक अजय कपूर कि दुखद मृत्यु को चुकी थी। वे खून से लथपथ सड़क पर गिरे थे। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और फिर अजय कुमार के परिजनों को घटना की जानकारी दी।
 
 
अज्ञात हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज
 
 
पुलिस प्रशासन ने हर बार की तरह अज्ञात हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज किया। पर हमलावर कभी पकड़े नहीं गए। इस हत्या ने श्रीनगर और घाटी भर के हिंदू व्यापारियों को गहरे सदमे और भय में धकेल दिया। पहली बार उन्हें एहसास हुआ कि अब कोई भी सुरक्षित नहीं है, न कारोबार, न जीवन। इसके बाद हिंदू व्यापारियों ने अपना सालों से जमा-जमाया व्यापार समेटना शुरू कर दिया। कई ने औने-पौने दाम पर दुकानें बेचीं, और परिवारों समेत घाटी छोड़ने का निर्णय ले लिया।
 
 
यह घटना आने वाले महीनों में होने वाले कश्मीरी हिंदुओं के बड़े पलायन का शुरुआती संकेत थी। आतंक का यह खूनी खेल ख़त्म होने के बजे धीरे धीरे बढ़ता चला गया। इस्लामिक आतंकी लगातार एक के बाद एक हिंदुओं को निशाना बनाने लगे। उनका उद्देश्य साफ़ था कि घाटी से कैसे भी कर के हिंदुओं को बाहर निकालना है। आख़िरकार यह बात सच साबित हुई और आतंक और अलगाववाद के भय से हज़ारों परिवारों ने घाटी छोड़ने का निर्णय लिया और देश के अन्य हिस्सों में जा बसे।
 
 
कश्मीरी हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार, मानवीय हिंसा का उचित इंसाफ़ आज तक नहीं मिला। हाँ सत्ता परिवर्तन और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद स्थिति आज काफ़ी हद तक बेहतर हो चुकी है।