G7 के बाद C5? ट्रंप का बड़ा दांव, भारत समेत 5 महाशक्तियाँ बदलेंगी दुनिया का पावर ऑर्डर

    15-दिसंबर-2025
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what is c5
 
आज की वैश्विक राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ सवाल सिर्फ यह नहीं है कि कौन ताकतवर है, बल्कि यह है कि कौन फैसले तय कर रहा है। औपचारिक संस्थाएँ मौजूद हैं, बड़े-बड़े मंच हैं, लेकिन असली शक्ति कहाँ केंद्रित है यही आज की सबसे अहम बहस है।
 
 
काग़ज़ पर देखें तो 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' (UNSC) दुनिया का सबसे ताकतवर मंच होना चाहिए। युद्ध, शांति, प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय वैधता सब कुछ वहीं से तय होना चाहिए। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि UNSC आज वीटो पॉलिटिक्स का बंधक बन चुका है। फैसले कम होते हैं, बयान ज़्यादा। संकट बढ़ते हैं, समाधान अटक जाते हैं।
 
 
दूसरी ओर है G20 : दुनिया की 80% से अधिक GDP का प्रतिनिधित्व करने वाला मंच। लेकिन जब मेज़ पर 20 देश बैठते हैं, तो सहमति अक्सर न्यूनतम साझा बिंदु तक सिमट जाती है। G20 चर्चा करता है, पर दिशा तय नहीं करता।
 
 
यहीं से तस्वीर में आता है G7 : एक छोटा, अनौपचारिक लेकिन बेहद प्रभावशाली समूह। पिछले तीन दशकों में चाहे युद्ध हों, आर्थिक प्रतिबंध हों, वैश्विक वित्तीय संकट हों या भू-राजनीतिक टकराव असल दिशा G7 से ही निकली है। यह पश्चिमी देशों का पावर क्लब रहा है, जहाँ से दुनिया को “कंट्रोल” किया गया। लेकिन अब यही मॉडल सवालों के घेरे में है।
 
 
 
 
 
 
 
क्या G7 अब भी उतना ही ताकतवर है?
 
 
आज दुनिया वैसी नहीं रही जैसी 1990 के दशक में थी। चीन एक आर्थिक-सैन्य महाशक्ति बन चुका है। भारत जनसंख्या, अर्थव्यवस्था और रणनीतिक प्रभाव तीनों में निर्णायक स्थान पर पहुँच चुका है। रूस पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद वैश्विक राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। और अमेरिका खुद अब यह पूछने लगा है कि क्या वह अब भी पूरी दुनिया का बोझ उठा सकता है? इसी संदर्भ में एक चौंकाने वाला विचार सामने आता है : Core Five (C5)।
 
 
C5 का विचार: पर्दे के पीछे की रणनीति
 
 
दिसंबर में अमेरिकी रक्षा वेबसाइट Defense One की रिपोर्ट ने संकेत दिया कि अमेरिका की National Security Strategy (NSS) का एक गुप्त, विस्तृत संस्करण मौजूद है। इस दस्तावेज़ में एक साफ़ लाइन लिखी है: “दुनिया को अब G7 नहीं, बल्कि सिर्फ पाँच देश चलाएँगे।” ये पाँच देश हैं अमेरिका, चीन, भारत, रूस और जापान। इन्हें कहा गया है Core Five (C5)। यह कोई वैचारिक या लोकतांत्रिक क्लब नहीं है। यह शक्ति, जनसंख्या, सैन्य क्षमता और सभ्यतागत प्रभाव पर आधारित समूह है। और सबसे अहम बात इसमें यूरोप नहीं है।
 
 
अमेरिका का बदला हुआ नजरिया
 
 
गुप्त NSS का सबसे बड़ा संदेश यही है कि अमेरिका अब अपने पुराने आदर्शवादी मॉडल से पीछे हट रहा है। दस्तावेज़ में साफ़ कहा गया है: “Hegemony is the wrong thing to want.” यानी, वर्चस्व चाहना ही गलत सोच थी। अमेरिका अब यह मान रहा है कि वह पूरी दुनिया की सुरक्षा का ठेकेदार नहीं बन सकता, NATO का बोझ अब कम किया जाएगा, यूरोप को अपनी सुरक्षा खुद संभालनी होगी और भविष्य का मॉडल होगा Burden Sharing, न कि American Patronage
 
 
यूरोप को लेकर दस्तावेज़ की भाषा असाधारण रूप से कठोर है। EU को “second tier power” कहा गया है। यह तक कहा गया है कि यूरोप सभ्यतागत क्षरण (civilizational erasure) की ओर बढ़ रहा है इमिग्रेशन, फ्री स्पीच पर पाबंदियों और सांस्कृतिक विघटन के कारण।
 
 
G7 से C5: शक्ति का स्थानांतरण 
 
 
अगर यह रणनीति लागू होती है, तो इसका सीधा अर्थ होगा: 
 
 
G7 औपचारिक रूप से रहेगा, लेकिन वास्तविक निर्णय C5 में होंगे।
 
 
NATO को Downgrade किया जाएगा
 
 
Collective Security की जगह One-to-One Transactional Deals होंगी
 
 
यूरोप अंदर से कमजोर होगा रूस और एशिया की भूमिका बढ़ेगी
 
 
C5 को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह छोटा हो, तेज़ फैसले ले और सीधे डील-मेकिंग कर सके। इसकी पहली संभावित बैठक का एजेंडा ही बताता है कि यह कितना व्यावहारिक मंच होगा। पहला एजेंडा है मिडिल ईस्ट सुरक्षा और इज़राइल–सऊदी संबंधों का सामान्यीकरण।
 
 
भारत: इस नई शतरंज की सबसे अहम गोटी
 
 
इस पूरे समीकरण में भारत की स्थिति सबसे दिलचस्पऔर सबसे संवेदनशील है। अगर C5 बनता है, तो भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार होगा, रूस का भरोसेमंद मित्र होगा, चीन का सीधा प्रतिद्वंद्वी होगा, यानी भारत बनेगा Swing Power और Balancer।
 
 
भारत की भूमिका 5 स्तरों पर निर्णायक:
 
 
1. चीन के वर्चस्व पर संतुलन
 
 
2. अमेरिका-रूस के बीच पुल
 
 
3. Global South की एकमात्र विश्वसनीय आवाज़
 
 
4. C5 को लोकतांत्रिक वैधता देने वाला चेहरा
 
 
5. टेक, रक्षा और सप्लाई चेन में डील-मेकर 
 
 
जोखिम भी उतने ही वास्तविक
 
 
1. चीन के साथ तनाव
 
 
2. BRICS की राजनीति पर असर
 
 
3. किसी एक पावर ब्लॉक में फँसने का खतरा
 
 
इसीलिए भारत के लिए रास्ता साफ़ है:
 
 
 
Strategic Autonomy
 
 
Issue-based alignment
 
 
और किसी का junior partner बनने से साफ़ इनकार
 
 
निष्कर्ष
 
C5 अभी एक प्रस्ताव है, कोई औपचारिक संगठन नहीं। लेकिन यह प्रस्ताव अपने आप में एक बड़ा संकेत है कि दुनिया अब G7-centric नहीं रहना चाहती। अमेरिका आदर्शवाद छोड़कर सीधी हित-आधारित राजनीति पर आ रहा है। शक्ति पश्चिम से खिसककर बहु-ध्रुवीय ढांचे की ओर बढ़ रही है। अगर C5 आकार लेता है तो यूरोप कमजोर होगा, रूस और भारत की कीमत बढ़ेगी, चीन को संतुलन का सामना करना पड़ेगा और भारत पहली बार Rule-taker नहीं, Rule-maker की मेज़ पर बैठेगा
बशर्ते वह अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखे। यही असली परीक्षा है।