Bangladesh Violence : बांग्लादेश एक बार फिर हिंसा, अराजकता और भारत-विरोधी उन्माद की आग में झुलसता दिख रहा है। शरीफ उस्मान हादी की मौत ने न सिर्फ़ ढाका की सड़कों को उग्र बना दिया, बल्कि मीडिया की आज़ादी, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और आने वाले चुनावों की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
18 दिसंबर 2025 की रात ढाका के करवान बाज़ार इलाके में स्थित देश के दो सबसे बड़े मीडिया संस्थानों ‘प्रोथोम आलो’ और ‘द डेली स्टार’ पर हुई हिंसक तोड़फोड़ कोई अचानक भड़की भीड़ का परिणाम नहीं थी, बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी वैचारिक उकसाहट और राजनीतिक माहौल काम कर रहा था।
कौन था शरीफ उस्मान हादी?
शरीफ उस्मान हादी को केवल “युवा नेता” या “छात्र आंदोलन का चेहरा” बताना अधूरी सच्चाई होगी। हकीकत यह है कि हादी लंबे समय से खुली भारत-विरोधी बयानबाज़ी करता रहा। भारत के खिलाफ जनभावनाएं भड़काना उसकी राजनीति का केंद्र रहा। उस पर कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों को उकसाने, और कई मौकों पर हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक माहौल बनाने के आरोप लगते रहे। वह अवामी लीग और शेख हसीना के खिलाफ़ आक्रामक भाषा का सबसे मुखर चेहरा था। यानी हादी कोई तटस्थ लोकतांत्रिक सुधारक नहीं, बल्कि टकराव, उकसावे और वैचारिक कट्टरता की राजनीति का प्रतिनिधि था।
हत्या और उसके बाद की राजनीति
12 दिसंबर 2025 को चुनावी अभियान शुरू करते समय हादी पर हमला हुआ। सिर में गोली लगने के बाद उसे सिंगापुर ले जाया गया, जहां 18 दिसंबर को उसकी मौत हो गई। इसके बाद जो हुआ, वह शोक से ज़्यादा राजनीतिक आक्रोश का विस्फोट था शाहबाग समेत कई इलाकों में उग्र प्रदर्शन, “न्याय चाहिए” के नारे जल्द ही हिंसा में बदले, आधी रात के बाद भीड़ ने सीधे मीडिया दफ्तरों को निशाना बनाया.... यह घटना साफ़ करता है कि लक्ष्य सिर्फ़ न्याय नहीं, बल्कि कथानक (Narrative) पर कब्ज़ा था।
मीडिया पर हमला क्यों?
प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि मीडिया भारत समर्थक है। हादी की हत्या को “उनके मुताबिक़” नहीं दिखा रहा। अवामी लीग और शेख हसीना के प्रति नरमी बरत रहा है। असल में यह हमला उस मीडिया पर था जो भीड़ के उन्माद के आगे झुकने से इनकार कर रहा था। यह याद रखना ज़रूरी है कि मीडिया पर हमला हादी की हत्या से पहले नहीं हुआ..
बल्कि पहले हत्या → आक्रोश → प्रदर्शन → हिंसा → मीडिया पर हमला....यानी यह प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि उकसावे से जन्मी अराजकता थी।
भारत को घसीटने की साज़िश
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि हादी की मौत के बाद उसके कट्टरपंथी समर्थकों ने बिना किसी सबूत के भारत पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए। कहा गया कि “अगर आरोपी भारत भाग गया है तो भारत जिम्मेदार है। इसके अलावा भारतीय दूतावास के पास प्रदर्शन और भारत-विरोधी नारे लगाए गए। जबकि सच्चाई यह है कि बांग्लादेशी एजेंसियां खुद 20 से अधिक लोगों को हिरासत में ले चुकी हैं। शुरूआती जांच में पता चला है मुख्य आरोपी बांग्लादेशी नागरिक हैं। ‘भारत भागने’ की बातें अब तक बेबुनियाद दावे हैं और भारत के खिलाफ माहौल बनाने की साजिश। यह स्पष्ट रूप से भारत-विरोधी भावना को चुनावी हथियार बनाने की कोशिश है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ता खतरा
कुछ रिपोर्टों में विरोध के दौरान एक हिंदू युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या की बात सामने आई है, जिसे ईशनिंदा का नाम दिया गया। यह घटना बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती है। इतिहास गवाह है, जब भी राजनीतिक इस्लामी उन्माद बढ़ता है, सबसे पहले निशाने पर हिंदू समुदाय आता है।
चुनाव की पृष्ठभूमि और अस्थिरता
यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब फरवरी 2026 में आम चुनाव हैं। अवामी लीग चुनाव से बाहर है। बीएनपी, जमात और नई छात्र-आधारित पार्टियां मैदान में हैं। लिहाजा भारत-विरोधी बयानबाज़ी एक साझा चुनावी हथियार बनती दिख रही है। हादी की मौत ने इस माहौल में आग में घी का काम किया है।
निष्कर्ष
शरीफ उस्मान हादी की मौत केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं बल्कि मीडिया की आज़ादी पर हमला, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर खतरा और चुनावी लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा है। भारत पर बिना सबूत आरोप लगाना न सिर्फ़ गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि बांग्लादेश को और गहरे अराजकता की ओर धकेलने वाला कदम है।
अब सवाल यह नहीं है कि हादी कौन था, सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश कानून, तर्क और लोकतंत्र चुनेगा या उन्माद, हिंसा और झूठे भारत-विरोध के रास्ते पर जाएगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलें...........