Rubaiya Sayeed kidnapping case: कश्मीर में आतंकवाद के शुरुआती दौर को समझना हो, तो 1989 का रूबिया सईद अपहरणकांड सबसे बड़ा मोड़ माना जाता है। एक ऐसा कांड जिसने न सिर्फ देश की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा सवाल खड़ा किया बल्कि कश्मीर में आतंकवाद को खुलकर फैलने का रास्ता भी दिया। और अब, 3 दशक से अधिक समय बाद, इस केस में CBI ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। एजेंसी ने 8 दिसंबर 1989 के अपहरणकांड में शामिल अब्स्कॉन्डर (फरार आरोपी) शफात अहमद शांगलू को श्रीनगर से गिरफ्तार कर लिया है।
CBI की आधिकारिक प्रेस रिलीज़
CBI ने शफात अहमद शांगलू, जो पिछले 35 वर्षों से फरार था, को डॉ. रूबिया सईद (तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी) के अपहरण मामले में गिरफ्तार किया है। सीबीआई के अनुसार, शांगलू ने यासीन मलिक और JKLF के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इस अपहरण की साज़िश रची थी। उसके खिलाफ RPC और TADA Act की कई धाराओं में मामला दर्ज था। शांगलू पर 10 लाख रुपये का इनाम भी घोषित था। उसे अब टाडा कोर्ट, जम्मू में पेश किया जाएगा।
कैसे हुआ था 1989 का यह अपहरणकांड?
यह घटना 8 दिसंबर 1989 की है। कश्मीर में आतंकवाद अपने शुरुआती चरण में था, लेकिन हालात इतने नहीं बिगड़े थे कि किसी को लगे कि आतंकवादी देश के गृहमंत्री के परिवार पर हाथ डाल देंगे। 23 वर्षीय डॉक्टर रूबिया सईद, अपनी ड्यूटी पूरी करके लाल डीड अस्पताल से मिनी बस में घर लौट रही थीं।
उन्हें पता भी नहीं था कि उसी बस में बैठे कुछ लोग मुसाफिर नहीं, बल्कि JKLF के आतंकवादी थे। सदर थाना क्षेत्र के पास मिनी बस रोककर आतंकियों ने उन्हें बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया। इस खबर से दिल्ली में भूचाल आ गया देश के गृहमंत्री की बेटी आतंकियों के कब्जे में थी।
आतंकियों के आगे झुकी वीपी सिंह सरकार
अपहरण के तुरंत बाद आतंकियों की मांग साफ थी: हमारे 5 साथियों को रिहा करो, तभी रूबिया को छोड़ा जाएगा। सरकार के सामने स्थिति बेहद जटिल थी। दो विकल्प थे एक बेटी की जान बचाई जाए, या आतंकियों के सामने झुकने की नीति के खिलाफ खड़ा रहा जाए। 5 दिनों की बातचीत, खुफिया स्तर पर हुई गुप्त बैठकों और भारी राजनीतिक दबाव के बाद, 13 दिसंबर 1989 को आतंकियों की मांगें मान ली गईं। सरकार ने 5 कुख्यात आतंकवादियों को रिहा किया, और इसके बदले रूबिया को छोड़ दिया गया। लेकिन इस रिहाई ने कश्मीर के आतंकवाद के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। आतंकियों ने समझ लिया कि सरकार को ब्लैकमेल किया जा सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि कश्मीर में 1990 के दशक का खूनी दौर इसी घटना से शुरू हुआ।
CBI जांच-30 वर्षों तक फाइलों में दबा सच
रूबिया सईद की रिहाई के बाद मामला पुलिस से टाडा कोर्ट गया और 1990 में इसे CBI ने अपने हाथों में लिया। लेकिन कश्मीर की स्थिति, राजनीतिक हस्तक्षेप, गवाहों का डर इन सब कारणों से केस वर्षों तक रूका रहा। 1990, 2000, 2010—कई दशक बीत गए…देश ने इस केस को लगभग भूल ही लिया था। लेकिन CBI ने इसे फाइलों में बंद नहीं होने दिया। यासीन मलिक की गिरफ्तारी के बाद केस में नई जान
साल 2019 में NIA ने टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक को गिरफ्तार किया।
मलिक वही है जिस पर रूबिया सईद केस का मास्टरमाइंड होने का आरोप है। उसकी गिरफ्तारी के बाद, पुरानी फाइलें खोली गईं, सबूतों की दोबारा जांच हुई, गवाहों को संपर्क किया गया, केस में नई गति आई 2024 में CBI ने यासीन मलिक समेत 10 आरोपियों के खिलाफ विस्तृत चार्जशीट दाखिल की। यासीन मलिक जो कभी PMO में चाय परोसते हुए दिखाई देता था आज उम्रकैद की सज़ा काट रहा है और जेल की सलाखों के पीछे अपनी सांसें गिन रहा है।
2025: आरोपी शफात शांगलू की गिरफ्तारी
CBI की हालिया कार्रवाई ने यह साबित किया है कि कानून कभी भूलता नहीं, भले ही देर हो जाए। शफात शांगलू की गिरफ्तारी पीड़ित परिवार के लिए न्याय की ओर कदम है देश के लिए संदेश है और आतंकवादियों के लिए चेतावनी भी कि दोष कितना भी पुराना हो, कानून एक दिन दरवाज़ा जरूर खटखटाता है।
निष्कर्ष
रूबिया सईद अपहरणकांड सिर्फ एक अपराध नहीं था यह वह घटना थी जिसने कश्मीर के इतिहास की दिशा बदल दी। आज, 36 साल बाद शांगलू की गिरफ्तारी दर्शाती है कि भारत का कानून धीमा जरूर है, पर अंधा नहीं। और देश अब उस दौर में नहीं जहां आतंकवादी सत्ता को अपनी शर्तें तय करवा सकें।