#Historic | भारत-रूस के बीच ऐतिहासिक रक्षा समझौता : एक-दूसरे के सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे भारत-रूस

    04-दिसंबर-2025
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Russia india defence deal

भारत–रूस रक्षा संबंधों में एक नया और ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है। रूसी संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा ने भारत और रूस के बीच हुए Reciprocal Exchange of Logistic Support (RELOS) यानी लॉजिस्टिक सपोर्ट के आपसी आदान-प्रदान से जुड़े सैन्य समझौते को औपचारिक मंजूरी दे दी है। यह मंजूरी ऐसे समय में आई है, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 दिसंबर को भारत दौरे पर आने वाले हैं, जिससे इस समझौते का रणनीतिक संदेश और भी बड़ा हो गया है।

समझौते में क्या तय हुआ है?
 
इस ऐतिहासिक रक्षा करार के तहत- भारत और रूस एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों (Military Bases) का इस्तेमाल कर सकेंगे।
दोनों देश एक-दूसरे की धरती पर:
 
5 युद्धपोत (Warships)
 
10 सैन्य विमान (Aircraft)
 
3000 सैनिक (Troops) को एक साथ तैनात कर सकेंगे। यह तैनाती 5 वर्षों के लिए वैध होगी, जिसे आपसी सहमति से अगले 5 वर्षों तक बढ़ाया भी जा सकता है। यानि यह समझौता कुल मिलाकर 10 वर्षों तक की स्थायी सैन्य साझेदारी की नींव डालता है।
 
 
क्या-क्या सुविधाएं मिलेंगी?
 
 
इस लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौते के अंतर्गत: दोनों देशों के युद्धपोत एक-दूसरे के बंदरगाहों (Ports) में प्रवेश कर सकेंगे।
 
 
हवाई क्षेत्र (Air Space) और एयरफील्ड के उपयोग के स्पष्ट नियम तय किए गए हैं।
 
 
सैन्य अभ्यास, आपात स्थिति में सहायता और संयुक्त ऑपरेशन अब पहले से कहीं अधिक आसान होंगे।
 
 
यह समझौता 18 अक्टूबर 2025 को दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित हुआ था, जिसे अब रूसी संसद की संवैधानिक मंजूरी मिल चुकी है।
 
 
रूस ने क्या कहा?
 
 
ड्यूमा के चेयरमैन व्याचेस्लाव वोलोदिन ने इस मौके पर कहा - “रूस और भारत का रिश्ता रणनीतिक और व्यापक है। यह साझेदारी सिर्फ आज की नहीं, बल्कि दशकों पुरानी है। इस समझौते को मंजूरी देकर हमने आपसी विश्वास, खुलेपन और रिश्तों के और मजबूत होने की पुष्टि की है।”
 
 
उनके इस बयान से साफ है कि रूस भारत को केवल एक सहयोगी नहीं, बल्कि भविष्य का रणनीतिक स्तंभ (Strategic Pillar) मानता है।
 
 
भारत के लिए यह समझौता क्यों बेहद अहम है?
 
 
यह समझौता केवल एक सैन्य दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक रणनीतिक हैसियत (Global Strategic Status) का प्रतीक है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की ताकत बढ़ेगी चीन जिस आक्रामक अंदाज़ में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य दबदबा बना रहा है, ऐसे समय में यह समझौता भारत को रणनीतिक संतुलन (Strategic Balance) बनाने में बड़ी मदद देगा।
 
 
भारतीय नौसेना को अंतरराष्ट्रीय बढ़त
 
 
रक्षा विशेषज्ञ कमोडोर अनिल जयसिंह के अनुसार, भारतीय नौसेना पहले से ही हिंद महासागर में 12 से 15 युद्धपोतों के साथ लगातार निगरानी मिशन चला रही है। ऐसे में रूस के साथ यह करार भारत की मल्टी-मिशन क्षमता को और मजबूत करेगा।
 
 
चीन और पाकिस्तान को साफ संदेश
 
यह समझौता परोक्ष रूप से चीन और पाकिस्तान को यह संदेश देता है कि भारत अब अकेला नहीं है और उसके पीछे एक बड़ी सैन्य शक्ति मजबूती से खड़ी है।
 
 
भारत की वैश्विक छवि में बड़ा उछाल
 
 
किसी विदेशी ताकत का भारतीय जमीन पर औपचारिक सैन्य तैनाती की अनुमति पाना यह दर्शाता है कि भारत अब केवल एक उभरती शक्ति नहीं, बल्कि स्थापित भू-राजनीतिक महाशक्ति (Established Geopolitical Power) बन चुका है।
 
निष्कर्ष
 
भारत और रूस के बीच हुआ यह रक्षा समझौता केवल एक औपचारिक करार नहीं, बल्कि नई विश्व व्यवस्था में भारत की निर्णायक भूमिका का ऐलान है। यह सौदा भारत की सैन्य, कूटनीतिक और सामरिक शक्ति तीनों को एक नई ऊंचाई पर ले जाता है। आने वाले वर्षों में यह समझौता चीन की आक्रामक रणनीति के खिलाफ भारत की ढाल बन सकता है।