जयंती विशेष : #RememberingOurHero's : देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जिनके नाम से पाकिस्तान के छूटते थे पसीने
02-अप्रैल-2025
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सैम मानेकशाॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा। रौबिली मूंछ, हर बात में तपाक से स्मार्ट सा जवाब देने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें अधिकांश लोग सैम मानेकशॉ के नाम से जानते हैं। जिन्होंने पाकिस्तान को इतनी करारी शिकस्त दी थी कि डेढ़ दशक तक वो चूं भी नहीं कर पाया था।
जनरल मानेकशॉ जैसा सेना प्रमुख हिन्दुस्तान तो क्या दुनिया में कहीं नहीं है। देश की आजादी के बाद अभी तक शौर्य और साहस की जितनी कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं, उनमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वीरगाथा सबसे अलग है। 3 अप्रैल, 1914 को जन्में सैम मानेकशॉ का बेहतरीन मिलिट्री करियर ब्रिटिश इंडियन आर्मी से शुरू हुआ और तकरीबन 4 दशकों चला। इस बीच 5 युद्ध हुए और खास बात ये रही कि इन सभी युद्धों में भारत ने जीत का परचम लहराया। पर इन युद्धों में सबसे खास और यादगार युद्ध रहा 1971 भारत-पाक युद्ध।
1932 में सेना में हुए शामिल
सैम मानेकशॉ ने जब भारतीय सेना में जाने का फैसला किया तो उन्हें अपने पिता के विरोध का सामना करना पड़ा। परंतु अपने जिद्द के आगे उन्होंने पिता के की बात तनिक भी ना सुनी और इंडियन मिलिट्री अकैडमी, देहरादून में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा दी। परिणामस्वरूप वह 1932 में पहले 40 कैडेट्स वाले बैच में शामिल हुए। सैम मानेकशॉ को 1942 के दौरान बर्मा में जापान से लड़ते हुए 7 गोलियां लगी थीं, फिर भी वह मौत को हरा कर जिंदा रहे।
घायल अवस्था में सैम को जब हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था तो कोई भी डॉक्टर उनका इलाज करने को तैयार नहीं हो रहा था। कारण था उनके शरीर में लगी 7 गोलियां। किंतु तमाम प्रयास के बाद सैम मानेकशॉ को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां हॉस्पिटल में सर्जन ने उनसे पूछा कि उनको क्या हुआ था तो मानेकशॉ ने मजाकिया अंदाज में जवाब देते हुए बोला जवाब, 'मुझे खच्चर ने लात मार दिया था।
सैम मानेकशॉ की अनसुनी दास्ताँ
इसके अलावा सैम मानेकशॉ को लेकर कुछ और भी रोचक बातें थी जैसे एक बार मिजोरम में एक बटालियन उग्रवादियों से लड़ाई में हिचक रही थी और लड़ाई को टालने की कोशिश कर रही थी। इसके बारे में जब मानेकशॉ को पता चला तो उन्होंने चूड़ियों का एक पार्सल बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को एक नोट के साथ भेजा। नोट में लिखा था, 'अगर आप दुश्मन से लड़ना नहीं चाहते हैं तो अपने जवानों को ये चूड़ियां पहनने को दे दें।' इस नोट का असर ऐसा हुआ कि वो बटालियन युद्ध के लिए तैयार हुई और विजय होकर लौटी।
1971 भारत-पाक युद्ध में सैम मानेकशॉ की अहम भूमिका
सैम मानेकशॉ सन 1969 में वह भारतीय सेना के 8वें सेनाध्यक्ष बनाए गए और उनके नेतृत्व में भारत ने सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की। इस युद्ध में सैम मानेकशॉ के कुशल नेतृत्व का नतीजा था कि पाकिस्तान ने अपने 90 हजार सिपाहियों के साथ भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए। यह युद्ध इतिहास के पन्नों में आज भी सुनहरे अक्षरों में कैद है। इस युद्ध में मिली जीत के बाद ही एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ।
सैम मानेकशॉ ने अपने बेहतरीन सैन्य करियर के दौरान पद्म विभूषण समेत कई अन्य सम्मानों से नवाजे गए थे। 1971 में मिली जीत के बाद भारत सरकार ने 1972 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया था। 3 अप्रैल 1914 को जन्में सैम मानेकशॉ ने 27 जून 2008 को अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली। सैम मानेकशॉ की कहानियां और उनकी देशभक्ति हर देशवासियों को सदा प्रेरित करती रहेंगी।
मां भारती के ऐसे वीर सपूत और भारतीय सेना के वीर जाबांज सिपाही की जन्मजयन्ती पर हमारा नमन।