Pahalgam Terror Attack : जम्मू कश्मीर के इतिहास का लहूलुहान सच:
जम्मू-कश्मीर सदियों से इस्लामिक कट्टरवाद का शिकार रहा है। मंगोलों, तुर्कों और मुगलों जैसे बाहरी आक्रांताओं ने यहां की शांतिप्रिय संस्कृति पर हमला किया। न सिर्फ निर्दोष जनता की हत्याएं हुईं, बल्कि हजारों प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया।
आजादी के बाद भी चैन नहीं:
जब भारत स्वतंत्रता की नई सुबह देख रहा था, तब शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी नीतियों ने जम्मू-कश्मीर को बाकी भारत से दूर करने की कोशिश की। इसी मानसिकता की परिणति 1986 के अनंतनाग दंगों में हुई, जिसने 1990 तक कश्मीरी हिन्दुओं के बड़े पैमाने पर पलायन करने को मजबूर किया।
संविधान के प्रतीकों पर वार:
कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन के बाद भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी भारत की संप्रभुता और संविधान से जुड़े प्रतीकों पर हमले करते रहे। फिर चाहे वह तिरंगा हो या भारत समर्थक आम नागरिक—सब निशाने पर रहे।
सेना और जनमानस की निर्णायक भूमिका:
1990 से 2005 तक भारतीय सेना और देशभक्त जनता ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक मोर्चा संभाला। इसी संकल्प का परिणाम था कि 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से भारतीय संविधान के अधीन लाया गया।
नई सुबह की शुरुआत:
पिछले 5 वर्षों में आतंक और पत्थरबाजी की घटनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं। सुरक्षाबलों की सक्रियता से पाकिस्तानी आतंकियों का सफाया किया जा रहा है। लेकिन हताशा में आतंकी अब निर्दोष महिलाओं, सिखों, दलितों और कश्मीरी हिन्दुओं को टारगेट कर रहे हैं, विशेषकर जम्मू क्षेत्र में।
जनता की लोकतंत्र में आस्था:
इन हमलों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोका नहीं गया। चुनाव हुए और जनता ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिसने पाकिस्तान और उसके कठपुतली अलगाववादियों को बौखला दिया।
वर्तमान खतरे और साजिशें:
श्रीनगर से सांसद आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी लगातार भारत विरोधी और अलगाववादी एजेंडा बढ़ा रहा है। वह घाटी में बढ़ते पर्यटन को ‘कल्चरल टूरिज्म’ का नाम देकर असली सच्चाई छिपाने की कोशिश कर रहा है। उसकी बयानबाज़ी भारत के संविधान को खुलेआम चुनौती देती है, और यही जहरीली सोच पहलगाम जैसे आतंकी हमलों की भूमिका बना रही है।
22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम के बैसरन घाटी के शांत मैदान में किये अकल्पनीय भयावह नरसंहार के बाद से पूरा राष्ट्र उद्वेलित है। पाकिस्तान-परस्त लश्कर-ए-तैयबा (Let) यानि 'द रेसिस्टेंस फ्रंट' (TRF-नया नाम) के आतंकी हमले में 28 पर्यटकों ने जान का बलिदान दिया, जिनमें अधिकांश हिंदू थे,। ये कश्मीर संभाग में वर्ष 2000 के बाद सबसे घातक हमलों में से एक था। इस्लामिक हमलावरों ने धर्म के आधार पर टूरिस्ट्स को चुन-चुनकर निशाना बनाया, जिसने पूरे राष्ट्र को हिलाकर रख दिया और इसने कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद और वैली में मौजूद इस्लामिक अलगाववाद के गठजोड़ के निरंतर खतरे को भी फिर से उजागर कर दिया।
इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दें, ये पहली बार था जब आतंकियों ने टूरिस्ट्स को निशाना बनाया। टूरिस्ट्स, जिन्होंने अगस्त 2019 में संवैधानिक एकात्मता (इंटीग्रेशन) के बाद, समाज और लोगों के स्तर पर जम्मू कश्मीर और शेष भारत के बीच खड़ी खाईयों को, दूरी को पाट दिया था। जाहिर है पाकिस्तान और आतंकियों के लिए ये सबसे बड़ी हार थी। लिहाजा टूरिस्ट्स पर हमला करके आतंकियों ने, पाकिस्तान ने कई निशाने साधे हैं।
यहां गौरतलब ये है कि तीन महीने पहले, नेशनल कांफ्रेंस के लोकसभा सांसद आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी (NC MP Aga Syed Ruhullah Mehdi’s) ने कश्मीर में पर्यटकों की आमद को Cultural Invasion यानि “सांस्कृतिक आक्रमण” करार दिया था, इसके बाद आतंकी इस सोच और पैटर्न पर पर्यटकों को निशाना बनाते हैं, तो निश्चित तौर पर एक पैटर्न और एक सोच को लेकर वैचारिक ही सही, लेकिन एक कनेक्शन, एक सोच की एकरूपता दिखाई देती है। आगा मेहदी के बयान, जो लगातार भारत को कश्मीर में दमनकारी बताते हैं, अलगाववादी विचार को, पाकिस्तान परस्त आतंकियों के नैरेटिव को प्रतिबिंबित करते नजर आते हैं, जिनका उपयोग आतंकी ग्रुप अपने आतंकी हमलों को सही ठहराने के लिए करते हैं।
भड़काऊ और भारत की संप्रभुता विरोधी बयानों का एक पैटर्न
पिछले एक साल में आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी (NC MP Aga Syed Ruhullah Mehdi’s) के सार्वजनिक बयानों से एक ऐसा पैटर्न उजागर होता है, जो कश्मीर में अलगाववादी और इस्लामिक आतंकी नैरेटिव का एक्सटेंशन नजर आता है। अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद संभावित अशांति की उनकी चेतावनियां, आतंकी नेताओं जैसे हसन नस्रल्लाह का समर्थन और उसे कश्मीर से जोड़ना, सुरक्षा एजेंसियों और उनकी कार्रवाईयों को निशाना बनाना और सबसे खतरनाक कश्मीर में फलते-फूलते पर्यटन को “सांस्कृतिक आक्रमण” के रूप में आरोपित करने वाले बयानों का पैटर्न.. एक की कहानी और एक सोच की ओर इशारा करती है, ये सोच है अलगाववाद की, इस्लामिक आतंक के प्रति साहनुभूति की। जो सीधे-सीधे पाकिस्तान-परस्त टीआरएफ और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों की भाषा और वैचारिक रूपरेखा से मेल खाती है, जो भारतीय नागरिकों और सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसा को सही ठहराते हैं।
बयानों के माध्यम से हिंसा को वैध बताने की कोशिश
मेहदी के बयान, जैसे कि कश्मीर में पर्यटन को Cultural Invasion “सांस्कृतिक आक्रमण” कहना, अलगाववादी-आतंकी विचारधारा को सीधे बढ़ावा देते हैं, जो विचारधारा कश्मीर में भारत की पहचान को, किसी भी तरह की उपस्थिति को, चाहे वह शासन, सुरक्षा, या पर्यटन के माध्यम से हो, को एक अस्तित्व खतरे के रूप में दिखाती है। पर्यटकों को आक्रमणकारी घोषित करके, मेहदी के शब्दों ने पहलगाम हमले के लिए नैतिक औचित्य (कौम की रक्षा में एक नेक काम) साबित करने की जमीन तैयार की है, जहां आतंकवादियों ने विशेष रूप से हिंदुओं को निशाना बनाया, जो “सांस्कृतिक थोपने” का विरोध करने के नाम पर किया गया। पर्यटकों को भारतीय “कब्जे” के प्रतीक के रूप में घोषित करना आतंकियों को प्रोत्साहित करने का काम है। क्या ऐसे बयान महज एक इत्तेफाक है, मेहदी के बयानों का पैटर्न कहता है कि ये एक सोचा-समझा, नपा-तुला बयान था।
अंतरराष्ट्रीय आतंक का समर्थन और कश्मीर से जोड़ने की कोशिश
अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन हमास के लीडर्स हसन नस्रल्लाह और इस्माइल हानियेह को “बड़े सरदार, Great Leaders” और “शहीद” के रूप में महिमामंडन करके, मेहदी खुद को एक वैश्विक कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा जोड़ते हैं, वो विचारधारा जो हिंसा को जिहाद, एक वैध प्रतिरोध के रूप में जरूरी मानती है। 28 सितंबर, 2024 को मेहदी के बयान में नस्रल्लाह की “शहादत” पर शोक व्यक्त करते हुए और उन्हें हानियेह से जोड़ते हुए, उनकी करतूतों को कथित उत्पीड़न के खिलाफ एक noble संघर्ष घोषित करने की कोशिश दिखाई देती है।
ये बयानबाजी कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के साथ एकरूप नजर आती है, जो अपनी आतंकी करतूतों को “जिहाद” के वैध और जरूरी हिस्से के रूप में देखते हैं, जिससे उनकी हिंसा को और वैधता मिलती है और पहलगाम हमले जैसे कृत्यों को प्रेरित करने की संभावना बढ़ती है।
सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा इंतजामों को निशाना बनाना
मेहदी की एनएच-44 पर सैन्य काफिलों के दौरान सुरक्षा प्रोटोकॉल की आलोचना, और ऐसे विषय पर लगातार सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को निशाना बनाने की लगातार कोशिश भी सवाल खड़े करती है। ये बयान एक छद्म साजिश दिखाई देती है, भारत को...भारतीय एजेंसियों को दमनकारी साबित करने की। घाटी में ये एक कॉमन अलगाववादी रणनीति है।
29 नवंबर, 2024 को, मेहदी ने इन सुरक्षा व्यवस्था को “अपमानजनक” करार दिया और मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगाया, वो सुरक्षा जोकि कश्मीरी आम आदमी के लिए ही है। लेकिन बाद में आगा रूहुल्लाह एक्स पर रक्षा मंत्रालय के जवाब को “खुलेआम झूठ” कहकर खारिज किया। ऐसे आरोप सुरक्षा बलों में जनता का विश्वास कम करती हैं और इस विचार को मजबूत करती हैं कि बदले में आतंकी हमले ही राज्य की आक्रामकता का जवाब हैं, एक ऐसा नैरेटिव जो आतंकवादियों को प्रोत्साहित कर सकती है और उनकी करतूतों के लिए स्थानीय समर्थन जुटा सकती है।
बयान की टाइमिंग और प्रभाव
पहलगाम हमला, मेहदी के 4 जनवरी, 2025 के “Cultural Invasion यानि सांस्कृतिक आक्रमण” वाले बयान के ठीक तीन महीने बाद हुआ, दोनों में सीधे कोई कनेक्शन भले ही ना हो, लेकिन आतंकवादी संगठन अक्सर ऐसी बयानबाजी का इस्तेमा अपनी कार्रवाइयों को सही ठहराने के लिए करते हैं, और मेहदी एक सांसद है, जनता का प्रतिनिधि है, एक सत्ताधारी पार्टी का बड़ा नेता है, ये मेहदी के शब्दों के प्रभाव को बढ़ाती है, जो हिंसा को बढ़ावा देने वाले नैरेटिव को वैधता प्रदान करती है। हमले में हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाना, पर्यटन को कश्मीरी पहचान के लिए खतरे के रूप में घोषित करने वाले बयान का एक्शन-प्रतिरूप, उसका परिणाम दिखाई देता है, लिहाजा मेहदी के बयानों के वास्तविक परिणामों के बारे में चिंता बढ़नी निश्तित है।
मेहदी के भड़काऊ बयानों का समयरेखा
2 जुलाई, 2024: द वायर के साथ साक्षात्कार
द वायर के साथ एक साक्षात्कार में, मेहदी ने चेतावनी दी कि अनुच्छेद 370 को हटाने पर कश्मीरियों का “गुस्सा” कभी भी फट सकता है, वो भी भारत की स्वतंत्रता के 40 साल बाद की अशांति यानि 80-90 के दशक में उभरे आतंकी समयकाल के साथ समानता बनाते हुए उदाहरण दिया। चेतावनी दी कि 90 के दशक वाले हालात फिर बन सकते हैं, क्योंकि आर्टिकल 370 हटा दिया गया है। ये चेतावनी कश्मीरी धरातलीय सच्चाईयों के विपरित है। इसीलिए सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ये बयान ने भविष्य में हिंसा की संभावना का सुझाव हैं या उकसाव। लगभग ऐसी ही भाषा का प्रयोग 2019 के बाद से पाकिस्तान में होता रहा है। जो पाकिस्तान 370 को हटाने का हिंसा से जवाब देने का तर्क देता है। पाकिस्तान राजनीतिक शिकायतों का इस्तेमाल आतंक को वैध ठहराने में करता है, ऐसे में उनकी भाषा में बोलना निश्चित ही सवाल खड़े करता है।
26 जून, 2024: अनुच्छेद 370 पर पहला संसदीय भाषण
अपने पहले लोकसभा भाषण में, मेहदी ने दावा किया कि अनुच्छेद 370 को “आधे घंटे में” हटा दिया गया, जोकि एक अतिशय, झूठा आरोप है। जिसे लोकसभा स्पीकर ने ठीक किया, उन्होंने संसद के दोनों सदनों में नौ और आधे घंटे की बहस का उल्लेख किया। इस गलत बयानी को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अवैध ठहराने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, जो भारत विरोधी भावना को बढ़ावा देता है, जिसका इस्तेमाल आतंकी संगठन अपने नैरेटिव की पूर्ति के लिए करते हैं।
28 सितंबर, 2024: अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों का समर्थन
मेहदी ने नस्रल्लाह की मौत पर सार्वजनिक रूप से शोक व्यक्त किया, उन्हें “महान नेता” और “प्रतिरोध की आत्मा” कहा। नस्रल्लाह को हानियेह से जोड़कर और उनके कार्यों को “इजरायली उत्पीड़न” के खिलाफ प्रतिरोध के रूप में पेश करके, मेहदी ने उस वैश्विक इस्लामवादी संघर्ष का समर्थन किया जो हिंसा को महिमामंडन करती है, एक ऐसी सोच जो कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के साथ मेल खाती है और उनके हमलों को वैध तरीका बताने का प्रयास करती है।
29 नवंबर, 2024: श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर सुरक्षा प्रोटोकॉल पर सवाल उठाना
मेहदी ने सैन्य काफिलों के दौरान एनएच-44 पर नागरिक यातायात को रोकने को चुनौती दी, इसे “अपमानजनक” कहा और मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगाया। एक्स पर रक्षा मंत्रालय के जवाब को “झूठ” कहकर खारिज करने और एक रुकी हुई एम्बुलेंस का वीडियो साझा करने से भारतीय राज्य को दमनकारी के रूप में चित्रित किया गया, एक ऐसी रणनीति जिसका उपयोग आतंकवादी राज्य के प्रतीकों, जिसमें पर्यटक भी शामिल हैं, के खिलाफ हिंसा को सही ठहराने के लिए करते हैं।
4 जनवरी, 2025: पर्यटन को “सांस्कृतिक आक्रमण” बताना
नाउस नेटवर्क के साथ एक पॉडकास्ट में, मेहदी ने कश्मीर में पर्यटन को “Cultural Invasion यानिसांस्कृतिक आक्रमण” के रूप में वर्णित किया, आरोप लगाया कि यह पर्यावरण को “खराब” करने और एक अन्य संस्कृति को थोपने का एक जानबूझकर किया गया डिजाइन का हिस्सा है। ये बयानबाजी, जो भारत सरकार के एकीकरण प्रयासों को, यहां तक कि टूरिज्म को विकास को भी कश्मीरी पहचान के लिए खतरे के रूप में देखती है, पर्यटकों को निशाना बनाने और उन्हें निशाना बनाने के लिए वैचारिक औचित्य या वैध बताने का प्रयास करती है , जैसा कि पहलगाम हमले में देखा गया।
5 फरवरी, 2025: कुलगाम हमले के बाद हिरासत की निंदा
कुलगाम में एक आतंकवादी हमले के बाद, मेहदी ने आतंकी हिंसा की निंदा तो की लेकिन इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जांच के लिए 500 से अधिक संदिग्धों की हिरासत में लेने की कार्रवाई पर सीधे निशाना भी साधा। ठीक उसी पैटर्न पर जिसमें एजेंसियों की हरेक कार्रवाई को कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के रूप में पेश किया जाता है, जो पैटर्न भारत की सुरक्षा एजेंसियों को आक्रमक ठहराने का प्रयास करता है। ऐसे बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तान अपने प्रौपेगैंडा में हिंसा को प्रतिरोध के रूप में सही साबित करने के लिए करता रहा है। फिर ऐसे बयान बार-बार क्यों..!!
23 अप्रैल, 2025: पहलगाम हमले की निंदा के बीच विवाद
मेहदी ने पहलगाम हमले की निंदा की, कहा, “इस तरह की बेतुकी हिंसा हमारी साझा मानवता पर एक हमला है और हमारे समाज की अंतरात्मा पर दाग है।” इस ट्वीट के साथ ही सोशल मीडिया पर उनके पहले के “Cultural Invasion यानि सांस्कृतिक आक्रमण” वाले बयान ने फिर से विवाद खड़ा कर दिया, सोशल मीडिया पर युथ फॉर पनुन कश्मीर और रूट्स इन कश्मीर यूजर्स ने मेहदी को घेरा और हिंसा भड़काने का आरोप लगाते हुए पुलिस में कार्रवाई की मांग की। बीजेपी ने भी नेशनल कॉन्फ्रेंस एमपी को घेरा।
एक सांसद की जवाबदेही कब?
आगा सैयद रुहुल्लाह मेहदी अपने बयानों को बड़ी चालाकी से..शब्दजाल को बुनकर बयानों को, कश्मीरियों के अधिकारों की वकालत के रूप में पेश करते है, लेकिन असल में ये बयान लगातार भारत की संप्रभुता एवं अखँडता पर हमला करते दिखाई देते हैं। आतंकी संगठन ऐसे बयानों का इस्तेमाल कर आम लोगों को हिंसा को संघर्ष या आंदोलन का नाम देकर वैध ठहराने के लिए करते हैं।
एक नेता के, एक एमपी के, वो भी सत्ताधारी पार्टी नेता के शब्दों में वजन होता है। जो आम लोगों को प्रोत्साहित या उकसा सकती हैं, क्षेत्र में अशांति फैला सकते हैं। प्रौपगैंडा में, 5th जेनरेशन नैरेटिव वॉरफेयर में तो बयान किसी हथियार से कम नहीं। लिहाजा आगे की त्रासदियों को रोकने के लिए, ऐसे बयानों की अधिक जांच होनी चाहिए और एक सामूहिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए जो विभाजन के बजाय एकता को बढ़ावा देने वाले संवाद को प्रोत्साहित करे।
केवल जिम्मेदार नेतृत्व के माध्यम से ही कश्मीर अपनी विरासत को एक सामंजस्यपूर्ण भूमि के रूप में पुनः प्राप्त कर सकता है, आतंकी विचारधारा को हरा सकता है। आम लोगों का भी दायित्व है, देशविरोधी विचार को हर स्तर पर एक्सपोज करना जरूरी है।