प्राचीन जम्मू-कश्मीर: अध्यात्म, संस्कृति और ज्ञान की दिव्य धरा

03 Apr 2025 11:59:41
 
Ancient Jammu Kashmir
 
Ancient Jammu Kashmir:  किसी भी भूभाग का अस्तित्व केवल राजनीतिक सीमाओं से नहीं बनता, बल्कि उसकी संस्कृति और इतिहास से तय होता है। भारत का सिरमौर कहा जाने वाला हमारा जम्मू कश्मीर भी केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक धारा है, जो हजारों वर्षों से प्रवाहित होती आई है। हालाँकि समय-समय पर विदेशी आक्रमणकारियों ने इस सांस्कृतिक प्रवाह को बाधित करने का प्रयास किया, लेकिन जम्मू कश्मीर की असली पहचान कभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई। जब भी अनुकूल समय आया, यह सांस्कृतिक चेतना पुनः जीवंत हो उठी। जम्मू कश्मीर को समझने के लिए उसके इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष को समझना अनिवार्य है।
 
 
जम्मू-कश्मीर सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी प्रसिद्ध है। यह भूमि अनगिनत ऋषियों, मुनियों, संतों और विद्वानों की तपोभूमि रही है, जिन्होंने यहां साधना कर संसार को ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया। कश्मीर को प्राचीनकाल में ‘शारदा पीठ’ के रूप में भी जाना जाता था, जहां से सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और सूफी परंपराओं का अद्भुत समन्वय हुआ। 
 
Sharda peeth kashmir
 
 
प्राचीन धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत 
 
 
कहा जाता है कि कश्मीर की घाटी स्वयं ऋषि कश्यप के आशीर्वाद से अस्तित्व में आई। पुराणों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है कि यह भूमि वेदों और उपनिषदों के ज्ञान का केंद्र रही है। यहाँ स्थित शारदा पीठ को ‘ज्ञान की देवी’ माता सरस्वती का निवास माना जाता था। यह प्राचीन भारत के सबसे प्रमुख शिक्षण केंद्रों में से एक था, जहां देश-विदेश के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
 
 
जम्मू और कश्मीर की आध्यात्मिक विरासत की बात करें तो माँ वैष्णो देवी का मंदिर एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहाँ हर वर्ष लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। इसी तरह अमरनाथ गुफा में स्थित शिवलिंग हिंदू आस्था का एक बड़ा प्रतीक है, जहाँ स्वयं भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाया था।  
 
 
कश्मीर केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि शैव-दर्शन का केंद्र और हिंदू पहचान का प्रतीक था। किसी कालखंड में यह इस्लाम से प्रभावित हो गया, लेकिन इसकी असली पहचान शंकराचार्य और अभिनव गुप्त के दर्शन में ही प्रकट होती है। आज जो लोग यह दावा करते हैं कि "इस्लाम ही कश्मीरियत है", वे यह भूल जाते हैं कि असली कश्मीरियत वह है, जो आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत में प्रकट होती है, जो अभिनव गुप्त के नाट्यशास्त्र में दिखाई देती है। यह क्षेत्र भारत के अन्य पवित्र स्थलों जैसे कि रामेश्वरम, द्वारका और पुरी के समान ही मोक्ष और ज्ञान का केंद्र रहा है।
 
  
संस्कृति और परंपराएँ  
 
 
जम्मू-कश्मीर की संस्कृति भारत की सबसे समृद्ध संस्कृतियों में से एक है। यह हिंदू, बौद्ध और इस्लामी परंपराओं के समागम का जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ के लोक नृत्य, संगीत और पारंपरिक हस्तशिल्प दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। संस्कृत भाषा के विकास में भी कश्मीर की अहम भूमिका रही है। महाकवि काल्हण ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर के ऐतिहासिक गौरव को दर्शाया है। इसके अलावा, कश्मीर शैववाद भी इस क्षेत्र की एक अनमोल धरोहर है, जिसने भारतीय आध्यात्मिक चिंतन को गहराई से प्रभावित किया।
 
 
कश्मीर का असली गौरव मां शारदा से जुड़ा हुआ है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, स्वयं ब्रह्मा ने वहां शारदा देवी का मंदिर स्थापित किया था। यही कारण है कि संपूर्ण कश्मीर ‘नमस्ते शारदा देवी, कश्मीरपुर वासिनी’ का उद्घोष करता रहा। यह भूमि इतनी पवित्र और ज्ञान-विज्ञान की गंगा बहाने वाली थी कि शिवपुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, चरक संहिता, अष्टांग योग जैसे अमूल्य ग्रंथ यहीं रचे गए। कश्मीर शैव दर्शन और भारतीय आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में शारदा पीठ का उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा कि यहाँ विद्वानों की एक बड़ी मंडली थी, जहां विश्वभर से छात्र ज्ञान अर्जित करने आते थे।
 
प्राचीन जम्मू-कश्मीर न केवल प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर की एक अनमोल थाती भी है। यहाँ के धार्मिक स्थल, शिक्षण केंद्र और सांस्कृतिक परंपराएँ भारत की विविधता और समृद्धि को दर्शाते हैं। यह भूमि हमें यह सिखाती है कि ज्ञान, भक्ति और संस्कृति का सही संगम किसी भी सभ्यता को महान बना सकता है। आज भी जम्मू-कश्मीर अपनी इस विरासत को संजोए हुए है, और यह स्थान सदियों से ज्ञान, आस्था और प्रेम की ज्योति प्रज्वलित कर रहा है।
 
 Written By : Ujjawal Mishra
 
 
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