जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हाल ही में एक ऐतिहासिक क्षण सामने आया, जब पहली बार पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर (PoJK) को आधिकारिक रूप से उसी नाम से संबोधित किया गया, जो उसकी वास्तविक पहचान है –POJK (Pakistan Occupied Jammu & Kashmir)। यह न केवल शब्दों का बदलाव है, बल्कि भारत की संवेदनशील भू-राजनीतिक वास्तविकता और ऐतिहासिक तथ्यों की पुन: स्थापना की दिशा में एक साहसिक कदम भी है।
जम्मू कश्मीर में विधानसभा का सत्र जारी है। इस सत्र में भाजपा विधायक राजीव जसरोटिया (Rajiv Jasrotia) ने प्रदेश सरकार से POJK विस्थापितों को लेकर सवाल पूछा था। उन्होंने सवाल किया था कि अब तक POJK विस्थापितों को किस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं हैं। लिहाजा BJP विधायक के सवाल के लिखित जवाब में प्रदेश सरकार के राहत एवं पुनर्वास विभाग की तरफ से विस्थापित PoJK परिवारों को लेकर कई महत्वपूर्ण आंकड़े और जानकारियाँ साझा कीं, जो दशकों से न्याय और पुनर्वास की राह देख रहे हैं।
1947 की त्रासदी और विस्थापन की कहानी
प्रदेश सरकार ने जवाब में बताया कि 1947 के विभाजन और पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर पर किए गए हमले के दौरान करीब 31,619 परिवार PoJK से पलायन कर भारत की सीमा में आ गए। इनमें से 26,319 परिवार जम्मू-कश्मीर राज्य में ही बस गए, जबकि करीब 5,300 परिवार देश के अन्य हिस्सों में शरण लेने का निर्णय किया। हालाँकि उनमें से भी कुछ पुनः जम्मू-कश्मीर लौटे।
विस्थापितों को दी गई ज़मीन और आवासीय सुविधाएँ
सरकार के अनुसार, PoJK विस्थापितों को 1954 में ज़मीन, प्लॉट और क्वार्टर आवंटित किए गए। उन्हें 1965 में राज्य भूमि पर मालिकाना हक दिया गया और 1976 में evacuee land (त्यागी भूमि) पर कब्जाधिकार (occupancy rights) दिए गए।
अब तक कुल आवंटन इस प्रकार है:
* 6,80,850 कनाल evacuee land
* 2,43,000 कनाल राज्य भूमि
* 793 शहरी प्लॉट (जैसे बख्शी नगर, उधमपुर, पटोली, नटीपोरा)
* 1,628 क्वार्टर (बख्शी नगर, नौशहरा, राजौरी आदि में)
राहत पैकेज और मुआवजा
वर्ष 2000 में भारत सरकार ने उन परिवारों को ₹5,000 प्रति कनाल का मुआवजा देना शुरू किया, जिन्हें जमीन की स्वीकृत मात्रा से कम मिली थी। यह सीमा बाद में 2008 में बढ़ाकर ₹30,000 प्रति कनाल कर दी गई और अधिकतम ₹1.5 लाख तक भुगतान किया गया। जो शहरी विस्थापित परिवार प्लॉट से वंचित रह गए थे, उन्हें ₹2 लाख की आर्थिक सहायता दी गई।
छम्ब क्षेत्र के विस्थापितों को भी अधिकार
1965 और 1971 के युद्धों में छंब क्षेत्र से विस्थापित हुए 10,065 परिवारों को जम्मू, सांबा और कठुआ में 156 बस्तियो में पुनर्वासित किया गया। इन परिवारों के लिए 2 लाख कनाल भूमि अलग से आवंटित की गई।
'POJK' का आधिकारिक उपयोग – एक ऐतिहासिक मोड़
अब तक सरकारी दस्तावेजों, भाषणों और विधानसभाओं में PoJK को प्रायः "पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर" या 'Pakistan Occupied Kashmir' के रूप में संदर्भित किया जाता था। लेकिन इस बार विधानसभा में यह शब्द 'Pakistan Occupied Jammu & Kashmir (POJK)' के रूप में दर्ज हुआ — जो न केवल भारत के संवैधानिक रुख का संकेत है, बल्कि लाखों विस्थापितों की पीड़ा और पहचान को भी मान्यता देता है। यह कदम भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से PoJK को केवल विवादित भू-भाग नहीं, बल्कि भारत के अभिन्न हिस्से के रूप में मानने की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम है।
प्रश्नकाल के दौरान विधानसभा में हंगामा :
भाजपा विधायक जिस वक्त POJK विस्थापितों से जुड़े प्रश्न पूछ रहे थे उस वक्त NC, PDP और अन्य उनके सहयोगी दल देश में लागू हुए वक्फ कानून को लेकर भारी विरोध कर रहे थे। वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए NC विधायक इस कानून को बर्खाश्त करने की मांग कर रहे हैं। सत्ता पक्ष लगातार विधानसभा स्पीकर पर वक्फ कानून पर चर्चा कराने की मांग पर अड़ा है। लेकिन स्पीकर ने स्पष्ट कर दिया है कि चूँकि मामला कोर्ट में विचाराधीन है और संसद द्वारा पारित प्रस्ताव है तो इस नियमों के अनुसार चर्चा नहीं करा सकते। ऐसे में विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान जनहित से जुड़े मुद्दे ना उठाकर NC, PDP व अन्य सहयोगी दलों के नेता सिर्फ हंगामा करने में जुटे हैं।
लिहाजा सत्ता दल की इन हरकतों को देखते हुए BJP विधायक पवन गुप्ता और राजीव जसरोटिया ने विधानसभा के वाल में पहुंचकर अपना विरोध दर्ज कराया। स्पीकर से उन्होंने हंगामा करने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि जनता ने हमें यहाँ जनहित से जुड़े मुद्दे उठाने उनपर नीतियाँ बनाने के लिए भेजा है। लेकिन सत्ता पक्ष के विधायक सिर्फ हंगामा कर के विधानसभा के प्रश्नकाल के समय को बर्बाद कर रहे हैं।
अब्दुल्ला सरकार पर सवाल....
राजीव जसरोटिया ने अब्दुल्ला सरकार पर आरोप लगाते हुए मीडिया से कहा कि मैंने प्रश्नकाल के दौरान POJK विस्थापितों के अधिकारों व उनके पुनर्वास से सम्बंधित 5 प्रश्न पूछे थे। लेकिन सरकार के तरफ से पहले 4 प्रश्नों का जवाब नहीं दिया गया। राजीव जसरोटिया ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मैं अपने प्रश्न के माध्यम से अब्दुल्ला सरकार का ध्यान उन हजारों विस्थापित परिवारों के तरफ मोड़ना चाहता हूँ जिन्हें अब तक किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिली है।