'J&K में आर्टिकल 370 थी सबसे बड़ी समस्या..' ; कांग्रेसी नेता सलमान ख़ुर्शीद का बड़ा क़बूलनामा, क्या है मायने ?

30 May 2025 17:30:54
 
Salman khurshid praises article 370 abrogation
 
Salman Khurshid Praises Article 370 Abrogation : इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में एक महत्वपूर्ण बयान सामने आया है, जिसने जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस की दशकों पुरानी राजनीति को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को एक सही और प्रभावी कदम बताया है। यह बयान उस कांग्रेस पार्टी के नेता की ओर से आया है, जिसने वर्षों तक अनुच्छेद 370 का बचाव किया और उसकी बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। सलमान खुर्शीद ने जकार्ता में इंडोनेशिया के प्रमुख थिंक टैंकों और शिक्षाविदों को संबोधित करते हुए कहा:
 
 
"जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 एक बड़ी समस्या थी। इससे यह धारणा बनती थी कि जम्मू कश्मीर भारत के बाकी हिस्से से अलग है। यह सोच सरकार की कार्यशैली में भी झलकती थी। लेकिन 2019 में 370 हटने के बाद यह धारणा खत्म हो गई।"
 
 
उन्होंने आगे कहा कि आज जम्मू कश्मीर में एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव हुए हैं और 65% से अधिक मतदान दर्ज किया गया है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आम जनता भारत के संविधान और लोकतंत्र में आस्था रखती है।
 
 
 
 
 
370 पर यू-टर्न क्यों?
 
 
यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आई है जब सलमान खुर्शीद एक 7 सदस्यीय सर्वदलीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ ऑपरेशन सिंदूर को लेकर इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर का दौरा कर रहे हैं। यह प्रतिनिधिमंडल JDU सांसद संजय कुमार झा के नेतृत्व में भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति और कश्मीर की स्थिति को लेकर दुनिया को अवगत करा रहा है।
 
 
बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जिस कांग्रेस पार्टी ने 370 को हटाने का पुरजोर विरोध किया, मोदी सरकार पर संघीय ढांचे को तोड़ने का आरोप लगाया, और वोटबैंक की राजनीति के तहत इसे बहाल कराने सुप्रीम कोर्ट तक गई — अब उसी पार्टी के वरिष्ठ नेता 370 को ‘समस्या’ कह रहे हैं?
 
 
370 का विरोध सिर्फ वोटबैंक की राजनीति थी ?
 
 
अब जबकि सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता खुद यह मान रहे हैं कि अनुच्छेद 370 एक समस्या थी, यह साफ है कि कांग्रेस का विरोध केवल राजनीतिक स्वार्थ और वोटबैंक को साधने की रणनीति थी। 370 की स्थापना नेहरू-शेख अब्दुल्ला समझौते की उपज थी, जिसने कश्मीर को भारत से दूर रखने का रास्ता बनाया और दशकों तक अलगाववाद को परोक्ष समर्थन दिया।
 
 
अब इतिहास बन चुकी है 370
 
 
370 अब इतिहास बन चुकी है। आज जब देश के बहुसंख्य नागरिक इस फैसले को ऐतिहासिक उपलब्धि मानते हैं, तो कांग्रेस नेताओं का बदला हुआ रुख यह दिखाता है कि उन्हें भी अंततः सत्य का स्वीकार करना पड़ रहा है। सलमान खुर्शीद की यह स्वीकारोक्ति बताती है कि मोदी सरकार का यह निर्णय देशहित में था, और उसका प्रभाव आज जम्मू-कश्मीर की धरती पर शांति, लोकतंत्र और विकास के रूप में दिख रहा है।
 
 
5 अगस्त 2019:  
 
 
मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अनुच्छेद 370 को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया। यही वह अनुच्छेद था, जिसकी आड़ में जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद, आतंकवाद और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग को दशकों तक हवा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति पूरी तरह संवैधानिक और विधिसम्मत थी, और यह जम्मू-कश्मीर के विकास में बड़ी बाधा बन चुकी थी।
 
370 के बाद बदला जम्मू कश्मीर: 
 
 
* भारतीय संविधान की पूरी व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में लागू हुई।
 
 
* एक राष्ट्र, एक विधान, एक निशान का सपना साकार हुआ — जो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जनसंघ के बलिदानियों का संकल्प था।
 
 
* जम्मू-कश्मीर में अब तेज गति से विकास, सुधरती कानून व्यवस्था, और बढ़ती पर्यटन गतिविधियाँ देखने को मिल रही हैं।
 
 
प्रशासनिक पुनर्गठन: राज्य का दर्जा समाप्त कर दो केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए। 2022 में परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सीटें 83 से बढ़ाकर 90 हुईं, जिनमें से छह अतिरिक्त सीटें जम्मू क्षेत्र को आवंटित की गईं। इसके फलस्वरूप जम्मू क्षेत्र का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा।
 
 
बुनियादी ढांचे में निवेश: केंद्र सरकार ने सड़कों, रेलमार्ग, जलापूर्ति और शिक्षा आदि क्षेत्रों में अरबों रुपए निवेश किए। उदाहरण के लिए, जून 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में कुल ₹1,500 करोड़ से अधिक की 84 विकास परियोजनाएँ (सड़क, जल योजना, छ: नए महाविद्यालय, औद्योगिक उद्यान आदि) का उद्घाटन किया। साथ ही कृषि और सहायक क्षेत्रों को आधुनिक बनाने के लिए ₹1,800 करोड़ की JKCIP परियोजना शुरू की गई, जिससे लगभग 15 लाख ग्रामीण परिवार लाभान्वित होंगे। इन प्रयासों से क्षेत्र में रोजगार और कृषि उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है।
 
 
लोकतांत्रिक बहाली: आर्टिकल 370 निरस्ति के बाद 2024 में पहली बार विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, जिसमें लगभग 60% मतदान हुआ। चुनाव के बाद राष्ट्रीय कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी। इस प्रकार छह वर्षों के बाद स्थानीय लोकतंत्र बहाल हुआ। अल्प अवधि में ही पंचायत और नगर निकाय के चुनाव भी पुन: आयोजित किए गए हैं। चुनाव और परिसीमन ने यह संकेत दिया कि अब जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया सामान्य होने लगी है।
 
 
पर्यटन एवं अर्थव्यवस्था: निरस्तीकरण के बाद पर्यटन में अभूतपूर्व उछाल आया है। 2022 में जम्मू-कश्मीर में 1.62 करोड़ पर्यटक आए, जो स्वतंत्रता के बाद का सर्वाधिक आंकड़ा है। पहले छमाही 2024 में पर्यटन के आंकड़े 1.08 करोड़ तक पहुंच गए, जो तीन वर्षों में औसतन 15.13% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। इनसे स्थानीय होटल, परिवहन और हस्थकला उद्योग को भारी लाभ हुआ। साथ ही केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएँ (जैसे आवास, स्वास्थ्य बीमा) अब लागू होने से आम नागरिकों को सीधे लाभ पहुंचा है। कुल मिलाकर ये परिवर्तन जम्मू-कश्मीर के सतत विकास और एकीकरण का संकेत दे रहे हैं।
 
 
आज कश्मीर में रैलियाँ होती हैं, तिरंगा खुलेआम लहराया जाता है, नौजवान रोजगार की ओर अग्रसर हैं, और महिलाएँ अब 370 के पूर्व भेदभाव से मुक्त होकर अपने अधिकार पा चुकी हैं। 
 
 
 
 
 
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