लेख: उज्जवल मिश्रा (अर्नव)
30 मई 2025 की सुबह बलूचिस्तान के सोराब शहर में जबर्दस्त हलचल देखी गई। दरअसल, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) के सैकड़ों सशस्त्र लड़ाकों ने एक सुनियोजित अभियान के तहत पूरे शहर को घेर लिया और सोराब शहर को अपने कब्जे में ले लिया। BLA ने खुद इस बात की घोषणा की है। BLA के अनुसार बलूच लड़ाकों ने पुलिस थाने, बैंक, टेलीफोन एक्सचेंज और जिला कार्यालयों पर कब्ज़ा कर लिया गया। सरकारी वाहनों और हथियारों को जब्त किया गया।
सोराब शहर बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा से महज 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोराब बलूचिस्तान के कालात ज़िले में स्थित एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कस्बा है। 2023 तक की उपलब्ध जानकारी के अनुसार, सुराब शहर की अनुमानित जनसंख्या लगभग 35,000 से 45,000 के बीच है। यह RCD हाइवे (Quetta-Karachi राष्ट्रीय मार्ग) पर स्थित है, जो बलूचिस्तान की व्यापारिक और सैन्य आवाजाही की धुरी है।
बलूच लिबरेशन आर्मी एक सशस्त्र राष्ट्रवादी संगठन है जो बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग करता है। इसका गठन 2000 के दशक में हुआ था, लेकिन इसकी विचारधारा की जड़ें 1948 में बलूचिस्तान के जबरन विलय तक जाती हैं। BLA का मानना है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान का साम्राज्यवादी शोषण कर रहा है, और वहाँ के लोगों को मूल अधिकारों से वंचित रखता है। यह संगठन गुरिल्ला युद्ध, टारगेटेड हमलों और सरकारी ठिकानों पर कब्ज़े की रणनीति अपनाता है। पाकिस्तान इस संगठन को आतंकी घोषित करता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसके प्रति सहानुभूति रखने वाले आवाज़ें भी उभर रही हैं।
बलूचिस्तान का इतिहास विद्रोहों और दमन का इतिहास रहा है। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद, बलूचिस्तान के खान ऑफ कलात ने स्वतंत्र रहने का इरादा जताया था, लेकिन मार्च 1948 में पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान को बलपूर्वक मिला लिया। तब से अब तक पांच बड़े बलूच विद्रोह हो चुके हैं (1948, 1958, 1962, 1973 और 2005–वर्तमान)। हर बार पाकिस्तान ने इन आंदोलनों को सेना के बल पर दबाने की कोशिश की, लेकिन बलूच राष्ट्रवाद की भावना खत्म नहीं हुई। बलूच जनता का आरोप है कि उन्हें ना राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला, ना आर्थिक भागीदारी, बल्कि बदले में गुमशुदगियाँ, फर्जी मुठभेड़ें और दमन मिला।
बलूच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान बलूचिस्तान को एक उपनिवेश की तरह चला रहा है। हजारों बलूच कार्यकर्ता और छात्र गायब हैं — जिनमें से कई की लाशें बाद में मिलीं, और कई का कोई सुराग नहीं। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बलूचिस्तान में “फोर्स्ड डिसएपीयरेंस” एक आम सरकारी हथियार बन चुका है। बलूच पत्रकारों और एक्टिविस्टों को मौत या निर्वासन के बीच चुनना पड़ता है। CPEC जैसे परियोजनाओं में बलूचों की भागीदारी नाममात्र की है — जबकि उनके संसाधन चीन और पंजाब को फायदा पहुंचा रहे हैं। यह स्थिति एक आंतरिक उपनिवेशवाद का जीवंत उदाहरण बन चुकी है।
भारत लंबे समय से बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार हनन को लेकर आवाज़ उठाता रहा है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान का ज़िक्र कर इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाई थी। भारत के लिए बलूचिस्तान सिर्फ एक कूटनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर करने का रणनीतिक मंच भी है — खासकर जब वह कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहता है। इसके अलावा, चीन के CPEC प्रोजेक्ट को बाधित करने के लिए बलूचिस्तान की अस्थिरता एक बड़ा भू-राजनीतिक कारक बन सकती है।
बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग अब केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक चेतना और मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध एक सशक्त आवाज बनता जा रहा है। हाल ही में बलूच नेता, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता मीर यार बलोच (Baloch Leader Mir Yar Baloch) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर पाकिस्तान के जघन्य कृत्यों की पोल खोली है। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने पाकिस्तान की फौज और ISI को सीधे तौर पर आतंकवाद की माँ बताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की अपील की है। पत्र की प्रमुख बातें कुछ इस प्रकार से हैं.....:
मीर यार बलोच (Baloch Leader Mir Yar Baloch) ने पत्र में लिखा कि 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान की धरती पर 6 परमाणु परीक्षण किए, जिससे ना सिर्फ वहां की जमीन बल्कि आने वाली कई पीढ़ियां भी विकलांगता और बीमारियों के अंधकार में धकेल दी गईं। उन्होंने कहा, “चगाई और रास कोह की पहाड़ियों में आज भी बारूद की गंध बसती है। महिलाएं असामान्य बच्चों को जन्म दे रही हैं, लाखों एकड़ कृषि भूमि बर्बाद हो चुकी है और पशु-पक्षियों का जीवन खतरे में है।”
पत्र में मीर यार ने लिखा है कि पाकिस्तान की फौज और ISI इस्लाम के नाम पर केवल अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं। ISI हर महीने एक नया आतंकी संगठन बनाता है और भारत, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, इजराइल और अमेरिका जैसे देशों के खिलाफ इस्तेमाल करता है। उन्होंने साफ कहा – "पाकिस्तान आतंकवाद की जननी है। जब तक इसकी जड़ें नहीं उखाड़ी जाएंगी, आतंकवाद का खात्मा नहीं हो सकता।”
बलूच नेता ने भारतीय सेना द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि अगर यह अभियान एक सप्ताह और चलता, तो आज बलूचिस्तान स्वतंत्र राष्ट्र होता। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि भारत को बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में खुलकर साथ देना चाहिए।
पत्र में उन्होंने पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं और धोखेबाज प्रवृत्ति का भी पर्दाफाश किया। उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. अब्दुल क़दीर ख़ान ने कैसे यूरोप से परमाणु तकनीक चुराकर पाकिस्तान को परमाणु शक्ति बनाया और ISI ने कैसे अमेरिका को अफगान युद्ध के समय धोखा दिया।
उन्होंने चेताया कि आज पाकिस्तान, ईरान जैसे कट्टरपंथी देशों को परमाणु हथियार हासिल करने में मदद कर रहा है, जो आने वाले समय में वैश्विक शांति के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
बलूच नेता ने बताया कि पाकिस्तान बलूचिस्तान की सोना, चांदी, गैस, कोयला, यूरेनियम और तेल जैसी प्राकृतिक संपदाओं को लूटकर अपने सैन्य तंत्र और आतंकी संगठनों को पोषित कर रहा है। उन्होंने चेताया कि चीन बलूचिस्तान की ग्वादर, ओरमारा और जिवानी जैसे तटीय क्षेत्रों पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहा है, जिससे दक्षिण एशिया की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है
पत्र के अंत में मीर यार बलोच ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि भारत को अब शब्दों से आगे बढ़कर बलूचिस्तान के समर्थन में ठोस कदम उठाने चाहिए। उन्होंने मांग की कि दिल्ली में बलूचिस्तान का दूतावास खोला जाए, ताकि भारत और बलूचिस्तान के बीच सीधे कूटनीतिक और रणनीतिक संवाद स्थापित हो सके।
उन्होंने लिखा, “15 अगस्त 2016 को जब आपने लाल किले से बलूचिस्तान का जिक्र किया, तब आपने 6 करोड़ बलूचों का दिल जीत लिया था। अब वक्त है कि उन शब्दों को क्रियान्वयन में बदला जाए।” उन्होंने कहा कि भारत और बलूचिस्तान मिलकर इस क्षेत्र में आतंकवाद के केंद्र पाकिस्तान को निर्णायक रूप से पराजित कर सकते हैं।
सोराब पर BLA का कब्ज़ा एक चेतावनी है। यह महज़ एक सशस्त्र कार्रवाई नहीं, बल्कि बलूच जनता के भीतर संगठित असंतोष और आज़ादी की तीव्र होती ललक का संकेत है। अगर पाकिस्तान अब भी बलूचिस्तान को सिर्फ सैन्य शक्ति से नियंत्रित करने की नीति पर चलता रहा, तो आने वाले वर्षों में यह विद्रोह एक पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम का रूप ले सकता है।