जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के बाद जब पूरा देश आक्रोश में है, जब सेना और सुरक्षाबल दिन-रात एक कर आतंकी नेटवर्क को जड़ से खत्म करने में जुटे हैं, तभी कुछ राजनीतिक चेहरों की असलियत एक बार फिर सामने आ गई है। जी हां, हम बात कर रहे हैं पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की, जिनके शब्दों से बार-बार आतंकियों और उनके मददगारों के लिए "हमदर्दी" झलकती है, और यह सिर्फ संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित एजेंडा लगता है। ना सिर्फ PDP अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) बल्कि NC सांसद आगा रुहुल्ला मेहदी तथा जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री सकीना इट्टू ने इस मामले को संदिग्ध बताते हुए जांच की मांग उठाई है। यह वही आगा रूहुल्ला हैं जिन्होंने हाल ही में जम्मू कश्मीर में तेजी बढ़ रहे पर्यटन को 'कल्चरल टेररिज्म' बताया था।
आतंकियों की मौत पर आँसू, सुरक्षाबलों पर आरोप – किस एजेंडे पर चल रही हैं महबूबा?
हाल ही में कुलगाम जिले में एक आतंकी मददगार इम्तियाज अहमद मागरे की मौत की खबर आई। इम्तियाज वही व्यक्ति है जिसने पूछताछ में स्वीकार किया था कि उसने पहलगाम हमले में शामिल आतंकियों को खाने-पीने का सामान और छिपने के ठिकाने मुहैया कराए थे। जब सुरक्षाबल उसे एक आतंकी ठिकाने की ओर लेकर जा रहे थे, तभी वह भागने की कोशिश में नाले में कूद गया और बह जाने से उसकी मौत हो गई। यह पूरी घटना ड्रोन कैमरे में रिकॉर्ड हुई है, जिसका वीडियो भी सामने आ चुका है।
लेकिन देश की सुरक्षा के लिए जी-जान लगा रहे जवानों की प्रशंसा करने के बजाय, महबूबा मुफ्ती ने एक बार फिर भारत विरोधी बयानबाजी की राह चुनी। उन्होंने इस घटना को “साजिश” करार दिया और सुरक्षाबलों पर सवाल खड़े कर दिए। सोशल मीडिया पर अपने बयान में उन्होंने कहा कि इम्तियाज को सेना ने दो दिन पहले उठाया था और अब रहस्यमयी तरीके से उसकी लाश मिली है।
अब सवाल यह उठता है कि एक स्वीकारोक्ति कर चुके आतंकी मददगार के लिए महबूबा मुफ्ती को इतनी पीड़ा क्यों हो रही है? क्या वजह है कि हर बार जब देश की सुरक्षा एजेंसियां कोई कार्रवाई करती हैं, तो महबूबा जैसे नेता अपने बयानों से दुश्मनों के हौसले बुलंद करते हैं?
आतंक प्रेम, महबूबा का इतिहास
यह कोई पहला मौका नहीं है जब महबूबा मुफ्ती आतंकियों के समर्थन में खड़ी दिखी हों। जब प्रशासन द्वारा आतंकियों के घरों को जमींदोज किया गया, तब भी महबूबा मुफ्ती इन्हीं लोगों के पक्ष में खड़ी नजर आईं। बार-बार आतंकियों के प्रति सहानुभूति और सुरक्षाबलों पर सवाल — क्या यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है या कुछ और गहरा षड्यंत्र?
फारूक अब्दुल्ला ने खोली महबूबा की पोल
नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने भी अब महबूबा मुफ्ती पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने ANI को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "मुख्यमंत्री होने के नाते जिन इलाकों में मैं नहीं जा सकता था, वहाँ महबूबा मुफ्ती आतंकियों के घर जाती थीं।" यह बयान अपने आप में बहुत कुछ कहता है। फारूक अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि पहलगाम हमले में स्थानीय मदद के बिना हमला संभव नहीं था। यही बात महबूबा को इतनी चुभी कि उन्होंने अब फारूक पर ही पलटवार करना शुरू कर दिया है। लेकिन फारूक अब्दुल्ला ने जो सवाल उठाया है — वह देश का हर नागरिक पूछ रहा है: "महबूबा मुफ्ती आतंकियों के घर क्यों जाती थीं?"
विपक्ष की घिनौनी राजनीति और पाकिस्तानी मीडिया की सुर्खियाँ
महबूबा मुफ्ती ही नहीं, बल्कि कांग्रेस और INDI गठबंधन के कई नेताओं की हालिया बयानबाजी देखकर ऐसा लगता है मानो ये नेता भारतीय सेना के नहीं, बल्कि पाकिस्तान के प्रवक्ता बन चुके हैं। सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाना, आतंकियों के मारे जाने पर आंसू बहाना और सुरक्षाबलों को कठघरे में खड़ा करना — यह सब किसी राजनीतिक मतभेद की सीमा को पार कर राष्ट्रविरोधी रुख बन चुका है। और दुर्भाग्य देखिए, जब देश एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है, तब ये नेता पाकिस्तानी मीडिया की सुर्खियाँ बनकर वहां के नैरेटिव को ताकत दे रहे हैं।
देश को यह समझने की ज़रूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सीमा पर नहीं, बल्कि देश के भीतर छिपे गद्दारों के खिलाफ भी है। जो लोग आतंकियों के मददगारों को मासूम बताकर पेश करते हैं, वे सीधे तौर पर देश की सुरक्षा और शांति को चोट पहुँचा रहे हैं।
तमाम विपक्षी नेताओं से पूछा जाना चाहिए यह सवाल.....
क्या आपकी राजनीति की बुनियाद आतंकियों के समर्थन पर टिकी है ?
क्या वोटबैंक के लिए आप देश की सुरक्षा ताक पर रख देंगी ?