बिलावल भुट्टो ने खड़े किए अमेरिकी नीतियों पर सवाल ; US को बताया आतंकवाद का जिम्मेदार...! भुट्टो के बयान के क्या मायने ?

    10-जून-2025
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पहलगाम हमले के बाद भारत ने जिस आक्रामक और निर्णायक नीति का परिचय दिया है, उसने न सिर्फ सीमापार बैठे प्रायोजकों को स्पष्ट संदेश दिया है, बल्कि पाकिस्तान की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसी सैन्य कार्रवाइयों ने आतंकवाद के प्रति भारत की बदली हुई रणनीति और इच्छाशक्ति को वैश्विक मंच पर स्थापित किया है।
 
 
पाकिस्तान की दोहरी नीति और वैश्विक मंच पर किरकिरी
 
 
भारत में हुए आतंकी हमलों की जड़ें वर्षों से पाकिस्तान की ज़मीन से जुड़ी रही हैं। लेकिन आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि जो देश वर्षों से आतंक के नेटवर्क को संरक्षण देता रहा, वही अब खुद को पीड़ित साबित करने की भरसक कोशिशों में लगा है।
 
 
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर हैं। इस दौरे का उद्देश्य है — पाकिस्तान की बिगड़ी अंतरराष्ट्रीय छवि को थोड़ा सुधारना और खुद को वैश्विक सुरक्षा संकट का 'शिकार' बताना। लेकिन बिलावल भुट्टो ने इस यात्रा के दौरान जो बयान दिया, उसने एक बार फिर पाकिस्तान की विरोधाभासी सोच और रणनीतिक असहजता को उजागर कर दिया है।
  
 
उन्होंने अमेरिकी नीतियों को ही पाकिस्तान में फैले हिंसा और अस्थिरता के लिए जिम्मेदार ठहराया।  उनके अनुसार, अमेरिका जब अफगानिस्तान से जल्दबाज़ी में बाहर निकला, तो कई संवेदनशील और घातक हथियार वहीं छूट गए, जो अब भुट्टो के अनुसार आतंकी समूहों के हाथ लग चुके हैं और वो आतंकी पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।
 
 
बिलावल की चुप्पी और तालिबान पर ठीकरा
 
 
बिलावल भुट्टो ने अपने पूरे बयान में पाकिस्तान के अंदर की पनपती आतंकी संरचनाओं का जिक्र तक नहीं किया, न ही उन संगठनों का नाम लिया जिन्हें वर्षों से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का समर्थन मिलता रहा है। उन्होंने तालिबान पर आरोप मढ़ते हुए, अमेरिका के कदमों को दोषी ठहराया और पाकिस्तान को पीड़ित राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की। लेकिन शायद बिलावल यह भूल गए कि आज दुनिया के सामने पाकिस्तान की असलियत किसी पर्दे में नहीं छिपी। फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) से लेकर संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ तक, सभी मंचों पर पाकिस्तान की आतंक-समर्थक भूमिका को उजागर किया जा चुका है।
 
 
भारत के प्रति द्वेष, और आतंकी रणनीति
 
 
भारत दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा का शिकार रहा है — 26/11 हो या पुलवामा, उरी हो या अब पहलगाम। हर हमले की कड़ियाँ सीमा पार से जुड़ती रही हैं। लेकिन अब भारत की नीति बदल चुकी है। 'सर्जिकल स्ट्राइक' और 'एयर स्ट्राइक' के बाद अब 'ऑपरेशन सिंदूर' ने इस संदेश को और मज़बूत किया है — भारत अब 'नरमी से सहन' नहीं, 'दृढ़ता से प्रतिकार' की नीति पर है।
 
 
आर्थिक गर्त में पाकिस्तान
 
 
पाकिस्तान न केवल राजनीतिक रूप से अस्थिर है, बल्कि आर्थिक रूप से भी दिवालियापन के कगार पर खड़ा है। IMF की शर्तों पर आधारित ऋण, विदेशी निवेश की भारी कमी, बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी के बीच पाकिस्तान के पास वैश्विक समुदाय से समर्थन पाने के लिए अब केवल 'दया' और 'विक्टिम कार्ड' ही बचा है।
 
 
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के बयान से खुली पोल
 
 
यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान के नेताओं ने अमेरिका को सीधे निशाने पर लिया हो। कुछ समय पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी Sky News को दिए इंटरव्यू में अमेरिका पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाया था। उन्होंने माना कि अमेरिका ने अपने हितों के लिए दक्षिण एशिया में आतंकवाद को हवा दी, जिससे पाकिस्तान तीन दशकों से जूझ रहा है। इतना ही नहीं, ख्वाजा ने यह भी कहा कि अमेरिका देशों के बीच युद्ध भड़काकर अपने हथियार बेचता है।
 
 
वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की अलग-थलग स्थिति
 
 
इन बयानों से साफ है कि पाकिस्तान के पास अब अपनी छवि बचाने के लिए न तो ठोस तर्क हैं, न प्रमाण। आज जब भारत आतंक के खिलाफ निर्णायक रवैया अपना चुका है और दुनियाभर में सम्मान पा रहा है, वहीं पाकिस्तान एक तिरस्कृत और अविश्वसनीय राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है।
 
 
निष्कर्ष:
 
 
बिलावल भुट्टो का अमेरिका में बयान और पाकिस्तान की विक्टिम रणनीति उस देश की उस नैतिक विडंबना को उजागर करती है, जिसने दशकों तक आतंक को नीति के रूप में अपनाया और अब जब वही आग उसके दरवाज़े तक पहुँच चुकी है, तो वह खुद को 'पीड़ित' दिखा रहा है। लेकिन शायद पाकिस्तान यह भूल गया है — विश्व अब समझ चुका है कि आतंक का स्रोत कहाँ है और समाधान किसके पास है। भारत अब चुप बैठने वाला नहीं, निर्णायक कार्रवाई करने वाला देश बन चुका है।