दिल्ली हाईकोर्ट ने कश्मीर के कुख्यात अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह की जमानत याचिका को सख्ती से खारिज करते हुए एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और आतंक के वित्तपोषण में शामिल लोगों के लिए भारत की न्याय व्यवस्था में कोई नरमी नहीं है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की पीठ ने फैसला सुनाते हुए यह कहा कि शब्बीर शाह पर लगाए गए आरोप न केवल गंभीर हैं, बल्कि सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा और कश्मीर घाटी में आतंकवाद फैलाने से जुड़े हुए हैं। अदालत ने माना कि ऐसी परिस्थितियों में जमानत देना न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और राष्ट्रहित दोनों के विरुद्ध होगा।
टेरर फंडिंग और पाकिस्तान कनेक्शन का खुलासा
शब्बीर शाह का नाम पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और हवाला नेटवर्क के जरिए आतंकी संगठनों को फंडिंग करने में लंबे समय से जुड़ा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने वर्ष 2019 में उसे आतंकी फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया था। जाँच में सामने आया कि वह पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे आतंकी संगठनों से सीधा संपर्क में था। विशेष रूप से उसका संबंध हाफिज सईद, जो कि वैश्विक आतंकवादी घोषित हो चुका है, से होने की पुष्टि भी हुई है। इसके अलावा शब्बीर, जम्मू के भगोड़े आतंकी मोहम्मद शफी शायर के संपर्क में भी था, जो जेल से छूटने के बाद परिवार सहित पाकिस्तान फरार हो गया था।
शब्बीर शाह के विरुद्ध गंभीर आपराधिक इतिहास
शब्बीर शाह पर अब तक 24 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। इनमें से 18 मामलों में आरोप सिद्ध हो चुके हैं, 3 खारिज हो चुके हैं, जबकि 3 की जांच जारी है। इसके बावजूद उसके वकील यह दावा करते रहे कि NIA के पास कोई "ठोस सबूत" नहीं है। लेकिन अदालत ने सबूतों की गंभीरता और गतिविधियों की प्रकृति को देखते हुए यह साफ किया कि ऐसे अभियुक्तों को जमानत देने से देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है, और यह एक खतरनाक नजीर बन सकती है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद अलगाववाद की जड़ें कमजोर
5 अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारत के संवैधानिक ढांचे में शामिल किया, तब से ही घाटी में अलगाववाद, आतंकवाद और पत्थरबाज़ी की घटनाओं में गिरावट दर्ज की गई है।
* हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, जो कभी पाकिस्तान की कठपुतली बनकर अलगाववाद फैलाती थी, आज राजनीतिक हाशिए पर चली गई है।
* आतंकी फंडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला हवाला नेटवर्क तोड़ा जा चुका है।
* NIA, ED और सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती ने स्लीपर सेल्स और जिहादी एजेंडों को जड़ से हिलाकर रख दिया है।
शब्बीर शाह जैसे नेता जो वर्षों तक कश्मीर की युवा पीढ़ी को कट्टरपंथ और हिंसा की आग में झोंकते रहे, अब न्यायिक प्रक्रिया और सख्त कानूनों के दायरे में हैं।
नया कश्मीर : आतंक मुक्त, विकास युक्त
आज का जम्मू कश्मीर बदल रहा है। स्कूल-कॉलेजों में देशभक्ति गीत गूंज रहे हैं, युवाओं के हाथों में कंप्यूटर और किताबें हैं न कि पत्थर या हथियार। शब्बीर शाह की जमानत याचिका की अस्वीकृति यह संदेश देती है कि अब देशद्रोहियों और अलगाववादियों के लिए भारत में कोई जगह नहीं है। जम्मू कश्मीर में अब राष्ट्रवाद की जड़ें मजबूत हो रही हैं और यह भारत की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति की जीत है।