क्यों महत्वपूर्ण है PM मोदी की साइप्रस और क्रोएशिया यात्रा ? तुर्की-पाक गठबंधन को मिलेगा करारा जवाब

    14-जून-2025
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PM Modi Cyprus visit why important
 
PM Modi Cyprus Visit : साइप्रस गणराज्य के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15-16 जून को साइप्रस की आधिकारिक यात्रा करेंगे। यह दो दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की पहली यात्रा होगी। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी साइप्रस की यात्रा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी निकोसिया में राष्ट्रपति क्रिस्टोडौलाइड्स से बातचीत करेंगे और लिमासोल में व्यापार जगत के नेताओं को संबोधित करेंगे। यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने और भूमध्यसागरीय क्षेत्र और यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगी।
 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी विदेश यात्राएं केवल औपचारिक दौरे नहीं, बल्कि एक सुविचारित कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं, जो भारत की विदेश नीति को एक नई वैश्विक दिशा देने की कोशिश करती हैं। विशेष रूप से साइप्रस और क्रोएशिया की उनकी यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत, तुर्की और पाकिस्तान के गठजोड़ से जूझ रहा है। यह यात्रा जहां भारत की यूरोप नीति को मजबूती देगी, वहीं भारत के विरोध में खड़े देशों को भी एक सशक्त संदेश देगी।
 
 
भारत और साइप्रस: ऐतिहासिक संबंधों की नींव
 
 
भारत और साइप्रस के बीच संबंध केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और नैतिक साझेदारी पर आधारित रहे हैं। साइप्रस ने हमेशा भारत के संवेदनशील मुद्दों – जैसे जम्मू कश्मीर, आतंकवाद और परमाणु नीति – पर स्पष्ट और मजबूती से भारत का समर्थन किया है।
 
 
* 1998 के परमाणु परीक्षण के समय साइप्रस उन चुनिंदा देशों में था जिसने भारत का विरोध नहीं किया।
 

* UNSC की अस्थायी सदस्यता, NSG में प्रवेश, और भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के दौरान भी साइप्रस भारत के साथ खड़ा रहा।
  
 
तुर्की-साइप्रस संघर्ष और भारत की भूमिका
 
 
1974 में तुर्की ने उत्तरी साइप्रस पर सेना भेजकर कब्जा कर लिया और एकपक्षीय रूप से उसे ‘तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस’ घोषित कर दिया, जिसे आज तक केवल तुर्की ही मान्यता देता है। भारत ने इस कदम का कभी समर्थन नहीं किया और हमेशा कहा कि यह विवाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सुलझाया जाना चाहिए।
 
 
यह वही तुर्की है जो हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है। फिर चाहे वह जम्मू कश्मीर मुद्दा हो या भारत-विरोधी प्रस्ताव। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की यह साइप्रस यात्रा साफ संदेश देती है कि भारत अब इस गठजोड़ को मौन रहकर सहन नहीं करेगा, बल्कि कूटनीति के स्तर पर पलटवार करेगा।
 
 
 
 
 
तुर्की-पाक गठबंधन पर भारत का कूटनीतिक जवाब
 
 
तुर्की ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान के साथ सैन्य और रणनीतिक गठजोड़ को बढ़ावा दिया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र मंच पर बार-बार कश्मीर मुद्दा उठाकर भारत को चिढ़ाने की कोशिश की है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और भारत के "ऑपरेशन सिंदूर" जैसे अभियानों के समय भी तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का साइप्रस जाना एक राजनयिक युद्ध का पहला प्रहार है।
 
 
ग्रीस और साइप्रस के साथ त्रिकोणीय सहयोग
 
 
भारत ने हाल के वर्षों में ग्रीस और साइप्रस के साथ त्रिकोणीय रणनीतिक सहयोग को प्राथमिकता दी है।
 
 
* 2023 में ग्रीस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी 40 वर्षों में ग्रीस जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। 
 
 
* अब, 2024 में साइप्रस यात्रा, जो इंदिरा गांधी (1983) और अटल बिहारी वाजपेयी (2002) के बाद तीसरी बार होगी, इस रणनीति को और गहराई देती है।
 
 
ग्रीस और साइप्रस दोनों ही आतंकवाद और जम्मू कश्मीर मुद्दे पर भारत के समर्थन में खड़े रहे हैं। यह यूरोपीय देशों का वह समूह है जो तुर्की की विस्तारवादी नीति के खिलाफ भी है, और भारत के लिए एक प्राकृतिक साझेदार बनकर उभरा है।
 
 
क्रोएशिया: नई शुरुआत का संकेत
 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्रोएशिया की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बनेंगे। 2021 में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की क्रोएशिया यात्रा के बाद यह दूसरा बड़ा राजनयिक कदम है।
 
 
* दोनों देशों ने हाल ही में रक्षा सहयोग समझौता किया है।
 

* क्रोएशिया भारत के लिए यूरोपीय यूनियन के भीतर एक द्वार की तरह काम कर सकता है, विशेषकर व्यापार, रक्षा, और नवाचार के क्षेत्रों में।
 
 
इस यात्रा से यह संदेश भी जाएगा कि भारत अब केवल पश्चिमी यूरोप ही नहीं, बल्कि पूर्वी यूरोप और बाल्कन क्षेत्र में भी अपनी राजनीतिक और आर्थिक उपस्थिति मजबूत कर रहा है।
 
 
G7 शिखर सम्मेलन: भारत की वैश्विक हैसियत
 
 
प्रधानमंत्री मोदी 15-17 जून के बीच कनाडा के अल्बर्टा में आयोजित G7 सम्मेलन में भाग लेंगे। भारत को इस बार भी विशेष अतिथि देश के रूप में बुलाया गया है।
 
 
* हालांकि यह दौरा अचानक तय हुआ है, लेकिन पीएम मोदी वहां एक विशेष सत्र में भाग लेंगे और संभवतः कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी करेंगे।
 
 
* यह दर्शाता है कि भारत की वैश्विक स्वीकार्यता अब इतनी मजबूत हो चुकी है कि उसे विश्व निर्णय प्रक्रियाओं का हिस्सा माना जा रहा है।
 
 
यूरोप में भारत की बढ़ती धुरी
 
 
प्रधानमंत्री मोदी की साइप्रस और क्रोएशिया की ये यात्राएं केवल परंपरा निभाना नहीं हैं — ये भारत की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं। जहाँ एक ओर तुर्की-पाकिस्तान जैसे देश धार्मिक गठजोड़ और उकसावे की नीति पर काम कर रहे हैं, वहीं भारत राजनयिक सूझबूझ, सहयोग और साझा मूल्यों के रास्ते पर चलकर एक वैकल्पिक शक्ति-धुरी बना रहा है।
 
 
यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब सिर्फ प्रतिक्रिया देने वाला देश नहीं, बल्कि रणनीति बनाने और दुनिया को दिशा देने वाला देश बन चुका है।