भारत का पाकिस्तान समर्थित सीमा-पार आतंकवाद से संघर्ष तीन दशकों से अधिक समय तक चला है। इसकी शुरुआत 1980 के दशक के अंत में जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ से हुई। 1990 तक कश्मीरी हिंदुओं की लक्षित हत्याएं, मंदिरों का विध्वंस और 3.5 लाख से अधिक कश्मीरी हिंदुओं का जबरन पलायन इस छद्म युद्ध की शुरुआत का संकेत था, जिसे पाकिस्तान ने योजनाबद्ध रूप से अंजाम दिया।
1990 से 2015 के बीच भारत ने मुख्य रूप से कूटनीतिक प्रयासों और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के माध्यम से इन आतंकी हमलों का जवाब दिया। भारत ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिज़्बुल मुजाहिदीन (HM) जैसे संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का समर्थन प्राप्त होने के अपार प्रमाण प्रस्तुत किए, लेकिन इसके बावजूद भारत की नीति रणनीतिक संयम और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की रही।
2016: एक नया सिद्धांत – सर्जिकल स्ट्राइक की शुरुआत
18 सितम्बर 2016 में जम्मू कश्मीर के उरी में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत की नीति में बुनियादी परिवर्तन आया। भारत ने पहली बार नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक को सार्वजनिक रूप से अंजाम दिया। इन हमलों में पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के भीम्बर गली, केल, लीपा वैली और टट्टा पानी में स्थित आतंकी लॉन्च पैड्स को निशाना बनाया गया। भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने आतंकियों और उनके सहायक तंत्र को सटीक ऑपरेशन से खत्म कर दिया। इस दौरान कार्रवाई को अंजाम देने वाले सभी जवान सुरक्षित वापस भी लौटे। इस ऑपरेशन ने भारत की सामरिक क्षमता और तत्परता को विश्व के सामने प्रदर्शित किया।
2019: पुलवामा हमले के बाद एयरस्ट्राइक –
14 फरवरी 2019 में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, इस हमले में 40 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। हमले के बाद समूचे देश भर में रोष का माहौल था। लिहाजा केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय सेना को खुली छुट देकर भारत ने इसका जवाब ‘ऑपरेशन बंदर’ के रूप में दिया। इस ऑपरेशन के अंतर्गत भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े ट्रेनिंग कैंप पर हवाई हमले किए। यह कैंप डॉर्मिटरी, फायरिंग रेंज और सुरंग जैसी सुविधाओं से लैस था। इस कार्रवाई में लगभग 300 से अधिक आतंकियों के मारे जाने का अनुमान है। 1971 के बाद यह पहला मौका था जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की वायु सीमा को पार किया। इस कार्रवाई ने दक्षिण एशिया में सामरिक सीमा रेखाओं की नई परिभाषा गढ़ी और भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से परोक्ष समर्थन भी मिला।
22, अप्रैल 2025:
बैसरन घाटी नरसंहार (पहलगाम हमला) और 'ऑपरेशन सिंदूर'
22 अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन में हुए जघन्य नरसंहार में 26 हिन्दू और 2 विदेशी पर्यटकों का धर्म के आधार पर नृशंस हत्या कर दी गई। हत्या से पहले आतंकियों ने इन पर्यटकों से उनका धर्म पूछा और उन्हें कलमा पढने को कहा और फिर गोलियों से भून दिया। इस नृशंस आतंकी हमले के बाद भारत ने अब तक की सबसे व्यापक सैन्य कार्रवाई – 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने ना सिर्फ POJK में बल्कि पहली बार पाकिस्तान के भीतर घुसकर जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के 9 प्रमुख आतंकी ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ का स्तर, समन्वय और प्रभाव भारत की नई और परिपक्व हो चुकी आतंकवाद-रोधी नीति को दर्शाता है – जिसमें सैन्य सटीकता, रणनीतिक संदेश और अंतरराष्ट्रीय वैधता का संतुलन दिखता है। इस अभियान से पाकिस्तान की सेना और आतंकी संगठनों की गहरी साठगांठ उजागर हुई और भारत-विरोधी जिहादी नेटवर्क की आधारभूत संरचनाएं ध्वस्त कर दी गईं। अनुमान के तहत इस हमले में 150 से अधिक आतंकी मारे गए। जिसमें आतंकी मसूद अजहर के परिवार के कुल 14 सदस्य मारे गए।
रिपोर्ट का उद्देश्य
यह रिपोर्ट 1989 से 2025 के बीच भारत की आतंकवाद से निपटने की नीति में आए बदलाव को क्रमवार और तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत करती है – कैसे संयम से लेकर सक्रिय सैन्य प्रतिकार तक की यात्रा तय की गई।
प्रमुख आतंकी हमलों की कालानुक्रमिक रूपरेखा
भारत की आतंकवाद-रोधी नीति के विकास को समझने के लिए इन हमलों और प्रतिक्रियाओं को तीन कालखंडों में विभाजित किया गया है:
चरण I: 1989 – 2000 |
आतंकवाद और प्रारंभिक घुसपैठ का दौर
इस चरण में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत हुई, जिसमें पाकिस्तान समर्थित जेकेएलएफ और हिज़्बुल मुजाहिदीन जैसे चरमपंथी समूहों की भूमिका रही। 1990 में कश्मीरी हिंदुओं का पलायन, वंधामा और प्रानकोट जैसे नरसंहार इस काल के प्रमुख बिंदु रहे। भारत ने इस दौर में जवाब कूटनीति और आंतरिक सुरक्षा सुधारों के माध्यम से दिया, लेकिन कोई प्रत्यक्ष सैन्य जवाब नहीं दिया गया।
चरण II: 2001 – 2015 |
संसद, अक्षरधाम और मुंबई पर बड़े हमले
इस काल में आतंकवाद ने बड़े और संगठित हमलों का रूप लिया। 2001 का संसद हमला, 2002 का कालूचक नरसंहार, 2005–06 के दिल्ली और वाराणसी धमाके और 2008 का मुंबई हमला – ये सभी हमले पाकिस्तान के खुफिया एजेंसी ISI द्वारा समर्थित LeT और JeM जैसे संगठनों ने किए। भारत ने इन हमलों के बाद भी संयम की नीति अपनाए रखी।
चरण III : 2016 – 2025 |
सर्जिकल स्ट्राइक से 'ऑपरेशन सिंदूर' तक रणनीतिक प्रतिकार
2016 के उरी हमले ने भारत को अपनी सैन्य रणनीति बदलने पर मजबूर किया। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्रों में सटीक सैन्य हमलों की नीति अपनाई। 2019 में पुलवामा के बाद बालाकोट पर एयरस्ट्राइक और 2025 में बैसरण नरसंहार के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ – ये सभी कार्रवाइयां भारत की नई ‘कैलिब्रेटेड रिटेलिएशन’ (संयमित प्रतिशोध) नीति का हिस्सा थीं।
'ऑपरेशन सिन्दूर' की सफलता का दर्शाता सैटेलाइट तस्वीर
निष्कर्ष:
भारत अब आतंकवाद के खिलाफ केवल पीड़ित नहीं, बल्कि निर्णायक और सशक्त राष्ट्र बन चुका है। संयम से शुरू हुई यह यात्रा अब प्रतिकार के नए युग में प्रवेश कर चुकी है – एक ऐसा युग जिसमें भारत की हर कार्रवाई एक स्पष्ट संदेश देती है: आतंक के स्त्रोतों पर अब सीधे और निर्णायक प्रहार होंगे।