26 जून 1987 : 21000 फीट ऊँची चोटी, -50°C तापमान, सियाचिन को पाकिस्तान के कब्जे से बचाने वाले बाना सिंह की शौर्यगाथा

    26-जून-2025
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Param Vir Chakra Awardee Subedar Major Bana Singh
 
नायब सुबेदार बाना सिंह 'जम्मू कश्मीर लाइट इंफेंट्री' का हिस्सा थें। 26 जून 1987 को पाकिस्तानी सेना ने करीब 21,000 फीट की ऊचांई पर सियाचिन ग्लेशियर में मौजूद कायद चौकी को अपने कब्जे में ले लिया था। उस वक्त नायब सूबेदार बन्ना सिंह ने पाकिस्तानी सेना के कब्ज़े से कायद चौकी को मुक्त कराने का जिम्मा लिया। -50 से -60° तापमान में हाड़ गला देने वाली ठंड में बना सिंह ने सैंकड़ों फीट ऊंची बर्फ की दीवार को पार कर पाकिस्तानी सेना को धूल चटाया और कायद चौकी को दुश्मनों से आजाद कराया। बाना सिंह की वीरता के लिए उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
 
 
संक्षिप्त परिचय
 
 
परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर (Param Vir Chakra Awardee Subedar Major Bana Singh) और ऑनरेरी कैप्टन बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी 1949 को जम्मू-कश्मीर के कादयाल, आर.एस.पुरा (RS Pora Jammu Kashmir) में एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे और उनके चाचा भारतीय सेना में सैनिक थे। 6 जनवरी 1969 को बाना सिंह (Bana Singh) भारतीय सेना में जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री (JAK LI) Jammu Kashmir Light infantry की 8 वीं बटालियन में शामिल हुए। उन्हें गुलमर्ग (Gulmarg) के हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल और सोनमर्ग के एक अन्य स्कूल में भी प्रशिक्षित किया गया था। देश के परमवीर योद्धाओं में से एक कैप्टन बाना सिंह सर्वोच्च भारतीय वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित तीन जीवित प्राप्तकर्ताओं में से एक हैं। उन्होंने ऑपरेशन राजीव के हिस्से के रूप में सियाचिन क्षेत्र में सबसे ऊंची चोटी पर विजय प्राप्त करने के लिए यह पुरस्कार अर्जित किया था।
 
 
बाना सिंह की शौर्यगाथा
 
 
बाना सिंह की नौकरी के करीब 3 साल बाद, जब 1971 में पाकिस्तानी सेना ने भारत की सीमाओं पर हमला बोला, तो बाना सिंह ने अपनी बटालियन के साथ दुश्मन सेना का डटकर मुकाबला किया। इस जंग के करीब 16 साल बाद 26 जून 1987 को पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने की कोशिश की। उस दौरान एक बार फिर से बाना सिंह को पाकिस्तानी सेना से दो-दो हाथ करने का मौका मिला।
 
 
सियाचिन ग्लेशियर समुद्र तट से तकरीबन 21 हजार फीट की ऊचांई पर मौजूद एक ऐसी जगह, जिसका नाम सुनते ही -50° से 60° सेल्सियस तक के तापमान, तीव्र बर्फीले तूफान और हड्डियों को गला देने वाली तेज सर्द हवाओं की तस्वीरें खुद-ब-खुद आंखों के सामने तैरने लगती हैं। इस जगह पर रहना, खाना-पीना तो दूर की बात है, महज़ कुछ एक मिनट के लिए खड़े रह पाना भी मुश्किल है।
 
 
'कायद चौकी' को छुड़ाने  की जिम्मेदारी
 
 
21 हजार फीट की ऊचांई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर में मौजूद कायद चौकी को पाकिस्तानी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारत के सामने पाकिस्तानी सेना से कायद चौकी को मुक्त कराने की बड़ी चुनौती थी। जब कायद चौकी को छुड़ाने के लिए योजना बनाई जा रही थी उसी वक्त सूबेदार बाना सिंह ने खुद इस मिशन के लिए अपना नाम दिया था। ऐसे भी नहीं था कि बाना सिंह को इस मिशन के दौरान आने वाली मुसीबतों का अंदाजा नहीं था। परंतु बावजूद इसके वो सियाचिन की -50° से 60° सेल्सियस के तापमान और ऑक्सीजन की कमी के खतरे को देखते हुए इस मिशन पर निकल पड़े।
 
 
मिशन के लिए साथियों के साथ बनाई योजना
 
 
बाना सिंह ने इस मिशन के लिए अपने साथियों के साथ बातचीत की और एक खास योजना तैयार की। इस योजना के तहत उन्होंने अपने 4 साथियों के साथ पाकिस्‍तानी सेना तक पहुंचने के लिए एक बेहद ही खतरनाक रास्‍ते को चुना। दूसरी तरफ चढ़ाई के दौरान दूसरी यूनिट द्वारा विरोधियों को उलझा कर रखने को कहा। आइडिया काम कर रहा था। बाना अपने साथियों के साथ तेजी से आगे बढ़ रहे थे। तभी उनकी नज़र कायद पोस्ट पर पड़ी, जो सैंकड़ों फीट ऊंची बर्फ की दीवार से पटी हुई थी। अब बाना सिंह के सामने चुनौती थी कि वह इस सैंकड़ों फीट ऊंची बर्फ की दीवार को कैसे पार करें ? दूसरी तरफ तापमान भी लगातार नीचे गिरता जा रहा था और एक तरफ अंधेरा भी हो रहा था। कुछ देर रुकने के बाद बाना सिंह ने तय किया कि वह रात के अंधेरे का फायदा उठाएंगे और दीवार पर चढ़ाई करेंगे।
 
 
उनका ये आइडिया काम कर गया और जल्द ही वह पोस्ट के नज़दीक पहुंचने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी साथियों को दो टीमों में बांट दिया और अलग-अलग दिशा से विरोधियों पर ग्रेनेड फेंकने को कहा। यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि पाकिस्तानी सेना को समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ। देखते ही देखते ही बाना सिंह और उनकी बटालियन के साथियों ने पाकिस्तानी सेना की लाशें बिछा दीं। हमले में पाकिस्तानी सेना जब कम संख्या में बचे तो वह पोस्ट छोड़कर भागने लगे। इस तरह बाना सिंह अपने साथियों राइफलमैन चुन्नी लाल, लक्ष्मण दास, ओम राज और कश्मीर चंद की मदद से कायद चौकी पर अंतत: विजय प्राप्त कर भारतीय झण्डा फहराने में सफल रहे।
 
 
अद्मय साहस और नेतृत्व के लिए परमवीर चक्र
 
 
बाना सिंह को अद्मय साहस और कुशल नेतृत्व के लिए भारतीय सेना के सबसे बड़े सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यही नहीं उनके सम्मान में कायद चौकी का नाम ‘बाना टॉप' कर दिया गया था। इस जंग के बाद 2000 तक बन्ना सिंह ने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी। बाना सिंह 31 अक्टूबर, 2000 को कैप्टन की मानद रैंक के साथ रिटायर्ड हुए थे।