Teli Katha Massacre 2004 : कभी-कभी इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाएं अख़बारों के पिछले पन्नों पर दबी रह जाती हैं, पर उन घटनाओं की चीखें समय की दीवारों पर हमेशा के लिए जाती हैं। 26 जून 2004 — एक ऐसा दिन जिसे जम्मू-कश्मीर के पुंछ ज़िले के सुरनकोट क्षेत्र का तेली कत्था गांव कभी नहीं भूल सकता। इस दिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने इस छोटे से गाँव पर कहर बनकर हमला किया था, जिसमें 11 निर्दोष ग्रामीणों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, जिनमें 3 मासूम बच्चे और 2 किशोर भी शामिल थे। साथ ही 10 अन्य ग्रामीण घायल हुए थे।
तेली कत्था, एक शांत और सीमावर्ती गाँव है जो पुंछ ज़िले के सुरनकोट तहसील में स्थित है। यह इलाका अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ आर्मी की सक्रियता और सीमावर्ती तनावों के कारण भी जाना जाता है। यहाँ के लोग मुख्यतः किसान और पशुपालक हैं, जो दशकों से आतंक और बार-बार होने वाली गोलाबारी के बीच जीवन जीने को मजबूर रहे हैं।
26 जून 2004 की रात लगभग 8:30 बजे, 4 से 6 हथियारबंद आतंकी गाँव में दाखिल हुए। उन्होंने घर-घर दस्तक दी और गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कई लोगों को नजदीक से सिर और छाती में गोलियाँ मारी गईं, ताकि बचने का कोई मौका न रहे।
हमलावर लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकी थे, जो सीमा पार से घुसपैठ कर इस इलाके में सक्रिय थे। तेली कत्था गाँव को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि गाँव के कुछ लोग सेना को आतंकियों की जानकारी देने वाले "Village Defence Committee (VDC)" के सदस्य थे। आतंकियों का उद्देश्य डर और अस्थिरता फैलाना था ताकि स्थानीय लोग सेना या प्रशासन से सहयोग करने से डरें। यह हमला "लोकल सपोर्ट सिस्टम को तोड़ने की सोची-समझी रणनीति" का हिस्सा था।
सरकार और सेना की प्रतिक्रिया
ऐसी घटनाएं क्यों याद रखना ज़रूरी है?
तेली कत्था के उन 11 निर्दोषों को नमन जिनकी ज़िंदगियाँ एक बीमार मानसिकता की भेंट चढ़ गईं।