कश्मीरी हिन्दू राजनाथ धर की नृशंस हत्या : 30 जून 1990 जम्मू कश्मीर के इतिहास का काला अध्याय

30 Jun 2025 11:24:03
 
 Kashmiri Hindu Raj Nath Dhar
 
1990 का कश्मीर – एक ऐसा दौर जब घाटी में हर गली, हर मोहल्ले से हिंदू समुदाय के लोगों के चीखने की आवाज़ें आ रही थीं, और डर का माहौल इस कदर था कि लोग दिन-दहाड़े अपना सबकुछ छोड़कर रातों-रात बेघर हो रहे थे। पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकवादी संगठन जैसे कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) खुलेआम कश्मीरी हिन्दुओं को अपना निशाना बना रहे थे और उन्हें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे थे। 
 
 
26 मई 1990 को केंद्र सरकार ने तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को हटा दिया और उनकी जगह रॉ प्रमुख गिरीश चंद्र सक्सेना को राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसी बीच आतंकियों ने कश्मीरी हिंदुओं को घाटी छोड़ने के लिए अखबारों में धमकी भरे विज्ञापन छापने शुरू कर दिए और उनके घरों की दीवारों पर नफरत भरे पोस्टर चिपकाने लगे।
 
 
श्रीनगर के आलीकदल क्षेत्र में रहने वाले 59 वर्षीय सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी राजनाथ धर, उन चंद कश्मीरी हिन्दुओं में से थे जिन्होंने आतंकियों की धमकियों के आगे झुकने से मना कर दिया। वह अपनी वृद्ध मां, 40 वर्षीय छोटे भाई और 32 वर्षीय बहन के साथ अपने पुश्तैनी घर में रहते थे। आतंकी लगातार उनकी संपत्ति पर नजर गड़ाए हुए थे। लेकिन राजनाथ धर अडिग थे – न घर छोड़ना स्वीकारा, न भय में जीना। यही हिम्मत आतंकियों को खटकने लगी थी।
 
 
वह भयावह रात – 30 जून 1990
 
 
उस रात घर पर सिर्फ राजनाथ धर और उनकी बूढ़ी मां मौजूद थीं। अचानक कई आतंकी उनके घर में घुस आए। उनकी मां बार-बार आतंकियों के सामने अपने बेटे की जान की भीख मांगती रही, लेकिन क्रूरता का नंगा नाच ऐसा था कि उन्होंने सीधे राजनाथ पर गोलियों की बौछार कर दी।
 
 
राजनाथ लहूलुहान होकर ज़मीन पर गिर पड़े। उनकी मां ने आस-पड़ोस के लोगों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई आगे नहीं आया – सभी आतंकी ख़तरे से डरकर चुप रहे। काफी देर बाद जब किसी तरह उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। समय पर इलाज न मिलने के कारण राजनाथ धर ने दम तोड़ दिया।
 
 
इंसाफ आज तक अधूरा...
 
 
पुलिस ने इस घटना में केस तो दर्ज किया, लेकिन न तो कोई आतंकी पकड़ा गया और न ही किसी को सज़ा मिली। इस वीभत्स हत्या के बाद कश्मीर घाटी में हिंदुओं में भय और निराशा की लहर दौड़ गई। लोगों ने रातों-रात अपना सबकुछ छोड़ दिया और पलायन का वो सिलसिला तेज़ हो गया, जो आज भी भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े ज़ख्मों में से एक है। आज भी राजनाथ धर जैसे लोगों की कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि किस तरह एक शांतिप्रिय समुदाय को केवल उनके धर्म के कारण अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया।
 
 
 
 
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