वीर अब्दुल हमीद की वीरगाथा ; जिन्होंने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के 8 टैंक को ध्वस्त कर दुश्मनों को घुटने टेंकने पर किया मजबूर

30 Jun 2025 17:14:14
 
PVC Veer Abdul Hamid
 
आज की कड़ी में हम बात करेंगे भारतीय सेना के एक ऐसे वीर पराक्रमी सैनिक की जिसने पड़ोसी देश पाकिस्तान को वर्ष 1965 की युद्ध में नाको-चने चबवा दिए थे। माँ भारती के उस वीर सपूत के वीरता की कहानी आज 58 वर्ष बाद भी जब कोई सुनता है तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। 1965 के इस युद्ध में वीर अब्दुल हमीद के साहस और कभी न हार मानने वाले जज्बे ने ही भारत के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज कराई थी।
 
 
जीवन परिचय
 
 
वीर अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धूमपुर गांव में हुआ था। अब्दुल हमीद के पिता मोहम्मद उस्मान परिवार की आजीविका चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। हालाँकि अब्दुल हमीद की रूचि इस पारिवारिक काम में कभी भी नहीं थी। मोहम्मद उस्मान हमीद ने बड़ी ही छोटी उम्र में भारतीय सेना का ख्वाब देखा और उससे जुड़ गए। हमीद जिस वक्त भारतीय सेना में शामिल हुए उस वक्त उनकी उम्र महज 20 साल वर्ष थी। ट्रेनिंग पूरी करने के उपरान्त 27 दिसंबर, 1954 को उनकी तैनाती 4 ग्रेनेडियर्स में कर दी गई।
 
 
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1965 पाकिस्तानी हमला
 
 
हर वक्त भारत पर अपनी नापाक निगाहें रखने वाला पाकिस्तान वर्ष 1962 में भारत को चीन से मिली हार के बाद ये समझ बैठा था कि भारत की स्थिति इस बीच कमजोर है। लिहाजा कमजोरी का फायदा उठाकर क्यों न हमला कर दिया जाए। लेकिन पाकिस्तान इस बात से अंजान था कि भारत की स्थिति कमजोर नहीं बल्कि और अधिक मजबूत हो चुकी है। चीन से युद्ध को अभी कुछ ही वर्ष हुए थे कि पाकिस्तान ने मौके का फायदा उठाकर 1965 में भारत पर हमला कर दिया। युद्ध के दौरान वीर अब्दुल हमीद की तैनाती पंजाब के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर में थी।
 
 
8 सिंतबर की रात पाकिस्तान ने अपने अमेरिकन पैटन टैंक के साथ यु्द्ध में एंट्री की। पाकिस्तान के पास जो ये टैंक थे उनके बारे में कहा जाता है कि वह अपराजेय माने जाते थे। लेकिन अपनी वीरता का परिचय देते हुए अब्दुल हमीद बेहद कम संसाधनों के बावजूद इन पाकिस्तानी टैंकों के खिलाफ लड़े और पाकिस्तान सेना में तबाही मचा दी थी। इतना ही नहीं अब्दुल हमीद ने इन शक्तिशाली टैंकों को भी सीमित संसाधनों के बावजूद ध्वस्त कर दिया था। एक तरफ पाकिस्तान था जो भारत पर बम और गोले बरसा रहा था तो वहीं भारत की तरफ से वीर अब्दुल हमीद उनके टैंकों को ध्वस्त कर रहे थे। हमीद एक-एक कर 8 पाकिस्तानी टैंकों को तबाह कर दिया था। उनके इस पराक्रम से युद्ध का रुख पूरी तरह से बदल गया था।
 

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8 से 10 सितंबर 1965
 
 
पंजाब के तरन तारन जिले में एक गांव है जिसक नाम है असल उत्ताड़। हिंदी में इसे असल उत्तर के नाम से भी जानते हैं। पाकिस्तान से भारत की यह लड़ाई असल उत्तर में ही लड़ी गई थी। 8 से 10 सितंबर 1965 तक असल उत्तर की लडाई लड़ी गई थी। 10 सितंबर, 1965 की भोर में पाकिस्तानी गनें पंजाब के खेमकरन क्षेत्र में बौछारें करने लगीं। यह आक्रमण प्रातः 8 बजे शुरू हुआ। पाकिस्तान के टैंक खेमकरन क्षेत्र में घुसने लगे। पाकिस्तान ने अपनी ओर इतनी भूमिगत खाईयां खोद ली थीं कि उनमें से टैंक आसानी से सीमा तक आ गए। उसी क्षण कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने ग्रेनेडियर्स की चौथी बटालियन की कमान संभाल ली थी। इस टुकड़ी के पास 106 रिक्वालेस गनें थीं।
 
 
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अब्दुल हमीद ने 106 रिक्वालेस गन संभाली और एक जीप में सवार होकर दुश्मनों की ओर चल दिए। अपनी जान की परवाह किए बगैर माँ भारती के इस वीर सपूत अपने उत्तम युद्ध कौशल से पाकिस्तानी सेना के करीब 7 टैंकों को ध्वस्त कर दिया। अंत में जब वे पाकिस्तानी सेना के टैंक को निशाना लगा रहे थे तभी अचानक दुश्मनों का एक गोला आकर उनकी जीप के पास फटा जिसमें अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हो गए। हालाँकि वीर बलिदानी हमीद ने अपने प्राण त्यागने से पहले 8वें टैंक को भी ध्वस्त कर दिया था। पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में असाधारण वीरता का परिचय देने के लिए क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरांत सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
 

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सम्मान और पुरस्कार
 
 
28 जनवरी, 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में 5 डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया। इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का रेखा चित्र उदाहरण की तरह बना हुआ है। चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी क़ब्र पर एक समाधि का निर्माण किया है। हर साल उनकी बलिदान दिवस के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। उत्तर निवासी उनके नाम से गांव में एक डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और स्कूल चलाते हैं। सैन्य डाक सेवा ने 10 सितंबर, 1979 को उनके सम्मान में एक विशेष आवरण जारी किया है।
 
 
 
 
 
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